अब ये ना कीजिए मी-लॉड ! अब भारत के लोकतंत्र के पहरेदार को तो राजनीति का जामा न पहनाइए । लाख बुराई के बाद भी, बस यही खंभा तो बचा है जिसकी साख जनता में बरकरार है, भले ही सच कुछ और हो। भारत के जनमानस की नजर से उसकी सुप्रीम कोर्ट का सम्मान गिर जाना देश की बहुमुल्य धरोहर ‘लोकतंत्र’ का तहस नहस हो जाना होगा मीलॉड ? क्या अब देश की सबसे बड़ी अदालत को भी मोदी समर्थक और मोदी विरोधी में बांटना चाहते हैं? बेहद सम्मान के साथ कहना चाहता हूं ,राजनीति के रंग में भारत की न्यायपालिका के रंग जाने से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बुनियाद तबाह हो जाएगी मीलॉड।
लगभग छह साल पहले आप ही के एक तत्कालिन वरिष्ठ न्यायाधीश ने भारत की सबसे बड़ी अदालत के इसी गुंबद से लिखित आदेश जारी कर देश की सबसे बड़ी बैंच वाली हाईकोर्ट के बारे में कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से कुछ सड़ने की बू आ रही है। नवंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट की एक बैंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था ’’ वहाँ बहुत कुछ सड़ चुका है. कई जजों के रिश्तेदार उसी कोर्ट में प्रेक्टिस करते हैं.जिसके कारण फैसले प्रभावित होते हैं। वहां के जज अपने रिश्तेदार वकील को फायदा पहुंचाते हैं’’।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा था कि वे ऐसे जजों के खिलाफ कार्रवाई करें। सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि कुछ जजों के ऐसे रवैये से आमजन में न्यायालय का भरोसा गिरता है। कुछ जजों के वकील रिश्तेदार मनचाहा फैसला कराने में सफल हो जाते हैं कुछ सालों में इन जजों के पास खुद पैसा, घर और लंबी गाड़ी आ जाती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में ही अपील की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को रद्द करने से इनकार कर दिया है. देश की सर्वोच्च अदालत की इतनी खुली टिप्पणी के बाद न्यायपालिका में फैले भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए अब तक क्या किया गया मीलॉड ?
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सड़ने की बात सिर्फ इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए की हो लेकिन न्यायिक गलिआरे में घुमने वाले जानते हैं की सड़ तो सुप्रीम कोर्ट में भी बहुत कुछ रहा है मीलॉड। लोकतंत्र है, तो सवाल उठना चाहिए की सुप्रीम कोर्ट के आठ दस वकील के पास ही सभी केस क्यों हैं? बांकि काबिल से काबिल वकील सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की लाइब्रेरी व कैंटिन में ज्यादातर समय गुजारने को मजबूर क्यों हैं? बहुत अच्छा लगता है जब देश की बेहतरीन कारें देखने का मन करे तो सुप्रीम कोर्ट के गलियारो से नीचे झांक कर अपनी आंखों को सुकून दूं ।
एक साथ इतनी महगी कार आप देश में कही नहीं देख सकते। फिर सबसे बदनसीब पेशा वकालत ही क्यों माना जाता है मीलॉड? क्या सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि ज्यादातर जजों के निकटतम रिश्तेदार वकील हैं या इस पेशे में सबसे ज्यादा भाई भतीजाबाद है जिससे फैसले प्रभावित होने का संदेह रहता है? न्यायपालिका तो इंसाफ की उम्मीद से ही सांस ले सकता है न मीलॉड। फिर ये भरोसा कहां से लाया जाए मीलॉड?
अब देखिए न आपने पहली बार स्वतंत्रता दिवस पर सीधे प्रधानमंत्री को कटघरे में लेने की कोशिस की, कानूनी रुप से नहीं राजनीतिक रुप से,ऐसा शायद पहली बार हुआ, तो देश को सोशल मीडिया ने बता दिया कि आपके पापा जस्टिस डी डी ठाकुर के किस तरह के राजनीति संबंध थे। किस तरह न्यायाधीश की कुर्सी छोड़कर वे राजनीति में आए। फिर राज्य के वित्त मंत्री से केंद सरकार के प्रतिनिधि के रुप में असम के राज्यपाल बने। आपके भाई भी तो जम्मू कश्मीर में जज हैं। लंबे समय तक आपको भारत के मुख्य न्यायाधीश का गौरव मिला है। कुछ अच्छा तो होना चाहिए। इस कॉलेजियम सिस्टम ने, जिसमें जजों को ही जज चुनने का अधिकार दिया उससे भाई भतीजाबाद आ गया।
केरल से लेकर कश्मीर तक एक लंबी लिस्ट है जो बताती है कि जजों के चुनाव में कौन सी प्रणाली अपनाई गई। न्यायपालिका के स्वायतता के लिए एक अहम जिम्मेदारी उसे दी गई लेकिन इसके कारण न्यायपालिका में सड़न आ गया मीलॉड। इसी में सुधार करने के लिए लोकतंत्र के मंदिर, संसद द्वारा एक पार्दशी कदम उठाया गया जिसके तहत जजों की न्युक्ति में आपकी भूमिका के साथ देश के प्रधानमंत्री,नेता विपक्ष,कानून मंत्री और दो कानूनविद की भूमिका तय की गई। अब सुप्रीम कोर्ट की ऐसी कौन सी जिद्द है कि वो कोलेजियम सिस्टम की ही बनाए रखने पर कुंडली मार बैठी है।
जब न्यायपालिका भरोसा खो रहा हो तो जरुरी है कि उसे कायम रखा जाए। आज तक किसी प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की न्युक्ति को लालकिला से घोषणा नहीं की तो इस बार भी उम्मीद नहीं थी। भारत का कोई मुख्य न्यायाधीश इस राजनीतिक बयानबाजी करे इसकी भी उम्मीद नहीं थी। यदि सुप्रीम कोर्ट से भी कुछ सड़ने की बू आने लगी तो इंसाफ के लिए कोई आखिरी उम्मीद कहां लगाए ? 75 जजों की न्युक्ति की आपकी चाहत, न्यायपालिका के हक में हो सकता है लेकिन वो जज उस सड़े हुए सिस्टम से ही क्यों आए जिसने भरोसा खो दिया मीलॉड?
नोट- इस लेख में वर्णित विचार लेखक के हैं। इससे India Speaks Daily का सहमत होना जरूरी नहीं है।