#अनुजअग्रवाल, संपादक (डायलॉग इंडिया एवं महासचिव, मौलिक भारत)
कश्मीर में अर्धसैनिक बलों पर आतंकी हमले में हमारे अनेक जवान मारे गए और अनेकों घायल हो गए। जनता को उम्मीद थी के जब मोदी सरकार आ गयी है तो अंततः आतंकवाद और सीमा पर झड़पो व घुसपैठ से जल्द निजात मिल जायेगी किंतू ऐसा होता नहीं दिख रहा । आखिर क्यों? दोस्तों, दक्षिण एशिया में आतंकवाद का जनक अमेरिका रहा है। अस्सी के दशक के प्रारम्भ में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया था तब अमेरिका ने अनेक अफगानी व पाकिस्तानी जनजातियों को सोवियत संघ के विरुद्ध भड़काया, पैसे और हथियार दिए साथ ही सैनिक प्रशिक्षण भी दिया। ये कबायली समूह सोवियत संघ से न मिल जाएं ,इसके लिए सऊदी अरब और पाकिस्तान की सहायता से कट्टरपंथी बहाबी इस्लाम के बीज इनमे बोये गए। इन बहानो के बीच दक्षिण एशिया दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा युद्ध मैदान बन गया।
सोवियत संघ व अमेरिका की भारी भरकम उपस्थिति के कारण जहाँ चीन को अपनी सैन्य ताकत बढ़ानी पड़ी वहीं अमेरिका द्वारा समझोते के तहत पाकिस्तान की सेना को आधुनिक हथियारों से लाद दिया गया ताकि सोवियत संघ से मुकाबला किया जा सके। प्रतिरक्षा में भारत को भी अपनी सैन्य ताकत और हथियारों के जखीरो में लगातार बढ़ोत्तरी करनी पड़ी। सन 1990 तक सोवियत संघ का विभाजन हो गया था और अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित आतंकी गुट जो अब अनियंत्रित हो गए थे का इस्तेमाल पाकिस्तान अमेरिका के इशारे पर ,कश्मीर की आजादी के नाम पर भारत के विरुद्ध करने लगा, जिस कारण भारत में आतंकी घटनाएं बढ़ती गयी। अमेरिका का छिपा एजेंडा इस क्षेत्र में लगातार अस्थिरता पैदा रखना है ताकि उसका और उसके मित्र देशों का हथियारों का कारोबार बेरोकटोक चलता रहे।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद मित्र देशों ने जब भारत को आजाद किया था तो जानबूझकर विभाजन कराकर किया था और कश्मीर मुद्दे को उलझाया गया था ताकि इस मुद्दे पर तनातनी बनी रहे और दोनों देश लड़ते रहे और उनसे हथियार खरीदते रहें। इसी रणनीति के तहत अमेरिका पाकिस्तानी सेना को न केवल पालता है वरन् उसकी और पाकिस्तानी गुप्तचर सेवा आई एस आई के माध्यम से लगातार आतंकी गुटो को प्रशिक्षण एवं हथियार देता रहता है। साथ ही सऊदी अरब के माध्यम से भारत व पाकिस्तान के मदरसो को बहाबी कट्टर पंथी इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए मोटी फंडिंग कराता रहता है। 9/11 के बाद ओसामा बिन लादेन और अलकायदा को नष्ट करने के बहाने अमेरिका पिछले एक दशक से अफगानिस्तान में मौजूद है और पूरा उपमहाद्वीप हिंसा, आतंक , ड्रग्स और सीमाओ पर झड़पो के साथ साथ सांप्रदायिक दंगो से त्रस्त है। जबकि सच्चाई यह है कि लादेन और अलकायदा दोनों को अमेरिका ने ही पनपाया है और अब आईएस आईएस को भी। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में चीन के आर्थिक शक्ति बन जाने के बाद ड्रग्स,पोर्न,आई टी और हथियार ही कमाई के बड़े श्रोत हें। इस कमाई को बनाये रखने के लिए ही वह दक्षिण एशिया में अपनी सैन्य उपस्थित तो बनाये ही रखता है साथ यहाँ से चीन को तो साधता ही है , भारत व पाकिस्तान को भी साधता रहता है। पाकिस्तान में उसके एजेंट सेना और आईएसआई के साथ ही सऊदी अरब से फंडेड आतंकी गुट हें तो भारत में अनेक राजनीतिक दल और फोर्ड फाउंडेशन से जुड़ा नेटवर्क।
अमेरिका और मित्र देश भारत व पाकिस्तान के साथ ही इस क्षेत्र के अन्य देशों को अपने आतंकी और अंडरवर्ल्ड के साथ ही मीडिया, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक दलो के माध्यम से उलझाकर अपने हित में अधिक से अधिक व्यापारिक सौदे कराते रहते हें।चीन भी इस खेल में हाथ साफ़ करता रहता है और यह काम वह नक्सलियों और चर्च के नेटवर्क को इस्तेमाल कर करता रहता है। जब तक हमारी सरकार और राजनीतिक दल इन शक्तिशाली देशो के चंगुल से नहीं निकलेंगे आतंकी हमले, नक्सली वारदाते, सांप्रदायिक दंगे , जातीय हिंसा और सीमा पर झड़पें होती ही रहेंगी। इस चंगुल से निकलने का एक ही रास्ता है हम देश को सर्वोपरि माने, आयातित वस्तुओ का प्रयोग बंद कर दे और अपने उधोग धंधे अपनी तकनीक विकसित कर लगाएं और अपने हथियार भी स्वयं बनाएं। हिम्मत है यह चुनोती लेने की हम सब में। अगर नहीं , तो यूँही तिल तिल कर मरते रहें, किलसते रहें। क्योकि हमारे हुक्मरान बिके हुए हें,कायर हें या उनकी कनपटी पर बंदूक रही है और हम सोये हुए। और हमले होते रहेंगे और उनकी आड़ में हमे खोखला करने वाली डील भी।