क्या असहमति के नाम पर हिंसात्मक विरोध और आतंक को जायज ठहराया जा सकता है? अगर नहीं तो फिर कोर्ट में पुणे पुलिस की सलाह पर सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को यह कहना कि “हमे मत बताओ कि हमलोग गलत हैं” तानाशाही को परिलक्षित नहीं करती? सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तार शहरी नक्सली मामले की सुनवाई के दौरान पुणे पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट के वही न्यायधीश आग बबूला हो गए जिन्होंने नक्सली आतंक को असहमति का जामा पहनाकर उसे लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वाल्व कहा था। पुलिस का इतना कहना था कि आतंक को असहमति नहीं कहा जा सकता है। पुलिस की इसी सलाह पर न्यायाधीश आग बबूला हो गए और उन्होंने न्यायधीश पर आक्षेप लगाने के लिए दंडात्मक कार्रवाई करने तक की धमकी दे डाली। जबकि उन माननीय न्यायधीश के खिलाफ शहरी नक्सली को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह के साथ कोई गुप्त समझौता करने का आरोप है। क्या इस प्रकार के बर्ताव से पूरी न्याय प्रक्रिया पर सवाल नहीं खड़ा होता है?
मुख्य बिंदु
किसी जज का ये कहना कि “हमे मत बताओ कि हमलोग गलत हैं” तानाशाही नहीं दिखाती?
शहरी नक्सल गिरफ्तारी मामले में पुणे पुलिस का कोर्ट में अपना पक्ष रखने पर आखिर क्यों बिफरे न्यायधीश?
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने पुलिस पर मीडिया में जाने को लेकर पाबंदी लगाने की मांग की
SC Judge, who had said ‘dissent is the safety valve of democracy’ while hearing bail plea of arrested 'urban naxals’ in Bhima Koregaon violence case comes down heavily on Pune police for “casting aspersions on the Supreme Court judges” https://t.co/NbTzdEcTiA
— Prasanna Viswanathan (@prasannavishy) 6 September 2018
गुरुवार को गिरफ्तार शहरी नक्सलियों के मामले में पुणे पुलिस सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अपना पक्ष रखने पहुंची थी। पुणे पुलिस ने कोर्ट में अपना पक्ष रखने से पहले मीडिया से कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को इस स्तर पर इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उनके अधिकारक्षेत्र में नहीं आता है। इसके साथ ही पुलिस ने मीडियावालों को यह भी बताया कि पुलिस ने पांचों नक्सलियों को आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया है न कि असहमति के लिए। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने नक्सलियों की गिरफ्तारी को लेकर एक बयान दिया था कि “असहमति लोकतंत्र में एक सेफ्टी वॉल्व है”। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पुणे पुलिस के इसी बयान को लेकर सुनवाई के दौरान उस पर आग बबूला हो गए। उन्होंने सुनवाई के दौराण सुप्रीम कोर्ट के जजों पर आक्षेप लगाने के लिए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने तक की चेतावनी दे डाली।
जबकि इस सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तथा शिकायतकर्ताओं के वकील हरीश साल्वे ने याचिकाकर्ताओं की यथास्थिति पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि किसी मामले में तीसरे पक्ष की भागीदारी एक एक गलत मिसाल कायम करेगी।
वहीं इस बीच सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने कोर्ट से पुलिस को मीडिया में अपनी बात रखने पर पाबंदी लगाने की मांग की। उन्होंने पुलिस द्वारा इस मामले में हर दिन प्रेस विज्ञप्ति जारी करने पर आपत्ति जताई। कोर्ट में लोकतंत्र और मीडिया की आवाज का गला घोंटने की पैरवी करने वाली इंदिरा जय सिंह बाहर आकर लोकतंत्र और स्वतंत्र मीडिया की पैरोकार बन जाती है। मालूम हो कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ पर इंदिरा जयंसिह के साथ समझौते करने का आरोप लगता रहा है। बाद में उन्होंने पुणे पुलिस से कहा कि अब यह मामला हमारे पास है और हम नहीं चाहते हैं कि पुलिस हमें बताए कि हमलोग गलत हैं।
URL: Urban naxal Arrest- SC furious with pune cop’s comment
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