कश्मीर इन दिनों विवादों में है। रहस्य का आवरण ओढ़े कई कहानियां आज कश्मीर के बहाने हम सब के सामने आ रही हैं। कश्मीर का इतिहास रक्तरंजित के साथ ही इसलामी आक्रमण का वह इतिहास रहा है जिसने कश्मीर के वास्तविक और हिंदू नायकों को इतिहास से खारिज किया है। फारसी इतिहासकारों ने उन नायकों का हर चिन्ह मिटाने का प्रयास किया, जिन्होंने भारतीयता को कश्मीर में जीवित रखने का प्रयास किया। ऐसी ही एक रानी है कोटा रानी, जिसने अपनी अंतिम सांस तक इसलामी आक्रमणकारियों से कश्मीर को बचाने का प्रयास किया, और जब वह ऐसा करने में असफल रही, तो उसने अपने प्राण दे दिए। मुसलिम, ब्रिटिश और मार्क्सवादी इतिहासकारों ने कोटा रानी को धोखा देने वालों का तो गुणगान किया है, और उस हिन्दू रानी के साथ ऐसा अत्याचार किया कि आज उसकी एक तस्वीर भी उपलब्ध नहीं है, यहाँ तक कि गूगल में भी नहीं। इतिहास से हिन्दू प्रतीकों और नायकों को खुरच खुरच कर मिटाने की साज़िश आज की नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है। कश्मीर के रिसते दर्द और उसे जख्मी करने वालों के बीच कश्मीर के सच्चे इतिहास से रु-ब-रु कराता सोनाली मिश्रा का एक ऐतिहासिल आलेख…
जब भी हम इतिहास के पन्ने खोलते हैं, और खास तौर पर कश्मीरी इतिहास के, तो हमें इतिहास वहीं से दिखाई देता है जहाँ से कश्मीर के फारसी इतिहासकारों ने लिखा, और जहाँ से इस्लाम का महिमामंडन था, इतिहास के वे पन्ने कहाँ हैं, जब इन आक्रमणकारियों के आक्रमण किया और भारत के ज्ञान और संस्कृति के शिखर पर आतंक का खूनी खेल खेला। मूर्तियों को तोडा गया और कश्मीर का इतिहास केवल उन्हीं आतताइयों के गौरव से भरा हुआ है, जिन्हें उन फारसी इतिहासकारों ने बुतभंजकों का नाश करने वाला बता रखा है। कश्मीर के फारसी इतिहासकार न केवल हिन्दू शासकों के प्रति अनुदार रहे हैं, बल्कि उन्होंने इस तरफ से भी आँखें मूँद रखी हैं कि किस तरह इस्लामी आक्रमणकारियों ने बहुसंख्यक हिन्दू समाज का कत्लेआम किया।
ऐसी ही एक कहानी है कश्मीर की कोटा रानी की कहानी की, जिसने अंतिम क्षण तक कश्मीर में हिन्दू शासन बनाए रखने का प्रयास किया। उसने कश्मीर की संस्कृति को बचाए रखने के लिए साम दाम दंड भेद, हर तरह की नीति का पालन किया। जिसे पता था कि यदि सिंहासन पर कोई विधर्मी आया तो कश्मीर की संस्कृति हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी, परन्तु बहुत ही दुःख की बात है कि कोटा रानी को धोखे से हराने वाले को विश्वास का सूरज कहते हैं, मगर कोटा रानी के बारे में लिखने में कंजूसी करते हैं।
कश्मीर इस्लामी आक्रमणकारियों की नज़र में था। हालांकि कश्मीर ने अपनी अस्मिता को बचाए रखने के लिए संघर्ष किया, मगर बारहवीं शताब्दी आते आते स्थितियां बदलने लगी थी, और इस समय तक विदेशी शक्तियों की नज़र कश्मीर को हड़पने पर थी। इसकी शुरुआत कश्मीर में सरकारी नौकरियों को हासिल करने से हुई। धीरे धीरे कश्मीर की हवाओं में जहर घुल रहा था और धर्मान्तरण की प्रक्रिया शुरू होने लगी थी।
कोटा रानी की कहानी
कोटा रानी की कहानी शुरू होती है कश्मीर के शासक सहदेव की कहानी के साथ। सन 1301 में कश्मीर में सहदेव नामक शासक गद्दी पर बैठा। उसके शासन में उसके दो महत्वपूर्ण सहयोगी थे, एक था लद्दाख का विद्रोही राजकुमार रिन्चिन और दूसरा था स्वात घाटी से आया हुआ शाहमीर! और उसका सेनापति था राम चंद्र। इसी रामचंद्र की बेटी थी कोटा रानी। रिन्चिन बौद्ध था, और शाहमीर मुसलमान। उथलपुथल वाले युग में सन 1319 में राजा सहदेव पर तातार सेनापति डुलचू ने 70,000 सैनिकों के साथ आक्रमण किया। इस आक्रमण में राजा सहदेव अपने भाई उदयन देव के साथ किश्तवाड़ भाग गया।
हालांकि रामचंद्र, रिन्चन और शाहमीर ने मिलकर डुलचू का मुकाबला किया, मगर डुलचू घाटी में ही टिका रहा और उसने घाटी में कत्लेआम का आदेश दिया। हज़ारों लोग मारे गए, हज़ारों लोग गुलाम बनाकर तातार भेज दिए गए और आठ महीने घाटी में रहने के बाद वह हज़ारों ब्राह्मणों को दास बनाने के बाद जब वापस जा रहा था तो देवकर दर्रा पार करते हुए बर्फ के तूफ़ान से उसकी और उसके साथ जा रहे सभी लोगों की मौत हो गयी। मगर उसके जाने के बाद कश्मीर एकदम बर्बाद कश्मीर हो गया। उसके बाद किश्तवाड़ के गद्दियों ने कश्मीर पर आक्रमण किया, मगर रामचंद्र के द्वारा भेजी गयी सेना ने उन्हें वापस खदेड़ दिया और राम चंद्र ने खुद को राजा घोषित कर दिया।
कोटा रानी की साम,दाम, दंड, भेद नीति
इधर रिन्चिन भी इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर गद्दी हासिल करना चाहता था। रिन्चिन ने विद्रोह कर दिया और रामचंद्र का धोखे से क़त्ल करा दिया। इस प्रकार बौद्धधर्मी रिन्चिन का कश्मीर के शासन पर अधिकार हुआ और उसने कोटा रानी से विवाह कर लिया। कहा जाता है कि इस विवाह का प्रस्ताव कोटा रानी की तरफ से ही दिया गया था। कोटा रानी कश्मीर में प्राचीन संस्कृति को जीवित रखना चाहती थी, और हर कीमत पर हिन्दू शासन चाहती थी। कुछ इतिहासकारों का यह कहना है कि इस निर्णय के पीछे उसका कारण यह था कि उसे पता था कि कश्मीर को तभी बचाया जा सकता है जब उसके विचारों में परिवर्तन लाकर पूरी तरह से भारतीय किया जा सके। इसलिए कोटा रानी ने रिन्चिन से विवाह करना उचित समझा और विवाह के उपरान्त पूरी दूरदर्शिता के साथ शासन करने लगी। और धीरे धीरे उसने रिन्चिन को हिन्दू धर्म के प्रति भी आकर्षित कर लिया और उसे भारतीय धर्म और संस्कृति का इतना प्रेमी बना दिया कि रिन्चिन हिन्दू धर्म स्वीकार करने की भी योजनाएं बनाने लगा था।
कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक
मगर यह कश्मीर का दुर्भाग्य ही था कि हिन्दू धर्म में प्रवेश करने की उसकी योजना को हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने स्वीकार नहीं किया और जिस प्रकार उसका दिल टूटा और बेचैन हुआ, वह इस अस्वीकृति से इतना विचलित हुआ कि उसने इस्लाम अपना लिया और अपना नाम मलिक सदरुद्दीन रख लिया। इस प्रकार वह कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक हुआ, परन्तु वह वहीं की मिट्टी का इंसान था, इसलिए वह कट्टर नहीं था और वह अपनी हिन्दू पत्नी के कारण भी प्रजा के जबरन धर्मांतरण जैसी घटनाओं में शामिल नहीं था। मगर जल्द ही एक बार फिर से विपत्तियों का आगमन हुआ और सहदेव के भाई उदयन देव ने रिन्चिन के खिलाफ विद्रोह कर दिया और उस पर आक्रमण कर दिया। लड़ाई में रिन्चिन गंभीर रूप से घायल हुआ और उसके कारण सन 1326 में उसकी मृत्यु हो गयी। हालांकि उसके इस्लाम धर्म अपनाने पर भी फारसी इतिहासकारों के विचार अलग हैं और कश्मीरी इतिहासकारों के अलग।
कश्मीर पर लगातार होते आक्रमण
रिन्चिन की मृत्यु के समय उसका बेटा हैदर छोटा था, तो रानी ने राजकाज सम्हाला। मगर उसके सामने सेना के साथ उदयन देव आ गया। अपने राज्य के सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, और अपनी संस्कृति को बनाए रखने की ललक ने एक बार फिर कोटा रानी को फैसला लेने पर विवश किया और उसने उदयन देव को राज्य के साथ साथ स्वयं को भी समर्पित कर दिया, और पूरे प्रशासन को सम्हालने लगी। उसके दो विश्वासपात्र थे, एक था उसका भाई भिक्षण भट्ट और दूसरा शाहमीर।
मगर जल्द ही कश्मीर फिर से किसी आक्रमण का हिस्सा होने जा रहा था। कश्मीर पर एक और तातारी सरदार ने सैकड़ों तातारी लोगों के साथ आक्रमण कर दिया। अपने भाई सहदेव की तरह उदयनदेव भी इस भीषण परिस्थितियों में अपनी पत्नी और राज्य को छोड़कर तिब्बत की तरफ भाग गया। मगर रानी भागी नहीं, उसने अपनी सेना में जोशीला भाषण दिया, सेना को उसके कर्तव्य याद दिलाए, उनमें जीत के लिए जूनून पैदा किया और अपने भाई भिक्षण भट्ट और शाहमीर की मदद से उस सेना को भगा दिया। उसकी देशभक्ति की अपील ने स्थानीय नागरिकों पर असर किया और उसकी आवाज़ पर स्थानीय नागरिक भी युद्धका हिस्सा बन गए। उन आक्रमणकारियों का खतरा टलने के बाद उदयन देव वापस आया और उसने शाहमीर और उसके बेटों को महत्वपूर्ण पद दिए। इस प्रकार कश्मीर पर हिन्दू शासन बनाए रखने में रानी सफल रही।
कश्मीर पर इसलाम का शासन
सन 1341 में उद्यन देव की मृत्यु हो गयी और कश्मीर पर एक बार फिर से खतरा मंडराने लगा। उस समय कोटा रानी और उदयन देव का बेटा छोटा था, अत: रानी ने एक बार फिर से राजकाज सम्हाला। मगर इस समय तक शाहमीर में कश्मीर का पहला मुस्लिक शासक होने की हवस जाग चुकी थी और उसे माहौल भी अपने अनुकूल लगा। उसने पहले तो भिक्षण भट्ट को अपनी योजना में शामिल करने के लिए लालच दिया, जब वह नहीं माना तो पहने उसने भिक्षण भट्ट की धोखे से हत्या कराई और फिर उसने कोटा रानी के खिलाफ विद्रोह कर दिया और पराजित किया। इस प्रकार कश्मीर पर इस्लाम का शासन काबिज़ हुआ।
कहा जाता है कि शाहमीर ने कोटा रानी को विवाह का प्रस्ताव दिया था, और उसे निकाह के लिए मजबूर भी कर दिया था। जब वह रात में उसकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो उसके सामने पूरे सिंगार में आई रानी ने अपने पेट में खंजर घुसेड कर आत्महत्या कर ली थी, और उसके आख़िरी शब्द थे, “यह है मेरा जबाव!”
कोटा रानी की यह कहानी इतिहास के पन्नों से निकल कर आज तक हमारे सामने नहीं आई है! इस कहानी में अपने धर्म और संस्कृति को बचाए रखने का जो संघर्ष है, वह अपने आप में इसलिए अनूठा है क्योंकि जहां राजा अपनी प्रजा से विमुख होकर भाग गया, वहीं उसकी पत्नी ने देशभक्ति की भावना से स्थानीय नागरिकों और सेना को प्रेरित किया और दुश्मनों को मार भगाया।
क्या यह कहानियां हमें इसलिए नहीं सुनाई जातीं क्योंकि इन कहानियों को सुनने से हममें आत्मगौरव का भाव विकसित होगा, क्या स्त्री सम्मान और वीरता की यह कहानियां हम तक इसलिए नहीं आईं क्योंकि हमारे सामने स्त्रीवाद का वह नैरेटिव सेट नहीं हो पाता जो वामपंथी इतिहास कार हम सबके दिमाग में सेट करना चाहते थे? सवाल कई है, मगर इन कहानियों में स्त्री शक्ति के वे उदाहरण हैं जो हमें हमेशा ही सत्य के साथ, अपने गौरव के साथ खड़ा होने के लिए प्रेरित करेंगे।
कोटा रानी हमसबके लिए आदर्श होनी चाहिए, क्योंकि न केवल वह एक कुशल प्रशासक थी, वह एक कुशल राजनेता भी थी, जिसने अपने राज्य को बचाने के लिए जरूरी हुआ तो स्वयं को भी समर्पित किया, मगर उसने स्वयं को एक धोखेबाज़ को समर्पित करने से बेहतर जीवन को समाप्त करना समझा।
URL: The first brave and beautiful female administrator of Kashmir
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