प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मूर्तियां देखी होगी। पहले एक साँचा गढ़ लिया जाता है। इस साँचे से हज़ारों एक सी मूर्तियां बना दी जाती हैं। मूर्तिकार उनमें विविधता लाने के लिए अलग रंग भर देता है लेकिन उनकी सीरत एक सी रहती है। फिल्म निर्देशक राजकुमार हिरानी ने भी एक साँचा गढ़ लिया था। मूर्ति वही होती है लेकिन रंग बदल जाते हैं। ताज़ा फिल्म ‘संजू’ को उनकी ‘मुन्ना भाई सीरीज’ का ही एक संस्करण कहा जा सकता है। इस मुन्नाभाई नुमा फिल्म की नाव वहां चली है, जहाँ पानी कम था। कहने का मतलब एक विवादित अभिनेता की ज़िंदगी पर फिल्म बनाना पहले ही एक जोखिम था। उस पर सितम ये कि राजकुमार हिरानी ने निर्देशन में पुरानी शैली ही अपनाई है। दर्शक को इस फिल्म से मिलने वाली एक मात्र ख़ुशी रणबीर कपूर का सराहनीय अभिनय है।
संजय दत्त के जीवन पर फिल्म बनाना बॉक्स ऑफिस का एक बड़ा जोखिम था और इस जोखिम को रणबीर जैसा अभिनेता ही कम कर सकता था क्योंकि युवाओं में उनकी तगड़ी फॉलोइंग है। दूसरी ओर जेल से लौटने के बाद संजय दत्त का स्टारडम बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आज की तारीख में उनको बनियान और ताले के विज्ञापन करना पड़ रहे हैं। इस लिहाज से संजय दत्त पर फिल्म बनाना कोई बहुत ज्यादा मुनाफे का सौदा साबित नहीं होगा। संजय दत्त एक गंभीर अपराध में सजा काटकर आए हैं। उनका पूरा जीवन विवादों से भरा रहा है। ऐसे कलाकार पर फिल्म बनाना समाज के लिए ‘थ्री इडियट्स’ जैसा सन्देश तो कतई नहीं होता। तो हिरानी जानते थे कि वे एक गलत विषय को जस्टिफाई करने जा रहे हैं। उनकी ये छुपी ग्लानि ‘संजू ‘ के कई दृश्यों में साफ़ झलकती है।
इस फिल्म का हासिल केवल और केवल रणबीर कपूर का बेदाग अभिनय रहा है। उबाऊ स्क्रीनप्ले के बावजूद रणबीर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भले ही ज्यादा अच्छा प्रदर्शन न कर पाए लेकिन रणबीर के कॅरियर को उभारने में काफी हद तक मददगार साबित होगी। उनके भीतर संजू का रूपांतरण इस कदर हुआ है कि कई बार हमें भ्रम होता है कि ये रणबीर नहीं असली संजय दत्त है। ड्रग्स के नशे की अधिकता में अपनी प्रेमिका के गले में कमोड का कवर डाल देने वाला दृश्य दर्शक को भीतर से बींध देता है।
ऊपर मैंने सांचे का जिक्र किया था। हिरानी अब टाइप्ड होते जा रहे हैं। फिल्म को मनोरंजक बनाने के लिए उन्होंने खुद को ही दोहराया है। ये एक बायोपिक था और इसमें उनसे कुछ अलग की उम्मीद थी। बेहतर होता कि वे एक अपराधी को वैसे ही पेश करते, ‘संजय दत्त’ बनाकर नहीं। एक घातक हथियार रखने के मामले को जस्टिफाई करने की कोशिश फिल्म के इस हिस्से को बनावटी बना देती है। कई बार लगता है वे अपने दोस्त के लिए फिल्म बना रहे थे न कि समाज के लिए। पुलिस से पूछताछ में संजय दत्त खुद अंडरवर्ल्ड से अपने संबंधों को स्वीकार करते हैं लेकिन हिरानी बताना चाह रहे थे कि संजू डर के चलते ऐसा करते रहे।
फिल्म के पहले शो में रणबीर कपूर के प्रशंसक फिल्म देखने आए थे। पहले दिन की भीड़ इन लोगों की ही रही थी। फिल्म का असली इम्तेहान शनिवार से शुरू होगा। वेश्यावृत्ति के सवाल पर संजू के भद्दे जवाब पर थिएटर में तालियों का शोर होता है। वह शोर दरअसल रणबीर कपूर के बेहतरीन एक्ट के लिए होता है। संजय दत्त के आपराधिक कारनामों पर तो शोर होने से रहा। ये तय है कि फिल्म फ्लॉप नहीं होगी लेकिन ब्लॉकबस्टर होना भी बहुत मुश्किल है। हिरानी की बाकी फिल्मों की तरह कामयाबी तो नहीं मिलेगी लेकिन औसत सफलता जरूर मिल जाएगी।
संजय दत्त के डूबते कॅरियर को इस फिल्म से कोई मदद नहीं मिलेगी लेकिन रणबीर का कॅरियर जरूर संवर जाएगा। उनका समर्पित अभिनय देखकर लगता है कि कभी संजय दत्त उनकी जगह होते तो उनके जीवन को इतनी जीवंतता से प्रस्तुत नहीं कर पाते। इस वीकेंड यदि रणबीर कपूर का बेदाग अभिनय देखना चाहते हैं तो हिरानी का बुरा निर्देशन झेल सकते हैं।
URL: ‘Sanju’Movie review; movie can only be seen for Ranbir Kapoor
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