नितिन शुक्ला। रानीगंज की घटना के बाद डर के मारे हिंदू पलायन कर रहे हैं। ABP न्यूज के अनुसार प. बंगाल के आसनसोल से पलायन कर रहे हैं हिंदू समुदाय के लोग!
रानीगंज, नया गोधरा आंखों-देखी, वो आपबीती जो कोई न्यूज़ चैनल नही बताएगा। रानीगंज नाम तो सुना ही होगा? हाल ही के दिनों में रानीगंज बहुत चर्चा में है, रामनवमीं को निकले जा रहे शांतिपूर्ण जुलूस पर अचानक एक समुदाय विशेष ने जम कर पत्थरबाजी की बम फेंके गोलियां चलाईं, ये सब तब हुआ जब जुलूस के साथ बाकायदा पुलिस फ़ोर्स चल रहा था।
आपबीती
हुआ यूं कि रामनवमीं के उपलक्ष्य में जुलूस निकाला जा रहा था (जो कि बरसों से निकाला जाता रहा है) जुलूस जैसे ही रानीगंज के मुस्लिम बहुल इलाके में पहुँचा उसे दूसरी तरफ मोड़ दिया गया और रास्ता बदल दिया गया ताकि मुस्लिम इलाके बचा जा सके और टकराव टाला जा सके। ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा था ‘हिन्दुओ को मुस्लिम इलाकों से निकलने का कोई अधिकार नही है।’ शायद उनकी नज़र में मुस्लिम इलाके भारत का हिस्सा नही है। लेकिन इसके बावजूद अचानक जुलूस पर 1 ईंट फेंकी जाती हैं, इसके तुरंत बाद 4-5 ईंट जुलूस पर आ गिरती हैं, जुलूस के आयोजक जुलूस को वहीं रोक कर साथ चल रही पुलिस को इसकी सूचना देते हैं पुलिस ने कहा आप सब यहीं रुकिए हम देखते हैं, और जुलूस को छोड़ कर पुलिस “देखने” के बहाने आगे बढ़ गयी, पुलिस आगे बढ़ चुकी थी और जुलूस में मौजूद रामभक्त अब एकदम अकेले थे, उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए हथियार भी नही थे क्योंकि जुलूस की परमिशन की पहली शर्त थी कि किसी भी प्रकार का हथियार नही होगा किसी भी व्यक्ति के पास? यहां तक कि लाइसेंसी बंदूक और लाठी तक ले जाने की मनाही थी! पुलिस के गायब होते ही हज़रों ईंट की बाढ़ आ गयी! ऐसा लग जैसे मानो आसमान से ओले की जगह ईंटे बरस रही हों! इसके बाद दोनों तरफ से करीब 10 हज़ार मुसलमानों ने जुलूस को घेर लिया और जम कर पत्थरबाजी बमबाजी की गोलियां चलाईं। पुलिस तो पहले ही भाग चुकी थी, रामभक्त अब मौत के सामने अकेले और निहत्थे खड़े थे। जुलूस में भगदड़ मच गई सब अपनी जान बचाने इधर उधर भागने लगे। जिसे जहां जगह मिली वो वहां छुप गया, और जैसे तैसे अपनी जान बचाई, सड़क पर छूट गयी गाड़ियों में भगवान की मूर्ति व तस्वीरें तोड़ दी गईं और गाड़ियों में आग लगा दी गयी। ॐ लिखे भगवा झंडे व भगवान् की तस्वीरें जला दी गईं। सभी रामभक्त छुप कर चुपचाप यह सब देखते रहे। करीब 1 घंटे बाद RAF वहां पहुँची बड़ी मशक्कत के बाद रामभक्तों को उस जगह से निकाला गया और RAF की गाड़ियों में भर कर घर तक पहुँचाया गया (जैसा कि जुलूस में मौजूद एक रामभक्त ने अपनी आपबीती सुनाई) ।
सुनियोजित था आतंकी हमला!
सवाल ये उठता है कि आखिर इतने सारे बम आए कहाँ से? इसका जवाब रानीगंज में ही छुपा हुआ है। 10 फरवरी को रानीगंज इलाके में ही पुलिस ने बम बनाने की सामग्री का एक बड़ा जखीरा पकड़ा था। जिसमें 1000 जिलेटिन स्टिक, 500 डेटोनेटर, और 10 कट्टे(बैग) अमोनियम नाइट्रेट के पकड़े गए थे। यानी इतनी सामग्री जिसमे बड़े धमाके कर के पूरे शहर को नेस्तनाबूद किया जा सकता था। ज़खीरा ले जा रहे शेख मुस्तकविर को पुलिस ने विस्फोटक सामग्री के साथ गिरफ्तार कर लिया था।
सोती रही ममता सरकार!
10 फरवरी को इतना बड़ा ज़खीरा पकड़ा जाता है और फिर भी पुलिस के कान खड़े नही हुए? क्योंकि इसके ठीक बाद होली, नवरात्रि और रामनवमीं आने वाली थी! यानी यह साफ संकेत थे कि आने वाले हिन्दू त्यौहारों पर किसी बड़े हमले की साजिश की जा रही थी लेकिन सब कुछ सामने दिखते हुए भी #TMC सरकार सिर्फ वोट बैंक की ख़ातिर धृतराष्ट्र बनी रही? घर-घर सर्च आपरेशन क्यों नही चलाया गया? क्यो नही बम पहले ही बरामद कर लिए गए?
गहरी साजिश का अंदेशा!
तो क्या सब कुछ पहले से ही प्लान कर रखा था दंगाइयों ने? आइये ज़रा घटना क्रम पर एक बार फिर नज़र डालते हैं!
1. जुलूस में किसी भी प्रकार के हथियार और लाठी पर बैन था यानी रामभक्त निहत्थे थे और किसी भी प्रकार से लड़ने में सक्षम नही थे?
2. सबसे पहले एक ईंट जुलूस पर फेंकी गई, इसके तुरंत बाद 4-5 ईटें फेंकी गई, फिर ईटें रुक गयीं!
3. पुलिस मौके मुआयना के बहाने धीरे से वहाँ से निकल ली, इसके तुरंत बाद ईटों और बमों की बारिश हो गयी!
तो क्या पहले 1 ईंट इसके बाद 4-5 ईटें कोई सिग्नल था? क्या यह पुलिस को वहाँ से निकल जाने का इशारा था कि आप निकल जाओ अब दंगा शुरू होने वाला है? पुलिस के वहाँ से जाने के तुरंत बाद सारा तांडव हुआ! 10 हज़ार लोगों ने चारों तरफ से रामभक्तों को घेर लिया और जम कर बम व गोलियां चलाईंक! प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि सब कुछ Pre-Planned था! आखिर इतनी जल्दी 10 हज़ार लोग कैसे इकठ्ठे हो गए एक ही जगह पर? इतनी जल्दी इतने सारे बम कहाँ से आ गए? हजारों ईंटें कैसे पहुँच गयी वहाँ?
गोधरा रिपीट करना चाहते थे!
तो क्या जिस प्रकार गोधरा में एक सुनियोजित तरीके से रामभक्तों को जिंदा जला दिया गया था वैसा ही कुछ प्लान रानीगंज में भी था? सारे साक्ष्यों को जोड़ कर देखें तो यह शक और भी गहरा हो जाता है जिस प्रकार से गोधरा में रामभक्तों को घेर के जिंदा जलाया गया था। उसी प्रकार रानीगंज में भी रामभक्तों को चारों तरफ से घेर लिया गया और जम कर बमबारी हुई लेकिन किस्मत से इस बार रामभक्तों को छुपने के लिए जगह मिल गयी थी वर्ना सभी बेमौत मारे जाते? शुक्र मनाइये सिर्फ एक ही रामभक्त की जान गयीं, बताया जाता है उसे घेर कर मारा गया उसकी गर्दन काट दी गयी।
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सुरक्षा में चूक या जानबूझ कर अनदेखी!
सूत्रों की माने तो इंटेलिजेंस इनपुट साफ तौर पर बता रहे थे कि हिन्दू त्यौहार पर बड़े हमले की साजिश हो रही है। इस बावत ममता सरकार को भी चेताया गया था, लेकिन सरकार ने इस पर कोई कार्यवाही नही की! यदि इंटेलिजेंस इनपुट को एक तरफ रख दें तब भी सरकार को उसी समय सचेत हो जाना चाहिए था। जब उन्ही की पुलिस ने उसी रानीगंज इलाके में विस्फोटकों का इतना बड़ा ज़खीरा पकड़ा था। तो क्या सरकार जानबुझ कर कार्यवाही करने से बचती रही?
तुष्टिकरण की राजनीति
हिंदुत्व के प्रतीक त्रिशूल को हथियार बताना! बम बनाने वालों पर कार्यवाही ना करना! पुलिस की उपयुक्त मात्रा में तैनाती ना करना यही बात रहा है कि कहीं न कहीं सरकार के फैसले वोटबैंक की राजनीति से प्रेरित हैं। इतना ही नही शहीद हुए रामभक्त को अभी तक कोई मुआवज़ा नही दिया गया है। न ही घायल रामभक्तों को इलाज के लिए पैसे दिए गए, उल्टा जब वे पुलिस से मदद मांगने गए तो पुलिस ने उन्ही पर लाठीचार्ज कर दिया। दंगाइयों और पुलिस से पीटने के बाद रामभक्तों पर अब पुलिस केस बनाये जा रहे हैं। उन्हें झूठे केसों में फ़साया जा रहा है।