दयानंद पांडेय। फर्क यही है कि जिन्ना देश तोड़ने में तभी सफल हो गए थे! अंबेडकर अब सफल होते दिख रहे हैं। जिन्ना के पाकिस्तान की ही तरह दलितिस्तान का मुद्दा अंबेडकर ने उठाया था। यह 1932 का समय था। अंगरेज ऐसा ही चाहते थे, अंबेडकर ब्रिटिशर्स के हाथो नाच रहे थे। अंबेडकर ने बाकायदा खुल्लमखुल्ला यह मांग रखी थी। यह हमेशा याद रखिए कि अंबेडकर ने स्वतंत्रता की लड़ाई में कभी कोई योगदान नहीं दिया। सर्वदा अंगरेजों के पिट्ठू बने रहे। अंबेडकर ने और भी सारे कुचक्र रचे। महात्मा गांधी उन दिनों पुणे के यरवदा जेल में बंद थे। गांधी को जब पता चला तो उन्हों ने जेल में ही इस दलितिस्तान के विरोध में उपवास शुरू कर दिया लेकिन अंगरेजों के दम पर अंबेडकर अड़े रहे। गांधी की स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती गई । रवींद्रनाथ टैगोर उन से मिलने गए। गांधी की मरणासन्न स्थिति देख कर टैगोर रो पड़े! टैगोर ने अंबेडकर को समझाया।
अंबेडकर कहां समझने वाले थे? भरपूर ब्लैकमेलिंग की और पूना पैक्ट बनाया। 24 सितंबर, 1932 को इस पूना पैक्ट पर दस्तखत हुए। कालांतर में यही पूना पैक्ट संविधान में आरक्षण का आधार बना। गांधी ने तब तो देश को टूटने से बचा लिया था किसी तरह लेकिन आरक्षण जैसे कैंसर के लिए राजनीतिक दोगलों की गोलबंदी और आरक्षण समर्थकों की ब्लैकमेलिंग देख कर अब साफ़ लगता है कि देश में गृह युद्ध बहुत दिनों तक टलने वाला नहीं है। आप क्या कोई भी कुछ कर ले देश को टूटना ही है।
दलितिस्तान बन चुका है, बस इस की घोषणा बाकी है! महात्मा गांधी भी आज की तारीख में आ जाएं तो भी टूटने को नहीं रोक सकते! कितनी भी पैचिंग कर लीजिए, आरक्षण को ले कर पक्ष और विपक्ष दोनों ही के बीच नफ़रत और जहर समाज में बहुत ज़्यादा घुल चुका है। वोट बैंक की राजनीति और आरक्षण समर्थकों की ब्लैकमेलिंग में देश डूब चुका है। यह बात किसी राजनीतिक पार्टी को क्यों नहीं दिख रही। मेरा मानना है, कभी नहीं दिखेगी।
ब्लैकमेलर अंबेडकर को कोई राजनीतिक पार्टी ब्लैकमेलर कहने की बजाय मसीहा कहते नहीं अघाती। व्यर्थ का महिमामंडन करती है सो अलग और तो और अंबेडकर को संविधान निर्माता बता देती हैं। जबकि अंबेडकर संविधान निर्माता नहीं, सिर्फ़ ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमैन थे, वह भी पूना एक्ट की ब्लैकमेलिंग के दम पर! 299 सदस्यों की संविधान सभा के चेयरमैन राजेंद्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने संविधान बनाया, अंबेडकर ने नहीं! सामूहिक काम था संविधान निर्माण व्यक्तिगत नहीं।
यह तथ्य भी जान लीजिए! आप मानिए न मानिए लेकिन जिन्ना और मुस्लिम लीग से ज़्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं अंबेडकर और अंबेडकरवादी। देश को दीमक की तरह खा लिया है। आंख खोल कर देखिए, वैसे भी यह देखने, समझने में अब बहुत देर हो चुकी है। इन की सदियों के अत्याचार की कहानी अब नासूर बन कर सवर्णों पर इन के अत्याचार की नई इबारत है। समय की दीवार पर लिखी अत्याचार की इस इबारत को ध्यान से पढ़ लीजिए नब्बे-पनचानबे प्रतिशत नंबर पाया लड़का, पैतीस-चालीस प्रतिशत पाए हुए से सालो-साल पिटता रहेगा तो समाज का मंज़र क्या होगा । इस पर बहुत सोचने-विचारने की ज़रूरत नहीं है। आज के आरक्षण अत्याचार की नई खतौनी यही है, सदियों से अत्याचार की खतौनी पुरानी हो गई है।
URL: The Dalit| Dalitistan has become, only announcement remains
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