कई मित्रों के फोन और मैसेज आए। कहा, संदीपजी, हम इंडिया स्पीक्स को जो डोनेशन भेज रहे हैं, उसमें मेरा नाम प्लीज उजागर न करें!
1) एक मित्र ने कहा कि मेरी जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। मेरे बॉस से लेकर साथ काम करने वाले सारे वाम विचारधारा के हैं।
2) एक मित्र ने कहा, मैं जिस इंडस्ट्रीज में हूं, वहां राष्ट्रवाद एक गाली की तरह है। मेरा बहिष्कार हो जाएगा। मेरा नाम मत दीजिएगा।
3) एक महिला ने कहा, मेरे पति बैंक अधिकारी हैं। नोटबंदी की मार से वो भी विचलित और मोदी से चिढ़े हैं। उन्हें पता लगेगा कि मैं राष्ट्रवाद को सपोर्ट कर रही हूं तो मेरा जीना हराम हो जाएगा।
4) एक महिला ने तो और भी मजेदार बात कही। कहा, मेरे ससुराल में सभी कांग्रेस को वोट देते हैं। मैं जैसे भाजपा को उन सबसे छुपाकर वोट देती हूं, उसी तरह छुपाकर आपको डोनेशन भेज रही हूं।
5) अन्य कईयों ने बिना कारण बताए कहा है कि प्लीज हम इंडिया स्पीक्स को सपोर्ट करेंगे, लेकिन आप सूची उजागर न करें। इसे गुप्तदान मानें। संभवतः उनके भी ऐसे कारण होंगे।
मुझे वो दिन याद आ गया, जब मैंने ‘निशाने पर नरेंद्र मोदी: साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी’ लिखी थी। एक बड़े संपादक जो हमेशा मेरे शुभचिंतक और मददगार रहे हैं, उन्होंने अखबार में लपेट कर पुस्तक छुपाई कि कोई देख लेगा तो उनकी फजीहत हो जाएगी। लुटियन मीडिया में उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा
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एक अन्य संपादक ने कहा था, संदीप तुमने मोदी पर किताब लिखकर एक पत्रकार के रूप में अपना करियर खत्म कर लिया है। अब किसी मीडिया संस्थान में तुम्हें नौकरी नहीं मिलेगी।
मेरे काफी सारे पत्रकार साथी, जिनके साथ उठना-बैठना-साथ काम करना होता था, उन्होंने मुझसे दूरी बना ली। वो बचने लगे कि कहीं मैं उनके साथ एक फ्रेम में दिख न जाऊं।
अंग्रेजी अखबार में काम करने वाले एक साथी ने तो यह कह दिया कि अब तुम कम्युनल हो चुके हो!
आज जब पलटकर देखता हूं तो पाता हूं कि कांगी-वामी का इको-सिस्टम समाज के हर तबके में इतना गहरा पैठा है कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी लोग, आज भी हेय दृष्टि से देखे जाते हैं!
मोदी भले प्रधानमंत्री बन गये लेकिन उनके वोटरों में काफी संख्या गुमनाम वोटरों का है, जिसने अपनों के बीच से ही चुपके से विद्रोह किया है। मोदी को आज भी कई लोग गाली देते हैं, और राष्ट्र व हिंदू धर्म को हीन भावना से देखते हैं।
M5 के इस इको सिस्टम को जड़ से उखाड़े बिना काम नहीं चलेगा। इस चार साल से यह तो तय हो गया है कि सत्ता एक चीज है और सोच दूसरी चीज। सत्ता हासिल करने के बावजूद इस एलिट क्लास मेंटलिटी की सोच नहीं बदली है।
मैं ठीक ही सोच रहा हूं कि इंडिया स्पीक्स अंग्रेजी के साथ बंगाली, मलयालम, तमिल भाषा में भी आनी चाहिए। घुन की तरह ये देशद्रोही हर जगह हैं, लेकिन ताज्जुब देशभक्तों को ही अपनी पहचान छुपानी पड़ रही है!
मैं क्षमाप्रार्थी हूं उन दानदाता सथियों से जिनका नाम मैंने उजागर कर दिया। मैं तो पारदर्शिता रखना चाहता था। लेकिन मैं दुखी भी हूं कि चार साल पहले मुझे जिस हालत से गुजरना पड़ा था, कमोबेश वो हालात अभी भी हैं।
खुश भी हूं कि कोई अपने पति, अपने ससुराल, अपने साथी से अपने राष्ट्र के लिए गुपचुप तरीके से विद्रोह कर रहा है।
आखिरी बात! तमसो मा ज्योतिर्गमय…. यह अंधेरा छंटेगा, उजाला आएगा। मेरा भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलाएगा….!
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सर मैं पत्रकारिता का विद्यार्थी हूं, और हकीकत में कहूं तो एक बरगी को लगा कि वायर वाले सही कह रहे हैं लेकिन छुट्टियों के दौरान मैंने किताबें पढ़ीं वामपंथ के उद्देश्य को पढ़ा तो पता चला झूठ पर जिस सच की चादर चढ़ाई जा रही है उसको उजागर करना जरूरी है, फेसबुक पर लिखता हूं, चूंकि विद्यार्थी हूं तो खासा धन का सहयोग नहीं कर सकता पर यदि हो सके तो लिख सकता हूं, यदि आप उचित समझें तो उत्तर अवश्य दें