पत्रकारिता को धंधा बनाने वाले पूण्य प्रसून बाजपेयी और उन जैसे धंधेबाजों को क्रांतिकारी साबित करते हुए, सत्ता के खिलाफ बुलंद आवाज बनाने का जतन करने वालों को अब उनसे पूछना चाहिए कि तुमने सरकार को बदनाम करने का पहले ठेका लिया था या अब सरकार से कुछ पाने का आश्वासन मिल गया इसलिए पल्टी मार गए! सौदेबाज चेहरों को क्रांतिकारी मानने वालों को अब खुद से भी सवाल करना चाहिए की हमने जी हजूरी की नौकरी करने वालों को क्रांतिकारी क्यों और कैसे मान लिया? कभी सुब्रत राय जैसे मालिक के सामने दंडवत रहने और कैमरे पर अरविंद केजरीवाल के लिए अनैतिक ब्रांडिग करने वाले नैतिकता के क्रांतिकारी चेहरा बन गए! अब उसके पल्टी मारने से पूरी पत्रकारिता सवालों के घेरे में है। एक पूरे खेमे के लिए क्रांतिकारी बन कर उभरे पत्रकार के पल्टी मारने के खेल ने पत्रकारिता की नई पीढी को निराश किया है। उन्हें गड्ढे में डालने का काम किया है।
पत्रकारिता पूर्णतः अनिश्चताओं का पेशा है। बाजार का नियम ‘जो दिखता है वो बिकता है’ यदि सबसे ज्यादा कहीं लागू होता है तो शायद वो टीवी पत्रकारिता है। बीते दशक में टीवी पत्रकारिता के कई बड़े चेहरे नौकरी से बाहर किए जाने के बाद कहां गायब हो गए पता ही नहीं चला। लेकिन हाल में एबीपी न्यूज से निकाले गए स्वयंभू क्रांतिकारी पत्रकार ने ऐसा भ्रम जाल बनाया मानो यह पहली बार हुआ कि कोई पत्रकार नौकरी से निकाला गया।
उससे बढ़कर तो यह कि उसने माहौल बनाया कि मोदी सरकार का पूरा कुनबा उसके प्रोग्राम पर नजर लगाए बैठा था। नौकरी से निकाले जाने के बाद अपने एक आर्टिकल में बाजपेयी ने लिखा था “भाजपा सरकार ने एबीपी न्यूज चैनल को दबाव में लेने के लिए कई कदम उठाए थे और उनके शो ‘मास्टर स्ट्रोक’ को सेंसर करने का प्रयास किया था”। उस आर्टिकल में बाजपेयी ने यह भी लिखा था कि कैसे 200 लोगों की टीम चैनल की मॉनीटरिंग कर रही थी और एडिटर्स को निर्देश दे रही थी कि क्या और कैसे दिखाया जाना है। बाजपेयी का कहना था कि इस टीम के एक सदस्य ने उनसे कहा था, ‘आपके मास्टर स्ट्रोक पर एक अलग रिपोर्ट तैयार की गई है और आपने अपनी रिपोर्ट में जो कुछ भी दिखाया है, उसके बाद कुछ भी हो सकता है। सावधान रहिए।’
अब क्रांतिकारी पत्रकार पूण्य प्रसून ने पल्टी मार दी है। बाजपेयी ने तो माहौल ऐसा बनाया था मानो पूरी मोदी सरकार उनके प्राइम टाईम शो ‘मास्टर स्ट्रोक’ के समय रात के 9 बजते ही उपग्रह को किसी और दिशा में घुमा देती है। यह माहौल सिर्फ बाजपेयी ने नहीं बनाया था। मोदी सरकार से खुंदक खाए वो तमाम पत्रकार और कलमकार थे जो बाजपेयी को शहीद बताकर यह माहौल बना रहे थे मानो बाजपेयी को एबीपी से नौकरी से निकाले जाने के बाद अघोषित आपातकाल लागू हो गया है। माहौल ऐसा बनाया गया मानो उनसे पहले किसी लाला ने किसी पत्रकार को नौकरी से निकाला ही नहीं। तो क्या अनिश्चताओं के इस पेशे में अब तक जितने पत्रकार नौकरी से निकाले गए वो पत्रकार थे ही नहीं। अब उन तमाम क्रांतिवीरो को पल्टीबाज पूण्य से पूछना चाहिए कि क्या उनकी मोदी सरकार से कोई डील हो गई है?
यह सवाल इसलिए क्योंकि देश में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ 22 व 23 सितंबर को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में पूण्य ने अपने पहले के बयानो से पल्टी मारते हुए कहा कि उनके उपर कभी कोई दबाव नहीं रहा।
उस कार्यक्रम में ‘एबीपी’ न्यूज के पूर्व एंकर पुण्य प्रसून बाजपेयी ने चैनल से उनकी विदाई को लेकर हुईं तमाम तरह की बातों को लेकर भी चर्चा की। लेकिन अपनी पूर्व में कही हुई बातों से यू-टर्न लेते हुए उन्होंने सभी को चौंका दिया। ऐसा लगा कि एबीपी न्यूज में उनके ऊपर कोई दबाव नहीं था । बाजपेयी ने कहा ‘इतनी निराशा नहीं है जितनी निराशा में आप लोग यहां बैठे हुए हैं। ऐसी स्थिति तो बिल्कुल नहीं है कि कोई आपको काम करने से रोक रहा है। हमें तो नहीं रोका गया।’ सरकार पर अपने प्रोग्राम की मोनीटरिंग करने का आरोप लगाने वाले क्रांतिकारी पत्रकार यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा, ‘हम लोग बहुत निराशा में इसलिए हैं, क्योंकि हम मान रहे है कि शायद हमें काम करने से रोका जाता है। हम आपको साफ बता दें कि हमें काम करने से बिल्कुल नहीं रोका जाता है।’
पुण्य प्रसून कह रहे कि मौजूदा सरकार में काम करने से कोई नहीं रोक रहा,रोकते थे मनमोहन सिंह।कुछ दिन पहले NDTV के पूर्व पत्रकार ने लिखा कि UPA के मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड दिखाने पर प्रनॉय राय को मनमोहन सिंह से लताड़ पड़ी थी।सवाल ये कि तब की चुप्पी और आज का बेवजह शोर किस लालच में? pic.twitter.com/90BeAX85Xo
— Sushant Sinha (@SushantBSinha) September 26, 2018
पत्रकारों के समक्ष आ रहे दबावों के बारे में बाजपेयी ने कहा कि उन्होंने अब तक इसका सामना नहीं किया है। बाजपेयी ने कहा, ‘कोई भ्रम मत पालिए, हमारे ऊपर न ZEE में कोई दबाव था और न ही आज तक अथवा एबीपी न्यूज में कोई दबाव था। न सहारा में कोई दबाव था और न ही एनडीटीवी में हमारे ऊपर कोई दबाव रहा।’
लगातार पल्टी मारते हुए क्रांतिकारी पत्रकार ने दिव्य ज्ञान दिया कि ‘ये सर्विलांस और ये सेंसरशिप जो है, हमें लगता है कि महत्वहीन है। उसका तो काम है, रोजगार कैसे चलेगा अगर ये चीज नहीं चलेगी। ये तो एक पूरा प्रोसेस है कि आपको इस रूप में करना पड़ेगा।’ अब सवाल लाजमी है कि बाजपेयी तब सही बोल रहे थे कि अब सही बोल रहे हैं!
सच यह है बाजपेयी, अभिसार, रविश या किसी भी नौकरी पेशा पत्रकारों को आप क्रांतिकारी मानते हैं तो मानिए लेकिन तय मानिए कि यदि आपका संपादक यदि उन्ही की तरह आपको अधिकार दे तो एजेंडाधारी पत्रकारों के सच को आप बेहतर समझ पाएंगे। बाजार अक्सर ऐसे लोगों को अपनी औकात दिखाता है कि जो दिखता है वो बिकता है। क्रांतिकारी महान पत्रकार के जिस ‘मास्टर स्ट्रोक’ प्रोग्राम पर सरकार, उपग्रह लगा कर बैठी रहती थी और नौ बजते ही उपग्रह की दिशा बदल देती थी उस प्रोग्राम को एक सामान्य महिला एंकर तो थमा दिया गया। यह संदेश अपने आप में काफी है कि किसी क्रांतिकारी महान पत्रकार को खुद के लिए कितना भ्रम पालना चाहिए! लेकिन उससे हटकर अपने स्वार्थहीत में मौका दर मौका सत्ता संग चेक एंड बैलेंस का खेल खेलने वाले एजेंडाधारी पत्रकार और उनके संग मिलकर एजेंडाधारी पत्रकार को कंपनी द्वारा नौकरी से निकाले जाने को
आपातकाल साबित करने वालों से भी सवाल किया जाना चाहिए कि पत्रकारिता की नई पौध के अरमानों को वे गड्ढे में डालने का काम क्यों कर रहे हैं। पूण्य जैसे महान क्रांतिकारी पत्रकारों के इस पल्टीमार रवैये से यह भी संदेश पर पर्दा उठने उठाने का वक्त आ गया है कि आखिर ऐसे क्रांतिकारी पत्रकारों को करोड़ो रुपये का सलाना पैकेज क्या उनके द्वारा दो चार न्यूज पढने के लिए मिलता है या सत्ता संग सौदेबाजी के लिए!
URL: U-turn of Punya Prasun Bajpai on his Resignation from ABP news
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