मुल्ला-मौलवियों ने भारत को मध्ययुग में ढकेलने की पूरी तैयारी कर रखी है, जिसमें इन्हें कांग्रेस पार्टी का भरपूर साथ मिल रहा है। अपनी औरतों को नरक का जीवन जीने को मजबूर करने वाली इस जमात का झूठ एक-एक कर बाहर आता जा रहा है। हलाला की आड़ में मदरसों और मुसलिम समाज में चल रहा यौन उत्पीड़न, बलात्कार, वेश्यावृत्ति की पोल खुलने पर पहले न्यूज चैनलों पर मुल्ले-मौलानाओं ने कहना शुरु किया कि कुरान और हदीस में कहीं भी हलाला का जिक्र नहीं है। लेकिन जब देखा कि मुसलिम महिलाओं को न्याय दिलवाने के लिए मोदी सरकार आगे बढ़ रही है और यदि उन्हें न्याय मिल गया तो मौलवियों के यौन शोषण का धंधा चौपट हो जाएगा, तो अब ये पूरे देश को धमकी दे रहे हैं कि हलाला कुरान से निकला है, इसलिए इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है!
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के अंदर मुसलिम समाज के अंदर चल रहे घिनौने तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला पर सुनवाई चल रही है। तीन तलाक को तो सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक भी करार दिया है और मोदी सरकार से इस पर कानून बनाने को भी कहा था। लोकसभा में तो यह पारित हो गया, लेकिन कांग्रेस(बकौल राहुल गांधी मुसलमानों की पार्टी) ने राज्यसभा में इस पर अडंगा लगा दिया है। वहीं दूसरी ओर मुल्ले-मौलवियों की सताई मुसलिम महिलाएं बहुविवाह और हलाला के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं, जिस पर 20 जुलाई से सुनवाई आरंभ होने की उम्मीद है। इस पर मोदी सरकार की मंशा स्पष्ट है कि महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानने वाली ऐसी कुरीतियां समाप्त होनी चाहिए और मुसलिम महिलाओं को संविधान में वर्णित समानता, स्वतंत्रता एवं गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए। इसका विरोध करते हुए ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने दलील दी है कि हलाला कुरान की प्रैक्टिस है। इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है।
AIMPLB के सेक्रेटरी और लीगल काउंसिल जफरयाब जिलानी ने कहा, “निकाह हलाला एक प्रथा है जिसके तहत अपनी पत्नी को एक बार तलाक दे देने के बाद आप तब तक उससे दोबारा निकाह नहीं कर सकते जब तक वह किसी और से शादी करके उसके साथ रिश्ता नहीं बना लेती और फिर उससे तलाक नहीं ले लेती। यह प्रथा कुरान पर आधारित है और बोर्ड इससे विपरीत विचार नहीं रख सकता है।”
बोर्ड ने यह भी तय किया है कि देश के 10 शहरों में शरियत कोर्ट बनाए जाएंगे। पहला कोर्ट सूरत में शुरू होगा जिसका उद्घाटन 22 जुलाई को होगा। महाराष्ट्र में 9 सितंबर तक दारुल क़ज़ा और नवंबर के अंत तक शरियत कोर्ट का शुरू कर दिया जाएगा। शरिया का मतलब कुरान और पैगंबर मोहम्मद की सीख के आधार पर तैयार किए गए इस्लामिक कानून से है। जिलानी ने कहा, “शरियत अदालतों के असंवैधानिक होने का सवाल ही नहीं उठता है।”
‘फतवे, उलेमा और उसकी दुनिया’ पुस्तक में लेखक अरुण शौरी ने सात हदीसों का उल्लेख किया है। पढ़कर ऐसा लगता है जैसे किसी अश्लील साहित्य को पढ़ रहे हैं। दरअसल मुसलिम समाज की औरतों को मध्ययुग में ही रखने के उद्देश्य से मुल्ला-मौलवी और पर्सनल बोर्ड लगा हुआ है, और इनके संगठित वोट की भूखी कांग्रेस पार्टी देश में इन्हें प्रश्रय देकर देश में एक और विभाजन की लकीर खींच रही है। हम इन्हें भारत को मध्ययुग में ले जाने की छूट नहीं दे सकते हैं! पहले ही इस मध्ययुगीन मानसिकता ने हमारे देश के दो टुकड़े किए हैं और 10 लाख लोगों को मरवाया है, हम अब फिर से ऐसी स्थिति उत्पन्न होने नहीं दे सकते हैं!
नोट: इसलाम में औरतों का सच जानने के लिए नीचे पढें:
कहते हो इसलाम में हलाला नहीं है तो फिर पैगंबर साहब ने यह क्या कहा है?
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