सिक्ख धर्म में गुरु नानक से लेकर गुरु गोविन्द सिंह तक दस गुरु हुए हैं
जिनके नाम क्रमश: गुरु नानक, गुरु अंगद, गुरू अमरदास, गुरू रामदास, गुरू अर्जुनदेव, गुरू हरगोविन्द, गुरू हरराय, गुरू हरकृष्णराय, गुरू तेगबहादुर और गुरू गोविंदसिंह हैं।
प्रत्येक गुरु, अंत समय में अपने उत्तराधिकारी को पद सौंपकर उसे पंथ का गुरु घोषित कर दिया करते थे। गुरु गोविन्द सिंह अपने स्वर्गवास से पूर्व गुरू ग्रन्थ साहिब को ही पंथ का गुरु घोषित किया और आज्ञा दी की अब कोई व्यक्ति गुरु नहीं होगा.
गुरु नानकदेव के वचनो को, पहले-पहल, गुरु अंगद ने “गुरुमुखी” लिपि में लिखा गया
तभी से यह लिपि प्रारंभ हुई। सिक्खों के मुख्य धर्म ग्रन्थ “ग्रन्थ साहिब” का संकलन और संपादन 1604 ई में पांचवे गुरु अर्जुन देव ने किया। इस ग्रन्थ में आदि के पांच गुरु और नवें गुरु तेगबहादुर के वचन और पद संग्रहित हैं। एक दोहा गुरु गोविन्द सिंह जी का भी है इसमें।
इस ग्रन्थ में अन्य हिन्दू-संतों और सुधारकों के भी पद हैं। गुरु गोविन्द सिंह साहित्य के बहुत बड़े विद्वान ,कवियों के प्रबल संरक्षक और हिंदी के अच्छे कवि थे। उनकी सभी रचनाओं को सिक्ख “दशम-ग्रन्थ” के नाम से अभिहित करते हैं। उन्होंने विचित्र नाटक, जफ़र नामा, सौ साखी, जाप और चंडी चरित्र, आदि अनेक ग्रंथों की रचना की। उन्होंने रामायण भी लिखी जिसे पटियाला कालेज के प्राध्यापक संत इन्द्रसिंह ने “गोविन्द रामायण “के नाम से प्रकाशित किया।