लोकसभा-2014 का चुनाव नजदीक आ रहा था! मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ और ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा देने से लेकर लश्कर आतंकी इशरत जहां को शहीद का दर्जा देने तक की कवायत कांग्रेस कर रही थी! मक्का मस्जिद व मालेबांव ब्लास्ट में एटीएस ने सिमी के जिन आरोपियों को पकड़ा था, उसे छोड़ा जा चुका था!
ऐसे में जब यह सूचना आई कि कांग्रेस संचालित यूपीए सरकार ने 2001 में संसद पर हमले के आतंकी व सुप्रीम कोर्ट द्वारा करीब सात साल से मौत की सजा पाए अफजल गुरु को अचानक से 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी की सजा दी है तो मुझे यकीन नहीं हुआ! शक तो मुझे इससे तीन महीने पहले 21 नवंबर 2012 को भी हुआ था, जब मुंबई हमले में पकड़े गए एक मात्र आतंकी अजमल कसाब को भी चुपके से यूपीए सरकार द्वारा फांसी देने की खबर मीडिया में चली थी! मुस्लित तुष्टिकरण के लिए आतंकियों को छोड़ने और ‘हिंदू आतंकवाद’ की एक नई अवधारणा गढ़ने वाली कांग्रेस अफजल गुरु और अजमल कसाब को केवल तीन महीने के अंतराल पर फांसी दे और वह भी चुपके से तो शक होना लाजिमी था! लेकिन उस समय कुछ लिखना उचित नहीं लगा, क्योंकि केवल संदेह के आधार पर कुछ लिखना मूर्खता होती!
आज यूपीए सरकार द्वारा पठानकोट हमले के आरोपी लतीफ को चुपके से पाकिस्तान पहुंचाने की खबर की पुष्टि के बाद मुझे लगा कि हो न हो अफजल व कसाब को भी फांसी की झूठी खबर उड़ा कर पाकिस्तान पहुंचा दिया गया हो! आखिर किसी ने फांसी के बाद अफजल व कसाब के शव को देखा तो है नहीं? आखिर यूपीए सरकार को इन आतंकियों के शव को चुपके से दफनाने की नौबत क्यों आयी? महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने तो मुंबई ब्लास्ट के आतंकी याकूब मेनन को कई दिन पहले दुनिया को बताकर फांसी दिया! तभी तो उसकी फांसी को रोकने के लिए उसके समर्थक रात दो बजे में सुप्रीमकोर्ट तक खुलवा पाए! और बाद में सरकार ने उसके शव को उसके परिवार वालों को भी सौंप दिया, जिसके बाद आतंकवादी समर्थकों न उसके जनाजे में हिस्सा भी लिया! शायद भाजपा सरकार के पास छुपाने के लिए कुछ नहीं था और कांग्रेस चालित यूपीए सरकार के पास छुपाने के लिए बहुत कुछ था! यही यूपीए को संदेह के घेरे में लाता है!
आज जब यह राज खुला है कि पठानकोट पर हमला करने वाले आतंकी शाहिद लतीफ सहित करीब 20 पाकिस्तानी कैदियों को कांग्रेस ने अपने शासनकाल में चुपके से पाकिस्तान पहुंचा दिया तो अब कम से कम मेरा शक यकीन में बदलता जा रहा है कि कहीं अफजल गुरु और अजमल कसाब भी किसी पाकिस्तानी हमले के सूत्रधार के रूप में भविष्य में सामने न आ जाएं!
मौलाना आजाद की पुस्तक ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ पढ़िए कि किस तरह से जवाहरलाल नेहरु ने भारत बंटवारे की रेखा खींची! भारत का बंटवारा राजनीति ने किया था, उसी जवाहरलाल नेहरू के वंश ने फांसी की सजा पाने के सात साल बाद तक आतंकवादी अफजल में भी मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति ही देखा था! तो अचानक वह राजनीति और उसी वंश के नेतृत्व वाली सरकार चुनाव से ठीक पहले उसे गुपचुप तरीके से फांसी कैसे दे रही थी? शक होना तो लाजिमी है!
अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में भी यह सामने आ गया है कि यूपीए सरकार को जब यह अहसास हो गया कि 2014 में उसकी सत्ता जाने वाली है तो आनन-फानन में इसकी जांच के आदेश दिए गए और जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मई 2014 में सरकार आ गई तो 3 जून 2014 को उस घोटाले से जुड़ी सारी फाइल को जलाकर नष्ट करने तक का प्रयास किया गया!
चुनाव से केवल एक-डेढ़ साल पहले कहीं यूपीए सरकार को यह तो नहीं लग गया था कि अगली सरकार अफजल और कसाब को फांसी देने से पहले कुछ पूछताछ कर सकती है? फांसी तो पक्की ही दे सकती है! इसलिए अच्छा है कि गुमनाम फांसी के बहाने इन्हें इनके आकाओं तक पहुंचा दिया जाए! ताकि यदि कांग्रेस का कोई राज हो तो वह भी दफन हो जाए और पाकिस्तानी आकाओं को भी खुश कर दिया जाए, जैसे लतीफ को भेज कर खुश किया गया था!
आज पठानकोट हमले की जांच से पता चल रहा है कि जिन चार आतंकियों ने पठानकोट एयरबेस पर हमला किया था, उन्हें पाकिस्तान के 47 साल के शाहिद लतीफ से मदद मिली थी और शाहिद लतीफ को साल 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने जेल से रिहा किया था! पठानकोट हमले में सेना के सात जवान शहीद हुए थे! क्या कांग्रेस और तब की यूपीए सरकार इन सुरक्षाकर्मियों की कातिल नहीं हुई? यूपीए द्वारा छोड़े गए लतीफ के कारण ही तो इन सुरक्षाकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है!
ज्ञात हो कि 2 जनवरी 2016 को पठानकोट में हुए आतंकी हमले को संचालित करने वाले पाकिस्तानी शाहिद लतीफ को वर्ष 1996 में जम्मू में आतंकवाद और ड्रग्स तस्करी मामले में गिरफ्तार किया गया था। वह जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी था। वही जैश-ए-मोहम्मद जिसका प्रमुख मौलाना मसूद अजहर है, और जिसे भारत सरकार ने जांच में पठानकोट हमलों का मास्टरमाइंड पाया है। कांग्रेस का तर्क है कि पाकिस्तान से संबंध सुधारने के प्रयास में लतीफ के साथ करीब 20 अन्य पाकिस्तानी आतंकियों व कैदियों को रिहा किया गया था! तो क्या यह संभव नहीं है कि पाकिस्तान से तथाकथित संबंध सुधारने के लिए ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अफजल गुरु व अजमल कसाब को भी चुपके से पाकिस्तान पहुंचा दिया हो और उसके फांसी की झूठी सूचना प्रेस के लिए जारी कर दी हो? आखिर इन दोनों की फांसी और इनके लाश को किसने देखा है?
ज्ञात हो कि शाहिद लतीफ इतना खतरनाक था कि 1999 में जब इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 का अफगानिस्तान के कंधार में अपहरण हुआ था तो आतंकियों ने उसकी रिहाई की भी मांग की थी। वाजपेयी सरकार ने उसकी रिहाई की मांग को स्वीकार नहीं किया था। विमान में सवार 189 यात्रियों की सकुशल रिहाई के लिए तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने मसूद अजहर सहित दो अन्य आतंकियों को रिहा किया था।
लतीफ की रिहाई के वक्त तो ऐसे किसी विमान का अपहरण भी नहीं हुआ था? तो क्या कारण है कि किसी विमान हाईजैक या किसी वीआईपी या उसके बच्चों के अपहरण के संकट के बिना ही कांग्रेस की यूपीए सरकार ने पाकिस्तानी आतंकियों को छोड़ दिया? कहीं न कहीं, यह पाकिस्तानी आतंकियों से कांग्रेसी सांठगांठ को उजागर कर रहा है! वैसे भी लश्कर आतंकी इशरत को अपना बनाने के लिए कांग्रेस जिस तरह से मरी जा रही थी, वह इस पार्टी की 2004-2013 तक की पूरी गतिविधि को संदिग्ध बनाता है!
उचित तो यही होगा कि वर्तमान मोदी सरकार इसकी जांच कराए, क्योंकि देश की इतनी बड़ी पार्टी यदि आतंकवादियों के समर्थक के रूप में लगातार कई कुकृत्यों को अंजाम दे रही हो तो यह देश को कभी भी गंभीर संकट में डालने वाला साबित हो सकता है!