सुप्रीम कोर्ट अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगाएगा, उसे तो दही हांडी और दिवाली के पटाखों पर प्रतिबंध लगाने से ही फुर्सत नहीं है!सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो अपराधी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के लिए कानून नहीं बना सकती। ये निर्णय नेता संसद में करें। लेकिन हिन्दू अपने त्यौहार कैसे मनाएंगे ये सुप्रीम कोर्ट बताएगी!
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो अपराधी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के लिए कानून नहीं बना सकती। ये निर्णय नेता संसद में करें।
लेकिन #हिन्दू अपने त्योहार कैसे मनाएंगे ये सुप्रीम कोर्ट बताएगी।@AshwiniBJP @KapilMishra_IND @ippatel
— Ashok Shrivastav (@ashokshrivasta6) September 25, 2018
आपराधिक रिकॉर्ड वाले जनप्रतिनिधी चुनाव लड़ सकते हैं या नहीं यह जनप्रतिनिधियों को ही अब मिलजुल कर तय करना है! देश की सुप्रीम अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह संसद और सरकार को तय करना चाहिए कि अदालत द्वारा आरोप तय होने के आधार पर जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई की जा सकती है या नही। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला राजनीति में लगातार बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए जारी किया है। यह मानते हुए कि राजनीति में भष्टाचार आर्थिक आतंक का प्रयाय बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति को आर्थिक आतंक का प्रयाय बनाने वालों को ही यह जिम्मेदारी दे दी है कि वो राजनीति से भष्टाचार और अपराध खत्म करने के लिए खुद काननू बनाएं। तो क्या माना जाए कि देश की सुप्रीम अदालत के दर्शन से कानून तोड़ने वाले माननीयों को ऐसा दिव्य ज्ञान होगा कि वे खुद को राजनीतिक सत्ता के मोह से मुक्त कर लेगें? भारत की सुप्रीम अदालत ने उन जनप्रतिनिधियों के लिए खुद के खिलाफ कानून बनाने की सलाह दी है जिनकी एक तिहाई संख्या पर पहले से ही अपराधिक मुकदमा चल रहा है!
याद दिला दूं कि पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश में 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की सलाह सरकार को दी थी। इसलिए ताकि जनप्रतिनिधियों के मामलों का जल्द से जल्द निपटारा किया जा सके। लेकिन संसद के अंदर तब के सपा के राज्य सभा सांसद नरेश अग्रवाल ने सदन में संविधान की धारा 14 और 15 के हवाले से दलील देते हुए कहा कि जाति या लिंग के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। जनप्रतिनिधि भी उसी कानून के तहत आते हैं। हर मामले में प्रिविलेज लेने वाले सांसद इस मुद्दे पर एक हो गए। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि सांसदों के लिए विशेष अदालत बनाने से जनता में गलत संदेश जाएगा। ऐसे में भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली की यह दलील धरी रह गई कि सांसदों को खुद मिसाल पेश करना चाहिए। फिर सदन के लगभग सभी माननीय इस मामले में एकसूत्र में बंध गए और खुद के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट पर विराम लगा दिया ताकि अपराधिक मामलों में फंसे होने पर भी वो सदन की शोभा बढ़ाते रहें।
अब वैसे ही कानून तोड़ने वालों से भारत की सुप्रीम अदालत उम्मीद कर रही है कि वो राजनीति को अपराध और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए कानून बनाएंगे। ऐसे सदन से जहां 542 में से 185 सांसदों पर कोई न कोई अपराधिक मामला है। देश भर में 1765 सांसद-विधायकों पर कुल 3045 आपराधिक केस दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भ्रष्टाचार पर बड़ा दर्शन देने और उसे समाप्त करने के लिए किए जाने वाले के अमल पर संदेह पैदा करता है। जिस सुप्रीम कोर्ट को संविधान ने असीम अधिकार दिया है उसके द्वारा राजनीति में अपराधीकरण से जुड़े जनप्रतिनिधियों के मामले को उन्ही के पाले में डालना राजनीति को अपराधिकरण से मुक्ति दिलाने के भरोसे को खत्म करता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश बस लीपापोती लगता है। जिसमे अदालत ने हर प्रत्याशियों से कहा है कि वो अपना अपराधिक रिकार्ड दे। पार्टी उसे वेबसाइट पर डाल दे और सदन तय करे कि ऐसे अपराधिक छवि वालों को चुनाव लड़ने दिया जाए या नहीं।
पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैसी कहते हैं ’20 साल से यही बात तो चुनाव आयोग कह रहा है क्या फर्क पड़ गया। अब सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग से कह रहा है कि वो निगरानी करे। चुनाव आयोग यही तो सालों से कह रहा है कि जेल में रह कर कोई चुनाव कैसे लड़ सकता है’। दरअसल सारे दल ऐसे लोगों को रखते हैं जिस पर अपराधिक मुकदमे होते हैं। ऐसे लोगों के पास मसल पावर और मनी पॉवर होता है जो चुनाव जीतने के काम आता है। कोई भी राजनीतिक दल ऐसे लोगों को दरकिनार नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामले संविधान की समीक्षा के खुद की जिम्मेदारी से हटते हुए माननीयों को एक बड़ा तौफा दिया है। उस सुप्रीम कोर्ट ने जो जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम के मामले में अपना कानून बनाता है सरकार और सदन के न्यायिक आयोग को ठुकराता वो जनप्रतिनिधियों से कहता है कि कानून बनाने का काम उसका नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अहम बाते
1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, क़ानून बनेगा तभी अपराधी राजनीति से दूर होंगे और वक़्त आ गया है कि संसद जल्द क़ानून बनाए।
2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैसा, बाहुबल को राजनीति से दूर रखना संसद का कर्तव्य है और राजनीतिक अपराध लोकतंत्र की राह में बाधा है। कोर्ट ने कहा है कि उम्मीदवारों को लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी देनी होगी।
3. उम्मींदवारों को फ़ॉर्म में मोटे अक्षरों में चुनाव आयोग को जानकारी देनी होगी और पार्टियों को भी आपराधिक केसों की जानकारी देनी होगी। पार्टियां इन जानकारियों को वेबसाइट पर डालेंगी, इनका प्रचार करेंगी।
4. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दूषित राजनीति को साफ करने के लिए बड़ा प्रयास करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने संसद को एक कानून लाना चाहिए ताकि जिन लोगों पर गंभीर आपराधिक मामले हैं वो पब्लिक लाइफ में ना आ सकें।
5. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद को इस कैंसर का उपचार करना चाहिए और ये लोकतंत्र के लिए घातक होने से पहले नासूर नहीं है।
6. कोर्ट ने कहा कि पांच साल से ज़्यादा सज़ा वाले मुकदमों में चार्ज फ्रेम होने के साथ ही जनप्रतिनिधियों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक नहीं।
7. पार्टियों को चुनाव से पहले नामांकन के बाद तीन बार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर उम्मीदवारों के सभी रिकॉर्ड की तफसील से प्रकाशित प्रसारित करानी होगी। कोर्ट ने कहा कि ये संसद का कर्तव्य है कि वो मनी एंड मसल पावर को राजनीति से दूर रखे।
8. कोर्ट ने कहा कि किसी मामले में जानकारी प्राप्त होने के बाद उस पर फैसला लेना लोकतंत्र की नींव है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का अपराधीकरण चिंतित करने वाला है।
9. आपको बता दें कि 1518 नेताओं पर केस दर्ज हैं जिसमें 98 सांसद हैं। नेताओं पर 35 पर बलात्कार, हत्या और अपहरण के आरोप हैं. महाराष्ट्र के 65, बिहार के 62, पश्चिम बंगाल के 52 नेताओं पर केस दर्ज हैं।
URL: Tainted leaders can take part in elections said Supreme Court, Parliament to create law
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