घोर अभाव में दूध के बदले ग्लूकोस पानी पीकर,दिव्या काकरान ने एशियाड में अपने शानदार प्रदर्शन से भारतीय महिला पहलवानी को जो दिव्यता प्रदान की पूरा देश उसका कायल है। लेकिन दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिव्या को दूध की मख्खी की तरह बाहर कर दिया है। राष्ट्रमंडल और एशियाड में दिल्ली का मान बढ़ानेवाले दिव्या को छोड़ कर सभी 12 खिलाड़ियों को सरकार ने मालामाल करने का फैसला किया है। पूरे एशिया को पटखनी देकर जिसने भारत को पहलवानी का कांस्य दिलाया केजरी सरकार ने तय कर लिया कि उसे बदहाली से निजात नहीं पाने देंगे। मतलब! दिव्या को पहले की तरह ही पैसे के लिए तड़पाया जाएगा ताकि वो दूबारा किसी को पटखनी देने के लिए अखाड़े में उतरने लायक न रह सके।
जानते हैं दिव्या को दिल्ली की ये तानाशाही सरकार ने प्रताड़ित करने का फैसला क्यों लिया है? बस इसलिए क्योंकि हाल ही में एशियाड और कॉमनवेल्थ खेल में भारत का मान बढ़ाने वाले दिल्ली के जिन खिलाड़ियों को केजरीवाल सरकार ने सम्मानित करने के लिए भोज पर बुलाया था उसमें अपना दर्दे बयां करते हुए दिव्या ने कहा था…सरकारें जीतने के बाद तो हमारा सम्मान करती है हमारे ऊपर पैसे लूटाती है लेकिन जब प्रैक्टिस के समय मदद की जरुरत होती है तो सरकारें कन्नी काटती है।
दिव्या ने हाल ही में दिल्ली सरकार के द्वारा एशियाड में पदक विजेताएं के लिए आयोजित एक सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री केजरीवाल को याद दिलाया कि कैसे एशियाड से पहले जब सरकार के सामने उसने मदद की गुहार लगाया था तो अधिकारी और मंत्री फोन तक नहीं उठाते थे। दिव्या ने कहा उसके साथ यह सब तब हुआ जबकि उसने कॉमनवेल्थ खेल में अपनी पहचान बना ली थी। दिव्या की यह खरी खरी केजरीवाल सरकार को रास नहीं आई। उसने दिल्ली के जिन 12 खिलाड़ियों को आर्थिक सहायता की लिस्ट जारी की उसमें से दिव्या का नाम छांट दिया।
दरअसल कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में मैडल जीतने वाले खिलाड़ियों को दी जाने वाली राशि के लिए दिल्ली एजुकेशन डिपार्टमेंट के स्पोर्ट्स ब्रांच ने नोटिफिकेशन जारी किया है। दिल्ली सरकार की कैबिनेट में पिछले महीने हुई बैठक में एशियन, कॉमनवेल्थ और ओलिंपिक गेम्स में मैडल जीतने वाले खिलाड़ी को दी जाने वाली इनाम की राशि में बढ़ोतरी की मंजूरी दी थी। 12 खिलाड़ियों को इसका लाभ मिलेगा। लेकिन लाभार्थी खिलाड़ियों की सूची में एशियाड में दिल्ली का मान बढ़ाने वाली दिव्या का नाम शामिल नहीं है। संकेत साफ है कि केजरीवाल को दिव्या की खरी-खरी रास नहीं आई जिसमें सरकार से निवेदन किया गया था कि जरुरत के समय खिलाड़ियों को मदद किया जाए। जीत के बाद पैसे दिए जाने के बहुत मायने नहीं होते! यही पैसे यदि पैक्टिस के समय अभावग्रस्त खिलाड़ियों पर सहायता के रुप में खर्च किए जाते तो पदक तालिका में भारत का स्थान कुछ और होता। हो सकता है कि वो और बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी।
दिव्या का व्यवस्था से किया गया यह सवाल न सिर्फ वाजिब था बल्कि आम भारतीयों का दर्द था कि आबादी में दुनिया का दुसरा सबसे बड़ा देश लेकिन खेल के महाकुंभ में तो छोड़िए एशियाड में एक एक पदक के लिए तरसता है। जब खिलाड़ियों पदक मिलता है राज्य से लेकर केंद्र सरकार उसे मालामाल करने लगती है। व्यवस्था परिवर्तन के लिए आंदोलन से निकल कर खासमखास बन गए केजरीवाल को यह नागवार गुजरा। और उसने दिव्या को उसके दर्दे बयां के लिए कठोर सजा दे दी। समझा जा सकता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलाव के लिए आंदोलन खड़ा करने वाला कितना बड़ा तानाशाह हो गया है।
दुर्भाग्य है देश में कभी कोई सवाल नहीं करता कि आखिर इतना बड़ा मुल्क दिल्ली से भी छोटे-छोटे देश के सामने पदक तालिका में पीछे क्यों रहता है? कारण बस यही है कि 21वीं सदी में भी हमारी सरकारें काबिल खिलाड़ियों को मुलभूत सुविधाएं नहीं दे पाती। विजेता बनने के बाद खिलाड़ियों पर पैसे लूटाती है लेकिन बेहतर खिलाड़ियों को निखारने के लिए न कोई नियत है न नीति। जब कोई दिव्या गरीबी और बदहाली से निकल कर दुनिया को पटखनी देते हुए व्यवस्था पर सवाल करती है तो जन आंदोलन से निकलकर तानाशाह बने शासक द्वारा उसे इस तरह चारोंखाने चित्त कर दिया जाता है कि वो दुबारा उठ ही न सके। दिव्या उसकी बेहतरीन उदाहरण है।
साफ है केजरीवाल की दिव्या से नाराजगी के चलते ही लिस्ट में से उसका नाम गायब है क्योंकि केजरीवाल तो अपनी पार्टी में अपने खिलाफ बोलने वालो को पार्टी में नहीं रहने देता फिर सबके बीच में दिल्ली सरकार को आइना दिखाने की जुर्रत करने वाली इस खिलाड़ी को केजरीवाल कोई फायदा कैसे दे सकते हैं? इसलिए पहला मौका मिलते ही गरीबी और बदहाली से निकलकर पूरे एशिया को पटखनी देने वाली दिव्या को चारोंखाने चित्त कर दिया केजरीवाल ने।
68 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती में भारत को पदक दिलाने वाली दिव्या महिला पहलवानी का जाना पहचाना नाम है। लेकिन पदक हासिल करने तक का उसका सफर बेहद दर्दनाक है। उसके पिता के मुताबिक बेटी के लिए उनके पास दूध तक नहीं होते थे। दूध के बदले अक्सर ग्लूकोस देकर दिव्या को अखाड़े में उतारा जाता था। दिव्या को अक्सर पुरुष पहलवानो से लड़ाया जाता था ताकि कोई खुश होकर ईनाम में कोई राशि दे दे।
दिव्या के भाई भी कभी भारत के लिए पदक जीतने की चाहत पाले था लेकिन परिवार के हालात ऐसे नहीं थे कि दो दो पहलवानों का पेट भरा जा सके। लिहाजा भाई ने बहन की पहलवानी में दिव्या प्रदान करने के लिए खुद को झोंक दिया। गरीबी और बदहाली से लड़ते हुए देश का मान बढ़ाने वाली दिव्या ने अपना दर्द अपनी सरकार से व्यक्त किया ताकि कोई बदहाल दिव्या अखाड़े में जाने से पहले निढ़ान न हो जाए। हर दिव्या को इतनी मदद मिले कि वो देश का मान बढ़ा सके लेकिन सत्ता के नशे में स्टालिन की भांति अहंकार पाले केजरीवाल हर उस आवाज को दबा देना चाहते हैं। सरकारे यदि केजरीवाल मोड में हो तो कैसे उम्मीद की जाए कि भारत दुनिया में खेल के मंच पर कभी सीना ताने खड़ा रह सकता है?
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