कल DDNewsLive पर अशोक श्रीवास्तव के ‘दो टूक’ कार्यक्रम पर आपने देखा कि CPI के कार्ड होल्डर मेंबर और जेएनयू के प्रोफेसर ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर कैसे झूठ बोला कि 1939 में कांग्रेस के चुनाव में नेताजी हार गये थे! जब मैंने उन्हें आनस्क्रीन करेक्ट किया कि नेताजी ने गांधीजी के उम्मीदवार सीतारमैया को करीब 200 वोटों से हराया तो वो तथ्य को झुठलाने के लिए कुतर्क करने लगे।
1938 को लेकर भी उन्होंने झूठ कहा कि नेताजी वामपंथियों के सहयोग से कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। दरअसल 1938 में चुनाव हुआ ही नहीं था। गांधी सहित सभी की सर्वसम्मति से नेताजी अध्यक्ष बने थे। तब वो विदेश में थे, जब उन्हें सूचना मिली थी कि वो कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गये हैं। प्रो. वार्ष्णेय ने एक और झूठ बोला। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के दस्तावेज बताते हैं कि जर्मनी रूस के बाद भारत पर हमला करना चाहता था। दरअसल जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध में किसी एशियाई देश पर हमला किया ही नहीं और न ही कोई एशियाई देश उसकी नीति में था। पूर्वी यूरोप और एशियाई देशों पर इन कम्युनिस्टों के पिता स्टालिन और माओ की नजर थी, न कि जर्मनी की।
लिंक में देखिए, सीपीआई के प्रो का एक के बाद दूसरा झूठ।
एशिया में जापान का खतरा था। नेहरू, ब्रिटेन और कम्युनिस्ट-तीनों नेताजी को नीचा दिखाने के लिए जापान का काल्पनिक भय पैदा कर रहे थे! काल्पनिक इसलिए कि जापानी शासक तोजो ने नेताजी से साफ-साफ कहा था कि जापान भारत पर कब्जा नहीं करना चाहता। यदि जीत होती है तो वहां नेताजी की सरकार शासन करेगी, इसीलिए तो कई देशों ने आजाद हिंद सरकार को मान्यता दी थी! राममनोहर लोहिया ने नेहरू के पैदा किए इस झूठ की कैसी धज्जी उड़ाई थी, आपको पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ पढ़ कर पता चलेगा।
सीपीआई के प्रोफेसर अज्ञानतवश झूठ नहीं बोल रहे थे, बल्कि यह वामपंथी टूल का हिस्सा है। तभी तो हमारा झूठा इतिहास भी इन्होंने लिखा है! प्लीज आपलोग सच पढ़ने की कोशिश करिए, वर्ना हमारी तरह हमारे बच्चे भी झूठ की बुनियाद पर खड़े मिलेंगे।#कहानीकम्युनिस्टोंकी पढ़ कर आपको इनका एक-एक झूठ खुद-ब-खुद पकड़ में आ जाएगा!