उपराष्ट्रपति ने कांग्रेस के महाभियोग अभियान को पलीता लगा दिया है। इसकी आग में कांग्रेस और इस अभियान के अगुआ बने प्रशांत भूषण की मंशा झुलस कर राख हो गयी। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने जैसे ही महाभियोग की सूचना को निरस्त किया प्रशांत भूषण ने आश्चर्य जताते हुई उनकी काबिलियत पर ही सवाल खड़ा कर दिया! काबिलियत पर ही नहीं बल्कि अधिकार पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि जब 64 संसद सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं तो फिर उन्हें यह कहने का अधिकार ही नहीं है कि आरोप नहीं बनते हैं?
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु के अधिकार पर सवाल उठाने वाला प्रशांत भूषण ‘कोर्ट फिक्स’ न कर पाने के कारण सबसे ज्यादा बेचैन है! प्रशांत भूषण की बेचैनी समझी जा सकती है, क्योंकि आज तक कांग्रेस से मिलकर इस वाम लॉबी ने पूरे सुप्रीम कोर्ट को बंधक बना रखा था। वर्तमान CJI दीपक मिश्रा ने तो अपने एक आदेश में प्रशांत भूषण को ‘कोर्ट फिक्सर’ कह दिया था।
गुजरात दंगे में नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए प्रशांत भूषण और तीस्ता सीतलवाड़ हर बार सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आफताब आलम की कोर्ट में ही केस ले जाते थे! बाद में पता चला कि आफताब आलम के पेपर से लेकर उनकी बेटी की NGO फंडिंग तक विदेश से हो रही है। इस के समय प्रशांत भूषण की ‘कोर्ट फिक्सिंग’ नहीं चल पा रही है, इसलिए यह सबसे ज्यादा बेचैन है।
सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया के मामले में कहा भी था कि कुछ लोग अपनी राजनीति व बिजनस हित साधने के लिए जनहित याचिका का दुरुपयोग करते हैं। प्रशांत भूषण उन्हीें में से एक है। इसलिए पहले यह मुख्य न्यायाधीश पर चिल्ला रहा था, अब देश के उपराष्ट्रपति से ही पूछ रहा है कि आपको महाभियोग रद्द करने का अधिकार किसने दिया? सोचिए, 70 सालों से देश को घुन की तरह खा रही इस लॉबी ने देश के आम लोगों का कितना हक मारा है? आज जब इनकी चल नही पा रही है तो इनकी हालत पागलों जैसी हो रही है!
प्रशांत भूषण, उपराष्ट्रपति कितने काबिल हैं या फिर उनके पास क्या अधिकार है इसके बारे में वे आप से ज्यादा जानते हैं। तभी तो उन्होंने आपके आरोप को बेसिर पैर का ठहराया है। यहां उन्होंने अपने सारे तर्क दिए हैं कि आखिर आप किस मंशा से महाभियोग लाने जा रहे हैं और क्यों आपके सारे आरोप गलत हैं जिसके कारण महाभियोग का नोटिस खारिज किया है। समय हो तो पढ़ लीजिएगा।
राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव खारिज करते हुए उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के तर्क…
* इस नोटिस पर 64 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। इसके लिए जज इन्क्वायरी ऐक्ट के सेक्शन 3(1) के तहत विचार करने की जरूरत थी।
* चूंकि यह प्रस्ताव सीधे चीफ जस्टिस के खिलाफ था तो इस मामले में उनसे कोई विधिक राय नहीं ली जा सकती थी। मैंने इसके लिए कानून के विशेषज्ञ, संविधान विशेषज्ञों और राज्य सभा और लोकसभा के पूर्व महासचिवों से चर्चा की। पूर्व लॉ अधिकारियों, लॉ कमिशन के सदस्यों और मशहूर न्यायविदों से भी चर्चा की।
* सांसदों ने अपने प्रस्ताव में ‘हो सकता है’, ‘ऐसा प्रतीत होता है’ जैसे वाक्यों का प्रयोग किया है, जिसे मैं कल्पना मानता हूं। इन आरोपों के साथ सबूत नहीं हैं। ये सभी निराधार हैं।
* मैंने कानून के कई जानकार लोगों से इस प्रस्ताव पर विस्तृत चर्चा की है। मैंने हर आरोप पर निजी तौर पर विचार किया। पूरे विचार विमर्श के बाद ही मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
* मैंने संविधान के प्रस्तावों और जजों को हटाने के मौजूदा प्रावधानों का भी अध्ययन किया। पूरी जांच परख के बाद मैं इस बात से सहमत हूं कि यह नोटिस सही नहीं है।
* रोस्टर बंटवारा भी सुप्रीम को चीफ जस्टिस का अधिकार है और वह मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं। हाल के कामिनी जायसवाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में 14 नवंबर 2017 को 5 जजों की पीठ ने टिप्पणी की थी कि चीफ जस्टिस फर्स्ट अमंग इक्वल हैं। जहां तक रोस्टर का संबंध है तो इस बारे में चीफ जस्टिस के पास बेंच का गठन करने और केसों का बंटवारा करने का अधिकार है। साफ है कि यह कोर्ट का अंदरूनी मामला है और कोर्ट इसपर खुद ही फैसला कर सकती है। विपक्ष के 5 आरोपों को पढ़ने के बाद मेरा मानना है कि ये आरोप स्वीकर नहीं किए जा सकते हैं। इस तरह के आरोपों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ठेस पहुंचती है, जो भारतीय संविधान की मूल भावना है।
* देश के सुप्रीम कोर्ट के सर्वोच्च अधिकारी के खिलाफ इस तरह का फैसला लेने से पहले विपक्ष को इसपर बारीकी से सोचना चाहिए था। क्योंकि इस तरह के प्रस्ताव से आम लोगों का न्यायपालिका में भरोसा घटता है।
* मैंने हर आरोप पर खुद विचार किया। मैंने प्रस्ताव के साथ शामिल हर कागजात का अध्ययन किया। मेरा साफ मानना है कि इन कागजातों के आधार पर चीफ जस्टिस दुर्व्यवहार के दोषी नहीं करार दिए जा सकते हैं।
* इस तरह के प्रस्ताव के लिए एक पूरा संसदीय परंपरा है। राज्य सभा के सदस्यों के हैंडबुक के पैराग्राफ 2.2 में इसका उल्लेख है। यह पैराग्राफ इस तरह के नोटिस को पब्लिक करने से रोकता है। इस मामले में मुझे यह नोटिस सौंपते ही 20 अप्रैल को सदस्यों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला ली और कॉन्टेंट को शेयर किया। यह संसद के परंपरा के खिलाफ था। इस कारण मुझे तुरंत फैसला लेना पड़ा ताकि इस मामले में अटकलों पर रोक लगे।
10-सभी तथ्यों पर विचार के बाद मैं इस नोटिस को मंजूर नहीं कर रहा हूं।
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URL: prashant bhushan misbehave with cji and vice president
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