दोस्तों देश में समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) को लेकर लंबे समय से बहस चली आ रही है।बीजेपी लम्बे समय से सिविल ड्रेस कोड को लागू करने के पक्ष में हैं वहीँ अन्य पार्टियां इसकी खिलाफत करती नजर आ रही हैं,क्योंकि सामान नागरिक संहिता लाने से पार्टी विशेष की वोट बैंक की राजनीति पर करारा आघात होगा ! पार्टिया चुनाव लाभ लेने के लिए बार बार इस मुद्दे को हवा देकर अपना उल्लू सीधा करती है और उसके बाद भूल जाती हैं और वोटों की राजनीति में हर बार यह मुद्दा ठन्डे बस्ते में डाल दिया जाता है.
बीजेपी ने भी अपने चुनावी एजेंडा में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात की थी! इसकी जिम्मेदारी मैंने अपने कंधो पर उठाई हुई है! मैंने दिसंबर 2015 समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए जनहित याचिका दायर की थी ! चीफ जस्टिस ठाकुर ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे ख़ारिज किया था, उन्होंने कहा था कि देश में सामान कानून संहिता लागू करने का काम राज्य सरकारों के पास है इसलिए वो सरकार अथवा पार्लियामेंट के पास जायें, सुप्रीम कोर्ट इस विषय में कुछ नहीं कर सकता है.
मैं आपको यहाँ पर यह याद दिलाना चाहता हूँ की भारत में गोवा ही एकमात्र राज्य है जिसने समान नागरिक संहिता को लागू कर रखा है, मेरा प्रश्न यह है अगर गोवा कर सकता है तो और राज्यों को इसमें क्या आपत्ति हो सकती है! खैर मैं कोर्ट के इस फैसले से निराश नहीं हुआ बल्कि बिना समय व्यर्थ किये केंद्रीय कानून मंत्री सदानन्द देवगौड़ा को पत्र लिखकर विधि आयोग से राय मांगी थी ! मेरा विश्वास कायम था आने वाले समय पर इस विषय पर चर्चा होगी ! अंततः मेरे विश्वास जीता ,देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में पहली सफलता हाथ लगती दिख रही है ,पहली बार होगा जब सरकार ने विधि मंत्रालय से समान नागरिक संहिता सम्बंधित कोई रिपोर्ट मांगी है! केंद्र सरकार ने विधि आयोग से कहा है कि वह समान नागरिक संहिता बनाने की संभावनाएं तलाश करे ! आयोग के सदस्य सभी राजनीतिक दलों और विभिन्न समुदाय के प्रतिनिधियों से इस पर बातचीत करेंगे.
मैं सभी दलों से अनुरोध करता हूँ की पार्टी राजनीति से उठ कर समाज कल्याण में एक मत हो ताकि समान नागरिक संहिता से समाज के दूसरे अल्प समुदाय वर्ग को देश की मुख्यधारा के साथ जोड़ सकें, समान नागरिक संहिता के विषय में भ्रम की स्थिति बनाने में राजनितिक दलों का बहुत सहयोग है! इसे सीधे तौर पर हिन्दुत्व के साथ जोड़ दिया गया है ! इसके लागू होने का यह बिल्कुल भी मतलब नहीं है कि किसी धर्म विशेष को दूसरे धर्म पर थोप दिया गया हो बल्कि इससे भारत के उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच की खाई को किसी हद तक पाटा जा सकता है.
इस कानून के लागू होने से सबसे ज्यादा महिलाओं की दशा में सुधार होगा. भारत में मुस्लिम समुदाय में बीते सालों में महिलायें आगे आ कर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रही है और इस कानून के लागू होने से भारत में मुस्लिम समाज की महिलाओं के इस प्रयास को बल मिलेगा ! भारत में हिन्दू और मुस्लिम समाज के लिए अलग-अलग कानून हैं और उनके धार्मिक नियमों के हिसाब से लागू होते हैं! जबकि संविधान के (अनुच्छेद 44) अनुसार समान नागरिक संहिता की बात कही गयी है! जब संविधान राज्यों को सामान नागरिक संहिता लागू करने कि अनुमति प्रदान कर रहा है तो इसको लागू नहीं करने में क्या औचित्य है? मेरे हिसाब से समान नागरिक संहिता प्रगतिशील और चिंतनशील राष्ट्र का प्रतीक है ! यह इस बात का द्योतक भी है कि राष्ट्र अपने सभी नागरिकों को एक ही तराजू पर तौलता है तथा देश धर्म-जाति -लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है! भारत में सामाजिक रूप से कोई तरक्की नहीं हुई है चाहे आर्थिक रूप से हम कितने भी आगे आ गए हों.
दीनदयाल उपाध्याय और गुरु गोलवरकर मेरे आदर्श रहे हैं ! एक राष्ट्र एक शिक्षा एक संविधान में मेरा दृढ़ विश्वास है! आज समान नागरिक संहिता चर्चा में है ! मैं एक राष्ट्र एक संविधान की दशा में में काम करता रहूंगा ! मेरा अगला लक्ष्य दो बच्चे और भारत के प्रत्येक राज्य में 6 से 14 साल के बच्चों को सामान शिक्षा का अधिकार मिले ! और मैं इसे लागू करवाने के लिए प्रयासरत रहूंगा.