‘ड्रेग फ्लिक’ हॉकी की एक ऐसी आक्रामक स्किल है जिसे विश्व के बहुत कम खिलाड़ी सीख सके हैं। ‘फ्लिकर सिंह’ के नाम से ख्यात भारतीय हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह इस ख़ास दांव के बहुत गहरे जानकार थे। हॉकी के मैदानों पर संदीप सिंह की हुंकार गूंजे एक अरसा हो गया लेकिन दर्शकों को उसकी ड्रेग फ्लिक आज भी नहीं भूलती। उसकी स्टिक से छूटते बंदूक की गोली जैसे शॉट दर्शकों को आज तक याद है। भारतीय हॉकी के इस सितारे पर बनी फिल्म ‘सूरमा’ प्रदर्शित हो गई है। दर्शकों की सहज सकारात्मक प्रतिक्रिया बता रही है कि ये फिल्म संदीप सिंह के तेज़ रफ़्तार गोल की मानिंद दर्शक के दिल में जा बैठी है।
21 अगस्त 2006 को जब संदीप सिंह विश्व कप में भाग लेने के लिए ट्रेन से रवाना हुए तो एक पुलिसकर्मी से गलती से गोली चल गई। इस हादसे ने उनके कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त बना दिया था। खेल जीवन खत्म हो चुका था और वापसी की कोई उम्मीद बाकी नहीं थी। हरियाणा के इस शेर ने हिम्मत नहीं हारी। इलाज करवाकर वे वापस लौटे और अपना खेल जीवन एक सम्मानजनक मोड़ पर समाप्त किया। ये एक प्रेरणादायक सच्ची कहानी है, जिस पर निर्देशक शाद अली ने एक उम्दा फिल्म बनाई है। संदीप सिंह का किरदार करना कोई आसान काम नहीं था। इस किरदार में कई शेड्स थे। हालांकि दिलजीत दोसांझ ने अत्यंत स्वाभाविकता के साथ इस किरदार को जीवंत किया है।
दिलजीत दोसांझ को संदीप सिंह के किरदार में फिट होने के लिए बहुत श्रम करना पड़ा और उनकी मेहनत परदे पर झलकती भी है। संदीप सिंह के हावभाव सीखने के साथ उन्होंने असली जिंदगी में हॉकी का अभ्यास किया ताकि किरदार में सच्चाई नज़र आ सके। उनके कन्धों पर फिल्म के सबसे मुख्य किरदार को निभाने की जिम्मेदारी थी। यदि वे बिना तैयारी के इस किरदार को करते तो गहराई नज़र नहीं आती। उनके किरदार में तीन शेड्स हैं। पहला वाला संदीप खिलंदड़ किस्म का है। हॉकी इसलिए खेलना चाहता है कि प्रेमिका से शादी हो जाए। देश के लिए खेलने वाली कोई बात नहीं है। दूसरा संदीप निराश है। लकवाग्रस्त होने के बाद वापसी के लिए संघर्ष कर रहा है। तीसरा संदीप संघर्ष से तपकर निकला है। अब उसका ध्यान किसी लड़की को देखकर नहीं भटकता।
तापसी पन्नू का किरदार एक ऐसी खिलाड़ी का है जो संदीप सिंह को प्रेरित करती है। उसे बताती है कि जिस खिलाड़ी को नेशनल खेलना हो, उसका ध्यान लड़की को देखकर नहीं भटकना चाहिए। संदीप के प्यार को ठुकराने का बोझ लेकर जी रही हरप्रीत का किरदार तापसी ने बखूबी निभाया है। उस लड़की का बाद में क्या हुआ ये तो पता नहीं लेकिन उसने संदीप के जीवन के धनुष में ‘प्रत्यंचा’ का काम किया। तापसी पन्नू इतनी प्रभावी अदाकारा हैं कि कई दृश्यों में दिलजीत दोसांझ भी उनके सामने असहज नज़र आए हैं। फिल्म ‘शबाना’ से उनके करियर को जो नुकसान हुआ था, उसकी भरपाई ‘सूरमा’ से हो जाएगी।
संदीप सिंह के पिता की भूमिका सतीश कौशिक ने अत्यंत विश्वसनीय ढंग से निभाई है। इस फिल्म में उनका किरदार निश्चित ही नोटिस किया जाएगा। हॉकी कोच की भूमिका में विजयराज ने कमाल किया है। वे अपनी कॉमिक टाइमिंग से गुदगुदाने में सफल रहे हैं। फेडरेशन चीफ की भूमिका में कुलभूषण खरबंदा ने सहज अभिनय किया है। निर्देशक शाद अली के लिए इस फिल्म को सराहा जाना राहत की खबर है। फिल्म ‘बंटी और बबली’ के बाद उन्होंने बतौर निर्देशक लगातार छह फ्लॉप फ़िल्में दी थी। सूरमा में उनके एक नए निर्देशकीय अवतार के दर्शन होते हैं।
किसी खिलाड़ी के जीवन पर सफल फिल्म बनाना आज की तारीख में बॉक्स ऑफिस का सबसे बड़ा जुआं माना जाता है। यहाँ तो क्रिकेट पर आधारित ‘लगान’ चलेगी, इसका भरोसा भी निर्माताओं को नहीं था। ‘चक दे इंडिया’ के शुरूआती शो पूरी तरह खाली रहे थे। भारत में प्रदर्शित होने वाली सभी खेल फिल्मों का रुझान यहीं होता है। सूरमा की शुरुआत भी उत्साहजनक नहीं रही है लेकिन दर्शकों की प्रतिक्रिया बता रही है कि आने वाले समय में फिल्म की आय में बढ़ोतरी होगी। इस वीकेंड अपने परिवार के साथ एक प्रेरक कहानी देखना चाहते हैं तो फौरन ‘सूरमा’ का टिकट कटाइये। सूरमा का आनंद विचित्र है। दिल खुश होगा लेकिन पलकें भी नम हो जाएगी।
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