भारद्वाज ने जहां न्यायपालिका पर कांग्रेस का अंकुश लगाने का सच बताया था, वहीं आज पूर्व विदेश मंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने मुसलमानों के नरसंहार का सच सामने ला दिया है। अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी से निलंबित छात्र आमिर मिंटोई ने जब अभी तक हुए दंगों में मारे गए मुसलमानों तथा मुसलमानों के पिछड़ेपन के बारे में सवाल पूछा तो खुर्शीद ने कहा कि निश्चित रूप से कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के खून के दाग हैं। यह एक तथ्य भी है! देश में अभी तक जितने भी बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए हैं उनमें से अधिकांश कांग्रेस के शासनकाल में ही हुए हैं। चाहे वह उत्तर प्रदेश का मेरठ दंगा हो या फिर बिहार के भागलपुर में सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाली सांप्रदायिक हिंसा हो। अधिकांश समय कांग्रेस की ही सरकार रही है।
मुख्य बिंदु
* देश के अधिकांश बड़े सांप्रदायिक दंगे कांग्रेस के ही शासनकाल में हुए हैं
* अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के निलंबित छात्र ने सलमान से उगलवाया सच
* कांग्रेस का सच आखिर कभी न कभी अपने ही नेता के मुंह से निकल ही जाता है। हाल ही में पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हंसराज
वैसे तो मेरठ में पहले भी कई सांप्रदायिक दंगे हुए हैं, लेकिन सन 1987 में 22 मई को हाशिमपुरा और 23 मई को मलियाना में जो कांड हुए वे नरसंहार ही कहे जाएंगे। मेरठ के हाशिमपुरा और मलियाना कांड ने तो पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
हाशिमपुरा सांप्रदायिक कांड
22 मई 1987 को उत्तर प्रदेश के सशस्त्र बल पीएसी ने मेरठ के हाशिमपुरा से 44 मुसलमान युवकों को ट्रकों में लादकर मुरादनगर (गाजियाबाद) की गंग नहर पर गोलियों से भून दिया और लाशों को नहर में बहा दिया। बताया जाता है कि जुम्मे के दिन रात को पीएसी बलों ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था।
मलियाना सांप्रदायिक नरसंहार
हाशिमपुरा की ही तरह 23 मई 1987 को पीएसी ने एक और ऐसे नरसंहार को अंजाम दिया, जो क्रूरता की मिसाल बन गई। मेरठ से करीब पांच किलोमीटर दूर है मलियाना गांव की आबादी करीब दस हजार थी। इसमें मुसलमानों की आबादी मुश्किल से 10 प्रतिशत रही होगी। वैसे मेरठ दंगा प्रभावित रहा है लेकिन मलियाना ऐसी हिंसा में कभी नहीं झुलसा था। 18/19 मई 1987 की रात पूरे मेरठ में भयानक दंगा भड़का पर मलियाना शांत रहा। यहां कभी हिन्दू-मुस्लिम दंगा तो दूर तनाव तक नहीं हूआ था। 23 मई को ढाई बजे तक पुलिस और पीएसी ने मलियाना की मुस्लिम आबादी को चारों ओर से घेर लिया। इसके बाद घरों की तलाशी शुरू कर दी। मुसलिम युवकों को बाहर निकाल कर एक खाली प्लॉट में खड़ा करना शुरू कर दिया। उधर घर में लूट-पाट के साथ मारपीट शुरू हो गई। वैसे तो पीएसी हाशिमपुरा की तर्ज पर मलियाना के युवाओं को कहीं और ले जाकर मारने की योजना थी। लेकिन पीएसी की फायरिंग से इतने लोग पहले ही मर गए कि योजना फेल हो गई। ढाई घंटे तक पुलिस और पीएसी की हुई फायरिंग में 73 लोग मारे गए थे।
1989 का हुआ भागलपुर दंगा
देश में अब तक सबसे ज्यादा समय तक चलने वाले दंगों में से एक बिहार के भागपुर का दंगा भी शामिल है। महज अफवाहों की वजह से अक्टूबर 1989 में इस कदर दंगा फैला कि इसमें करीब हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। आजाद भारत के इतिहास में यह सबसे बड़ा दंगा था, जो करीब दो महीने तक भागलपुर शहर और उसके आस-पास के इलाकों में चला। भागलपुर में 24 अक्टूबर 1989 में मंदिर के लिए पत्थर इकट्ठा कर रहे एक जुलूस पर बम फेंका गया था। इसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे। इस घटना के बाद भागलपुर शहर और आस-पास के इलाकों में दंगे भड़क गए थे। इन दंगों की वजह से 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए।
1980 में हुआ मुरादाबाद दंगा
13 अगस्त 1980 को यूपी के मुरादाबाद में अचानक से दंगा भड़क गया! नवंबर तक ये दंगा रुक-रुक कर चलता रहा। कहा जाता है यह दंगा करीब पांच महीने तक चला। वैसे तो आधिकारिक तौर पर इस दंगे में मरने वालों की संख्या 400 बताई गई लेकिन अनाधिकारिक रूप से 2500 से अधिक लोगों की जान जाने की बात कही जाती है। इस दंगे को 1919 के प्रसिद्ध जलियांवाला बाग नरसंहार जैसा बताया जाता है।
2013 में हुई मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा
मुजफ्फरनगर जिले में साल 2013 को हुए दंगों में जहां 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी वहीं सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। सांप्रदायिक हिंसा के कारण प्रदेश और केंद्र सरकार की काफी फजीहत हुई थी। दरअसल मुजफ्फरनगर जिले के कवाल गाँव में जाट -मुस्लिम हिंसा के साथ यह दंगा शुरू हुआ। इस दंगे में 43 लोगों की जानें चली गईं और करीब सौ लोग घायल हो गए। हिंसा की शुरुआत एक मुस्लिम युवक द्वारा एक एक जाट लड़की से छेड़खानी से हुई थी। शुरू में लड़की के दो भाइयों ने आरोपी मुस्लिम युवकों को पीटकर मार डाला, इसके जवाब में मुसलिम लोगों ने उन दोनों भाइयों की घेरकर हत्या कर दी। इससे दोनों समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठी।
अगर उपरोक्त सांप्रदायिक हिंसा या दंगा को देखे तो सलमान खुर्शीद का बयान गलत नहीं है। लेकिन हां एकपक्षीय जरूर है। कांग्रेस के दामन पर सिर्फ मुसलमान के खून के धब्बे नहीं हैं बल्कि कांग्रेस के हाथ सिखों और हिंदुओं के खून से रंगे हैं। कांग्रेस ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए कभी सिखों तो कभी हिंदुओं का भी खून बहाया है। क्योंकि इन सारे दंगों में महज मुसलमान ही नहीं बल्कि हिंदुओं का भी खून बहा है।
URL: Salman Khurshid said Congress hands stained with blood of Muslims
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