India Speaks Daily ने आपको बताया था कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने नोटबंदी के कारण दंगे की बात नहीं की थी, लेकिन कांग्रेसी नेता व नोटबंदी के खिलाफ खड़े लोगों के याचिकाकर्ता कपिल सिब्बल के प्रिय पत्रकारों ने उनके मुंह में ‘दंगा’ शब्द डालकर पूरे देश और न्यायपालिको कोा गुमराह करने का कार्य किया। वह पूरी खबर इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
लेकिन उसके आगे की कहानी यह है कि उस वक्त न्यूज चैनल व अंग्रेजी मीडिया के ज्यादातर पत्रकार अदालत में उपस्थित नहीं थे। हिंदी अखबारों के पत्रकार जरूर थे और दैनिक जागरण, अमर उजाला एवं अन्य हिंदी अखबार के पत्रकार साफ मना कर रहे हैं और कह रहे हैं कि चीफ जस्टिस ने ऐसा कुछ कहा ही नहीं! तो फिर यह किसने कहा?
चूंकि न्यायपालिका के जरिए मोदी सरकार पर दबाव की राजनीति करने वाले कपिल सिब्बल के चापलूस पत्रकारों में भी मेरे मित्र हैं, इसलिए मैं साफ-साफ इनमें से किसी का नाम नहीं लूंगा। लेकन इनमें से सबसे बड़ी भूमिका उस टीवी पत्रकार ने निभाई, जो सबसे बड़ा लेफ्ट लिबरल टीवी चैनल है, यूपीए सरकार के समय कई घोटालों में साझीदार रहा है और नोटबंदी पर सबसे अधिक बेचैन है! दूसरी एक महिला पत्रकार है, जो एक बड़े अंग्रेजी दैनिक में काम करती है। उसके ससुर बड़े कांग्रेसी नेता और सिब्बल के करीबी हैं। तीसरा दक्षिण भारतीय पत्रकार है, जो कांग्रेस के पे-रोल पत्रकार की भूमिका में हमेशा अदालत की रिपोर्टिंग करता रहा है! आगे इसी पर लंबे समय तक अदालत की रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ कोर्ट रिपोर्टर मनीष ठाकुर का पूरा ब्लॉग पढि़ए और खुद समझ जाइए कि पत्रकारों ने कैसे पत्रकारिता छोड़ कर कांग्रेसी-दलालों की भूमिका अख्तियार कर रखी है!
मनीष ठाकुर। मी लॉड! आप भारत में न्याय के सर्वोच्च पद पर बैठे हैं, आपका राजनीतिक दुरुप्रयोग कैसे हो सकता है? सत्ता और विपक्ष दोनो आपके नाम से खेले आप संज्ञान न लें ये कैसे हो सकता है? उम्मीद है आज आप दंगे वाली झूठी खबर पर संज्ञान लेगें!
क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश के मुंह में कोई भी वाक्य डालकर देश में अपने मुताबिक महौल बनाया जा सकता है? क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश यह कह सकते हैं कि विमुद्रीकरण के कारण देश में दंगा हो सकता है? क्या यह बेहद सामान्य बात है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में बैंच पर बैठ कर कहें कि हालात ऐसे हैं कि दंगे हो सकते हैं? यदि सुप्रीम कोर्ट ऐसा कहता है तो क्या यह सरकार के लिए उतनी हल्की टिप्पणी है जितनी मान ली गई।
लगभग 18 साल तक, लोअर कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक की रिपोर्टिंग, देश के प्रतिष्ठित अखबारों और टीवी चैनलो में करने के अनुभव के आधार पर मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं की कोई भी न्यायधीश अपनी न्यायपीठ पर बैठ कर ऐसी राजनीतिक बातें कर सकते है? लेकिन ये बात तो भारत के मुख्य न्यायाधीश के मुख से निकली वाणी बताई जा रही है। टीवी के लिए अदालत की रिपोर्टिंग के दौरान कई बार का अनुभव है कि तेजी के कारण कई बार रिपोर्टर गलत खबर चला देता है फिर अपनी गलत खबर को सत्यापित करने के लिए कई साथियों पर दवाब डालता है जो फैसले को सही से सुन नहीं पाते। ये उनकी मजबुरी होती है क्योंकि उनसे बड़ी गलती हो चुकी होती है। अब जब सब मिल कर झूठ चला देंगे तो झूठ ही सच हो जाता है।
जानकारी के मुताबिक कोर्ट रुम में याचिकाकर्ता के वकील,कांग्रेसी नेता व पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल और भारत के अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी के बीच गर्म बहस चल रही थी। सिब्बल कह रहे थे सरकार के गलत फैसले के कारण हालात ऐसे हैं कि दंगा हो सकते हैं। अटार्नी जनरल रोहतगी सुप्रीम कोर्ट में दलील दे रहे थे कि देश भर में नोटबंदी को लेकर अलग अलग याचिकाऐं दाखिल हो रही हैं इन्हें रोका जाए। अटार्नी की दलील थी की कोलकोता हाईकोर्ट ने इस मामले में गलत टिप्पणी की है जिसे रोका जाए। कोर्ट रुम में मौजूद ज्यादातर रिपोर्टर और वकील के मुताबिक मुख्य़ न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर ने अटार्नी जनरल की बात को खारिज करते हुए अंग्रेजी में कहा ‘They may be right’ (मतलब याचिका दाखिल करना उनका अधिकार है) जस्टिस ठाकुर की यही वाणी सिब्बल साहब की मन की वाणी‘ there may be riots (मतलब ऐसे हालात में दंगा हो सकता है) बन गई। और यह सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के रुप में कुछ देर में टीवी चैनलों पर चलने लगी। सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी कुमार वहां मौजूद थे जब सिब्बल रिपोर्टरों को ब्रीफ कर रहे थे।
इस खबर का स्तर इतना हल्का नहीं था। आज जब इस मामले की सुनवाई थी तो मैं उम्मीद कर रहा था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश इस खबर पर स्वतः संज्ञान लेंगे, आश्चर्य है, ऐसा न हुआ। चौंकाने वाली बात यह है कि भारत के अर्टानी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी सुप्रीम कोर्ट को यह नहीं बताया कि आपके मुंह से जो शब्द निकलवाए गए वो कितना खतरनाक था?
यह सामान्य बात नहीं हैं। मेरा आज भी मानना है कि भारत की सुप्रीम कोर्ट ऐसी टिप्पणी नहीं कर सकती। ठीक उसी तरह कि सन 2011 में 2जी मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह नहीं कहा कि प्रधानमंत्री मौन क्यों हैं?लेकिन यह खबर बन गई। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया था। और लगा था कि कोर्ट रिपोर्टिंग के कुछ गाईडलाइन बनेगें लेकिन मौखिक चेतावनी देकर जस्टिस सिंघवी ने छोड़ दिया।
ये मामला मुझे बेहद गंभीर लगा लिहाजा मैने पिछले दिनों कोर्ट में मौजूद कई साथियों को फोनकर पूछा कि क्या कोर्ट ने ऐसा कहा था ? लंबे समय तक कोर्ट की रिपोर्टिंग करने वाले अमर उजाला अखबार के वरिष्ठ लीगल रिपोर्टर राजीव सिंन्हा उस वक्त कोर्ट में थे उन्होने कहा कोर्ट ने ऐसा नहीं कहा। दो दशक से पीटीआई समेत कई अंग्रेजी अखबार में लीगल रिपोर्टिंग कर रहीं इंदु भान व दैनिक जागरण की विशेष संवाददाता माला दीझित भी कोर्ट में मौजूद थी। इन लोगों ने भी सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी नहीं सुनी। दैनिक भास्कर के वरिष्ठ संवाददाता पवन के मुताबिक कोर्ट ने ऐसा कुछ कहा ही नहीं। हमने खबर चलाई भी नहीं। कई टीवी पत्रकार नाम देने की बात करते हुए कहते हैं आप तो जानते हैं टीवी में जल्दवाजी के चक्कर में क्या होता है।
हद यह है कि टीवी के ज्यादातर सुन्नी रिपोर्टरों ने जब इसे चलाया तो देर रात पीटीआई ने भी उस खबर को उठा लिया। शाम तक पीटीआई ने इस खबर को नहीं चलाया था। फिर तो मीडिया की भाषा में खबर औथेंटिक हो गई। मैं मानता हूं की खबरों की दुनिया में ऐसी गलती हो सकती है लेकिन यदि यह साजिशन है सुप्रीम कोर्ट को इस पर संज्ञान लेना चाहिए। यदि साजिशन नहीं भी है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए। हद है कि भारत सरकार भी इस मामले में कोई संज्ञान लेकर कोर्ट जाने को तैयार नहीं है। कानून मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक यह खबर परेशान करने वाला है लेकिन कानून मत्रालय इस समय इस मामले को तुल नहीं देना चाहता। चलिए अपने अपने हिस्से का खेल खेलिए लेकिन भारत की सुप्रीम कोर्ट की गरिमा का ख्याल रखिए ताकि उसकी साख बची रहे।