पद की लालसा में कोई व्यक्ति इतना नीचे कैसे गिर सकता है कि अपनी जीवन भर की प्रतिष्ठा एक झूठे व्यक्ति के पास गिरवी रखकर उसकी बोली बोलने लगेगा। यहां बात अरुण शौरी की हो रही है। अरुण शौरी पद की लालसा और मोदी से नफरत में इतने नीचे गिर चुके हैं कि उन्होंने प्रशांत भूषण जैसे झूठे व्यक्ति के झूठ को दोहराना शुरू कर दिया है। शौरी ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिर्फ वही बात दोहराई है जो प्रशांत भूषण शुरू से मोदी सरकार के खिलाफ राफेल डील पर बोलते रहे हैं। प्रशांत भूषण ने कुछ दिन पहले ही मोदी सरकार पर राफेल डील में करीब 41 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया है। जबकि 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 58,000 करोड़ रुपये का सौदा हुआ है। 58 हजार करोड़ के सौदे में 41 हजार करोड़ का घपला कैसे संभव है? शौरी को इतना बड़ा झूठ दोहराने से पहले प्रशांत भूषण की क्रेडिबिलिटी को तो परख लेना चाहिए।
मुख्य बिंदु
* राफेल डील पर प्रशांत भूषण के झूठ को दोहराने से पहले अरुण शौरी को उसकी क्रेडिविलिटी परख लेनी चाहिए
* कलाश्निकोव और अडानी के प्रस्ताव पर झूठ बोलने से पहले शौरी को समझना चाहिए वह उत्पादन के लिए था न कि ऑफसेट के लिए
गौरतलब है कि राफेल सौदे को लेकर दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने प्रशांत भूषण, और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के साथ मोदी सरकार पर तथ्यों को छिपाने, डील प्रक्रिया को बदलने तथा तय मानकों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। उन्होंने प्रशांत भूषण के झूठ को दोहराते हुए कहा कि राफेल डील बोफोर्स घोटाले से बड़ा घोटाला साबित होगा। ज्ञात हो कि प्रशांत भूषण ने कुछ दिन पहले ही राफेल डील को बोफोर्स घोटाले से बड़ा घोटाला बताया था।
जबकि शौरी को पता होना चाहिए कि राफेल लड़ाकू विमान का सौदा दो सरकारों के बीच हुआ समझौता है। इस समझौते में किसी तीसरे की कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में बोर्फोर्स जैसी दलाली की बात कहां से उठ सकती है? शौरी का सबसे बड़ा झूठ तो तब पकड़ा गया जब उन्होंने अपने प्रेस कान्फेंस में कहा कि कलाश्निकोव का प्रस्ताव अडानी को ऑफसेट पार्टनर बनाने के लिए था लेकिन मोदी ने मना कर दिया, तो फिर वे कैसे कह सकते हैं कि डसाउल्ट और अंबानी को लेकर उनकी कोई बात नहीं हुई थी? मोदी सरकार पर सवाल उठाने वाले अरुण शौरी क्या ये नहीं जानते कि कलाश्निकोव का प्रस्ताव भारत में उत्पादन के लिए अडानी को साझीदार बनाने का था न कि ऑफसेट के लिए।
At his press con on Rafale right now, Shourie says, "Proposal for Kalashnikov to get Adani as offset partner, but Modi said nahi! Then how can they say they had no say with Dassault-Ambani?"
FACT CHECK: Kalashnikov-Adani proposal was for manufacture in India, not offsets.
— Shiv Aroor (@ShivAroor) 11 September 2018
सवाल उठता है कि जो व्यक्ति पहले के एनडीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुका है वह कैसे इस प्रकार का बेबुनियाद आरोप लगा सकता है। शौरी को बताना चाहिए कि जो सौदा 58 हजार करोड़ में तय हुआ है उसमे 41 हजार करोड़ की दलाली कैसी संभव है? शौरी को यह भी बताना चाहिए कि जब कोई समझौता दो सरकारों के बीच होता है तो उसमें दलाली की बात उठ ही नहीं सकती। शौरी के इन बेबुनियाद आरोपों से स्पष्ट हो जाता है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से किसी प्रकार प्रतिशोध लेना चाहते हैं इसलिए निराधार और बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। वे कैसे रक्षामंत्री के संसद में दिए बयान को झूठा बता सकते हैं जबकि रक्षामंत्री निर्मला सीतारामण पहले ही इस डील के बारे में सारे साक्ष्य रख चुकी हैं।
शौरी को इस प्रकार का आक्षेप लगाने से पहले देश के रक्षा विशेषज्ञों तथा वायुसेना के अधिकारियों का पक्ष जान लेना चाहिए। उन्हें यह भी समझ लेना चाहिए कि भारतीय वायु सेना किस उत्सुकता से राफेल लड़ाकू जहाज के इंतजार में है। पद की लालसा में प्रतिशोध लेने के लिए इतना भी अंधा नहीं होना चाहिए कि देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दें।
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