१६ और १७ जून २०१३ उत्तरांचल को जो दर्द दे गया उसकी टीस अभी तक महसूस की जा सकती है,आसमानी आपदा ने जो कहर बरपाया था,उसके निशान अभी तक भरे नहीं है,तबाही का खौफ अभी भी वहां के स्थानीय निवासियों के चेहरों पर साफ़ दिखाई देता है,२०१३ में उत्तरांचल की प्राकृतिक आपदा में मृत लोगों को भावभीनी श्रद्धांजलि ! भारतीय सेना द्वारा किये गए अभूतपूर्व बचाव कार्य के लिए उन्हें नमन !
इस त्रासदी के बाद लिखी मेरी एक कविता साझा कर रहा हूँ !
वह जो पत्थर से अटकी हुई हैं,
वह बूढ़ी औरत !
उसके शिथिल शरीर पर जो साडी है ,
परसों ही उसका बेटा लाया था,
फ़ौज से,किन्तु
कल रात सब बिछड़ गया,
घर बेटा ,पोता,मकान
यहाँ तलक कि जन्मभूमि भी !
रह गयी तो सिर्फ
वह बूढ़ी औरत !
मरी नहीं है अभी शायद ,
पर अब ,
करेगी भी क्या जी कर ?
पानी के थपेड़ों ने
उसके जर्जर शरीर को यहाँ ला पटका,
साड़ी नयी थी ,
शायद इसलिए बच गयी
एक नुकीले पत्थर के कोने से
साड़ी का छोर अटका पड़ा था !
मालूम होता था,
जैसे प्रारब्ध ने,
स्वयं खूँटी से टांगा हो !
निर्जीव सी आँखें
सवालों से भरी,दूर तलक
कुछ खोजती हुई,
पैरों में कई जगह थे,
खरोचों के निशान,
और हाँ,
एक जगह माथे पर,
खून लगा था, जमा हुआ।
खाँस कर,
संभलने की कोशिश।
असहाय हो चुकी थी शायद ,
आवाज लगाती रही
जग्या ! मोहना ! ब्वारी !
कोई पृत्युत्तर नहीं !
कल-कल बहते पानी की,
आवाज के साथ,
सन्नाटा था बहुत सारा !!