जो अभी तक सैकड़ों युवकों का जीवन नष्ट कर चुके हैं। जो कई युवाओं को अपने ही देश के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए नक्सल बनाकर जंगल भेज चुके हैं, वही अब अपने बुढ़ापे में पुलिस से शांतिपूर्ण जीवन की भीख मांग रहे हैं। ये हैं अर्बन नक्सल 68 वर्षीय पुरुषोत्तम ऊर्फ एम के तथा 63 वर्षीया उनकी पत्नी विनोदिनी। इस दंपति को 1991 में नक्सलवाद को बढ़ावा देने के लिए गिरफ्तार किया गया था। मालूम हो कि सरकार ने इनकी गिरफ्तारी पर क्रमशः 8 लाख तथा 5 लाख का इनाम रखा था। अर्बन नक्सलियों के यही चरित्र होते हैं। वे अपने हित के लिए किसी का बलिदान कर सकते हैं।
He was a principal. His wife a teacher. Together they recruited 60 young Naxals, sent them to jungles to fight against India. They ran a publishing front organisation in Hyderabad. But for Girish Karnad and company #UrbanNaxals don’t exist.
Ask them why? https://t.co/CuNJTrujJF
— Vivek Agnihotri (@vivekagnihotri) October 10, 2018
फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री का कहना है कि पुरुषोत्तम एक प्राध्यापक थे और विनोदिनी शिक्षिका। इन दोनों ने मिलकर करीब 60 युवाओं को नक्सल बनाकर देश के खिलाफ लड़ने के लिए जंगल भेजा था, वे हैदराबाद में एक प्रकाशन संगठन चलाते थे, इसके बावजूद अर्बन नक्सल जैसे नक्सली समर्थक दावा करते हैं कि यहां नक्सलियों का कोई अस्तित्व नहीं बचा है। इससे साफ हो जाता है कि ये लोग नक्सलियों के अस्तित्व को खत्म ही नहीं होने देना चाहते। बल्कि नक्सलियों के अस्तित्व को कायम रखना चाहते हैं।
मुख्य बिंदु
* कांग्रेसी नेता की रिहाई के बदले में छोड़े गए अर्बन नक्सल दंपति को वर्ष 1991 में गिरफ्तार किया गया था
* दर्जनों युवाओं को देश के खिलाफ लड़ने के लिए नक्सल बनाकर जंगल भेजे जाते हैं लेकिन गिरीश कर्नाड और उनकी कंपनी को कहीं नक्सल दिखता ही नहीं
जहां तक पुरुषोत्तम और विनोदिनी का सवाल है, तो उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि जब सामर्थ्य था तो देश के खिलाफ षड्यंत्र रचने से लेकर देश को बदनाम करने वाले आलेख लिखने तक का काम किया। इतना ही नहीं कई युवाओं को देश के खिलाफ लड़ने के लिए नक्सल बनाकर जंगल भेज दिया। लेकिन आज जब बुढ़ापा आया तो राजनीतिक विरोध तथा स्वास्थ्य का हवाला देकर हैदराबाद पुलिस से शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए भीख मांगते हुए आत्मसमर्पण कर दिया। । ये नक्सल वृद्ध दंपत्ति प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य हैं। पुलिस का कहना है कि इन्होंने अब अपना जीवन शांतिपूर्ण ढंग से बिताना चाहते हैं।
हैदराबाद के पुलिस कमिशनर का कहना है कि ये दंपति एजिटेशन प्रोपगेंडा कमेटी तथा सीपीआई (माओवादी) के प्रकाशन यूनिट चलाते थे। पुलिस का कहना है किपुरुषोत्तम 1981 में पीपुल्स वार ग्रुप में शामिल होने से पहले एक प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर थे। एक साल बाद ही उन्होंने उसी स्कूल की शिक्षिका विनोदिनी से शादी कर ली थी। बाद में विनोदिनी ने पीपुल्स वार ग्रुप में शामिल हो गई।
विवाद के बाद ही दोनों सीपीआई (माओवादी) के सदस्य बन गए तथा दोनों मिलकर 60 नवयुवकों को नक्सली बनाकर उन्हें सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए जंगल भेज दिया। उनका कहना है कि इन दंपत्ति को 1991 में गिरफ्तार किया था। लेकिन उसी साल युवा कांग्रेसी नेता को छोड़ने के बदले उन्हें रिहा कराया गया। अब पुरुषोत्तम का कहना है कि सीपीआई (माओवादी) ने उसे और उसके योगदान की उपेक्षा करनी शुरू कर दी है। इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया।
URL: Urban Naxals demanding peaceful life by pushing hundreds of youths in NaxalismKeywords: Urban Naxals,
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