शैलेश भारद्वाज। किताब के शीर्षक से ही आप समझ गए होंगे की इसमें कम्युनिस्टों की कहानी है। ऐसे कम्युनिस्टों की कहानी जिसने प्रत्यक्ष रूप से कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे, इससे भी महत्वपूर्ण है, जो प्रत्यक्ष रूप से तो कांग्रेसी थे परंतु जिनके विचार, कार्यप्रणाली सभी कम्युनिस्ट की तरह था। जी हां इस किताब में पंडित नेहरू के कम्युनिस्ट चेहरे को बेनकाब किया गया है।
मेरे पीढ़ी के लोगों में कम्युनिस्ट के बारे में तनिक भी जानकारी नहीं है, हो भी कैसे इतिहास ही कम्युनिस्ट के द्वारा लिखी हुई पढाई गई है। इस पीढ़ी की एक और समस्या है दिन-रात गूगल तो प्रयोग करता है लेकिन किताबों से वास्ता नहीं रखता। यदि आप कम्युनिस्टों का सही इतिहास पढ़ना, जानना चाहते है तो इस किताब को जरूर पढ़िए।
कम्युनिस्ट कभी भी देश के प्रति वफादार नहीं रहा, है और रहेगा। इसके कई प्रमाण इस किताब के द्वारा आपको जानने को मिलेगा। कम्युनिस्ट पहले रसिया और अब चाइना को अपना बाप मानता है, उसे इस देश की लेश मात्रा भी फिक्र न थी, है और न रहेगी। ऐसा वो 62 के युद्ध में सिद्ध भी कर चुका है, इसके भी प्रमाण के साथ बताया गया है।
पंडित नेहरू विचारधारा से इतने बड़े कम्युनिस्ट थे की स्टालिन को खुश रखने के लिए अमेरिका द्वारा परमाणु बम भारत को दिए जाने का विरोध किया और चीन के सपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र संघ में लॉबिंग करते रहे। जिस रसिया को पंडित नेहरू सबसे बड़ा दोस्त और चीन को भाई मानते थे, उसी चीन ने 62 में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा और मित्र रसिया ने इन मौके पर मदद देने से इनकार कर दिया। युद्ध में सहायता के लिए जब पंडित नेहरू ने रसिया को सहायता के लिए कहा तो रसिया का जवाब था, भारत भले मित्र है लेकिन चीन हमारा भाई है और उसने नेहरू को सहायता देने से मना कर दिया। युद्ध से पहले भी सरदार पटेल के द्वारा कई बार नेहरू को सचेत किया गया लेकिन उनके आँख पर तो कम्युनिस्ट की पट्टी बंधी हुई थी जिसमें चीन और रसिया के प्रति सिर्फ और सिर्फ सम्मान था।
स्टालिन को खुश करने के लिए पंडित नेहरू ने सबसे पहले अपने बहन को राजदूत बनाकर रसिया भेजा लेकिन दो साल तक स्टालिन उस राजदूत को मिलने का वक्त नहीं दिया, यहाँ तक की भारत के स्वतंत्रता को भी उसने मान्यता नहीं दी थी। मतलब इतने तिरस्कार के बाद भी कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति इतना प्यार तो खुद प्रत्यक्ष रूप से कोई कम्युनिस्ट भी नहीं रखता जितना पंडित नेहरू ने रखा। ऐसे कई जानकारी इस किताब में समेटी गई है ।
कम्युनिस्ट ने सत्ता के लिए पूरे विश्व में 10 करोड़ से ज्यादा लोगों का नरसंहार किया है, जो अभी भी केरल और पश्चिम बंगाल में वो कर रहे हैं । कम्युनिस्ट जब हर तरफ से हारता है तो उसका आखिरी हथियार हत्या ही है, जिसका उदहारण आए दिन केरल में संघ एवं बीजेपी कार्यकर्ता के हत्या करके वो देता है।
मेरा नेटिव प्लेस है, समस्तीपुर जो बिहार का एक जिला है जहाँ से इस किताब के लेखक श्रीमान संदीप देव जी भी आते है, उसके पड़ोसी जिला है बेगूसराय ( कन्हैया कुमार, JNU वही का है) वहां पर कम्युनिस्टों का ऐसा आतंक था कि दिन दहाड़े हत्या तो आम बात थी । कुछ वर्षों पहले तक वहां की सभी विधान सभा के सीट कम्युनिस्ट पार्टी ही जीतती थी । कम्युनिस्ट कैसे गरीब को अमीर के खिलाफ भड़काकर विद्रोह कराते हैं, इसके कई प्रमाण सहित जानकारी दी गई है । इसका एक उदाहरण मैंने खुद देखा है । मेरे एक रिश्तेदार के जमीन पर रातों रात कुछ लोगो ने झुग्गी खड़ी कर दी थी , ये बात मुझे अब समझ आया की वो काम कम्युनिस्टों के द्वारा ही कराया गया था ।
किताब के आखिरी में Cho Ramaswamy के द्वारा लिखा एक लाइन है “If the Left has any future in India, then India has no future left. इसी लाइन से ही लेफ्ट के बारे में आप समझ सकते हैं।
अन्त में यही कहना चाहूंगा कि हमारी पीढ़ी को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए, कम्युनिस्ट और कांग्रेसी कम्युनिस्ट के चेहरा से नकाब उतारता हुआ ढेड़ सारी जानकारी को समेटे ये किताब बहूत ही लाजवाब है। इस किताब की श्रृंखला में ये पहली किताब है, दूसरी का बेसब्री से इंतज़ार है। Sandeep Deo जी को बहुत-बहुत धन्यवाद इस किताब को लिखने के लिए ।