अयोध्या इस समय देश का सबसे हॉट टॉपिक है। ऐसे समय में वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा की अयोध्या पर प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित दो पुस्तकें ‘युद्ध में अयोध्या’ और ‘अयोध्या का चश्मदीद’ हाल ही में आयी हैं। यह दोनों पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई कि इसका पहला संस्करण आते ही समाप्त हो चुका है।
1986 में ताला खुलने से लेकर, शिलान्यास, कारसेवा और बाबरी ध्वंस की हेमंत शर्मा ने न केवल अयोध्या की रिपोर्टिंग की है, बल्कि उसके चश्मदीद भी रहे हैं। ऐसे समय जब अयोध्या निष्कर्ष के मुहाने पर खड़ा है तो हेमंत शर्मा ने अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन को केंद्र में रखकर उस राजनीतिक साजिश से पर्दा उठाने का प्रयास किया है, जिसके कारण राममंदिर मामला आज तक लटका हुआ है। अयोध्या पर लिखने वाले समकालीन लेखकों मीनाक्षी जैन की ‘राम एंड अयोध्या’ या फिर किशोर कुणाल की ‘रिविजिटेड अयोध्या’ से हेमंत शर्मा की किताब विषय वस्तु के मामले में एकदम से अलग है। उन दोनों की किताब में जहां ऐतिहासिक अयोध्या है, वहीं हेमंत शर्मा की किताब में जन-अयोध्या। अयोध्या होने के बावजूद तीनों किताब की विषय वस्तु अलग है।
हेमंत शर्मा की किताब जब आयी और इसका लोकार्पण संघ प्रमुख मोहन भागवत व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने किया। इसे लेकर तत्काल ही वामपंथियों पत्रकारों व लेखकों ने यह सवाल उछाला कि इस किताब को जानबूझ कर ऐसे समय पर लाया गया है ताकि देश में अयोध्या आंदोलन के पक्ष में एक माहौल बने। हेमंत शर्मा ने तब मंच से ऐसे वामपंथी हमलावरों को ‘मेरे वाम चलने वाले मित्र’ कह कर जवाब भी दिया था कि ‘आजादी के बाद अयोध्या में हुई पांच बड़ी घटनाओं में से चार का मैं चश्मदीद रहा हूं तो फिर अयोध्या पर मैं नहीं लिखूंगा तो कौन लिखेगा?’
वामपंथियों की दाल नहीं गली, इसलिए उन पर ‘साहित्यिक चोरी’ का झूठा आरोप लगाकर हमला किया गया। और दुख की बात है कि इस हमले का नेतृत्व ‘राम एंड अयोध्या’ लिखने वाली प्रोफेसर मीनाक्षी जैन के परिवार के अंग्रेजी पत्रकारों ने किया। उन्होंने हेमंत शर्मा को ‘साहित्यिक चोर’ के रूप में लांक्षित करने का प्रयास किया। चूंकि मीनाक्षी जैन के भाई सुनील जैन एक अंग्रेजी अखबार में बड़े ओहदे पर हैं, इसलिए उनके द्वारा ट्वीट पर फैलाए झूठ को राम मंदिर आंदोलन की साजिश के पर्दा उठने से बौखलाए अंग्रेजी बिरादरी के वामपंथी पत्रकारों व लेखकों ने खूब फैलाया।
BJP/RSS top brass @AmitShah @rajnathsingh Mohan Bhagwat @RSSorg all in attendance at a book function to fete the author of a book on Ayodhya.Turns out large parts of the book by Hemant Sharma were a lift of my sister Meenakshi Jain's Rama & Ayodhya! Wonder if they're embarrassed? https://t.co/q6UYJfX6G3
— Sunil Jain (@thesuniljain) November 1, 2018
इस झूठ को मीनाक्षी और सुनील जैन से ही जुड़ी एक अन्य पत्रकार संध्या जैन ने पहले फैलाया और इसके लिए एक अनाम व्यक्ति के अमेजन रिव्यू का सहारा लिया गया। संध्या जैन यदि किसी पत्रकार या लेखक की आलोचना का सहारा लेती, जो उनकी गंभीरता समझ में भी आती, लेकिन सोशल मीडिया के एक ऐसे व्यक्ति के कंधे का उन्होंने सहारा लिया, जो न तो कोई साहित्यकार है और न ही पत्रकार, बस एक आम रिव्यूअर है, जिसने अमेजन पर किताब की समीक्षा से ज्यादा हेमंत शर्मा पर हमला किया है, जो दर्शाता है कि उसकी रूचि किताब की आलोचना में कम हेमंत की निंदा में ज्यादा है।
एक पत्रकार होते हुए भी संध्या और सुनील जैन ने हेमंत के चारित्रिक हनन से पहले एक बार भी मीनाक्षी और हेमंत की किताब को तुलनात्मक रूप से पढ़ने का प्रयास नहीं किया, बस एक छिछले-से अमेजन रिव्यू को आधार बनाकर यह प्रोपोगंडा फैलाया कि हेमंत ने मीनाक्षी जैन की किताब के घटनाक्रम को हूबहू उठाकर साहित्यिक चोरी की है।
मैंने कुछ दिनों के भीतर अयोध्या पर मीनाक्षी जैन, किशोर कुणाल, देवेंद्र स्वरूप और हेमंत शर्मा-चारों की किताब पढ़ी है, इसलिए मुझे लगा कि हिंदी के एक लेखक की मौलिकता को खंडित करने का अंग्रेजी पत्रकारों द्वारा यह जो प्रयास हो रहा है, उसका सच सामने लाना चाहिए। सुनील जैन-संध्या जैन की पत्रकारिता अमेजन के जिस रिव्यू पर टिकी है, वह पढ़ने से ही पता चल जाता है कि समीक्षक ने किताब क्या उसकी भूमिका तक ठीक से नहीं पढ़ी है। इसीलिए उसके रिव्यू में किताब की समीक्षा कम, लेखक की निंदा ज्यादा है। हो सकता है, लेखक से उसकी कोई निजी समस्या हो, या जो भी हो, लेकिन कम से कम यह तो स्पष्ट है कि उसने किताब नहीं पढ़ी है। अब इसे मैं क्रमवार तरीके से सामने रखता हूं-
विषय-वस्तु
हेमंत शर्मा और मीनाक्षी जैन की किताब के केंद्र में भले ही अयोध्या हो, लेकिन दोनों का केंद्रीय विषय वस्तु बिल्कुल ही अलग है। मीनाक्षी जैन की किताब की केंद्रीय विषय वस्तु जहां एकेडमिक अयोध्या है, वहीं हेमंत की किताब की विषय वस्तु जन-अयोध्या है, इसलिए साहित्यिक चोरी का सवाल ही पैदा नहीं होता।
मीनाक्षी जैन की पूरी किताब इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले, उसमें पेश किए गये पुरातात्विक एवं अन्य साक्ष्य, वहां पेश की गई गवाही और मार्क्सवादी इतिहासकारों की गवाही से निकले झूठ को खोलती है। मीनाक्षी जैन स्वयं एक इतिहासकार हैं, इसलिए अदालती आदेश से निकाल-निकाल कर मार्क्सवादी इतिहासकारों के झूठ को उन्होंने बहुत ही बेहतरीन तरीके से बेनकाब किया है। मीनाक्षी की किताब की सबसे बड़ी कमी उसमें अयोध्या आंदोलन का सतही तौर पर उपस्थित होना है। इस किताब को पढ़कर आप अयोध्या में राममंदिर के ऐतिहासिक साक्ष्य से तो परिचित हो जाएंगे, लेकिन उस मंदिर के लिए चले इतने लंबे आंदोलन को आप सतही तौर पर ही समझ पाएंगे। 1980-90 के दशक में चले राम मंदिर आंदोलन का पक्ष उनकी किताब में इतना कम है कि उससे अधिक आप गूगल करके या उस समय के अखबारों को पढ़कर जान सकते हैं। यह किताब पूरी तरह से एकेडमिक लोगों के लिए है और इसकी अपनी महत्ता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय के बाद कुछ ऐसी ही पुस्तक किशोर कुणाल ने लिखी, लेकिन यह मीनाक्षी जैस से कहीं अधिक विस्तृत और अधिक साक्ष्य युक्त है। किशोर कुणाल अयोध्या आंदोलन के समय गृहमंत्रालय में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी थे, इसलिए उनकी पहुंच अयोध्या से जुड़े उन अभिलेखों और साक्ष्यों तक हुई जो आम लेखकों के लिए जुटाना मुश्किल था। कुणाल ने उसे ही आधार बनाया है। कुणाल की किताब मूल रूप से अयोध्या के ऐतिहासिक साक्ष्यों को उस समय उपस्थित साहित्यों के आधार पर आज के समक्ष प्रस्तुत करती है। 1600 से 1800 ईस्वी के बीच भारत आए विदेशाी यात्रियों, लेखकों, सल्तनत व मुगलकालीन लेखकों आदि के लेखों में उपस्थित अयोध्या का साक्ष्य कुणाल की पुस्तक में बेहतरीन ढंग से प्रकट होकर आता है। कुणाल की किताब सही मायने में एक दस्तावेज है।
इन दोनों से उलट हेमंत शर्मा की पुस्तक में एक लेखक से अधिक पत्रकार उपस्थित है। हेमंत शर्मा की पुस्तक इन दोनों के बाद आयी है, लेकिन उनकी जनसत्ता के लिए की गई रिपोर्टिंग, उन दोनों लेखकों से दशकों पहले की है, इसलिए हेमंत की किताब में एकेडमिक लेखक से अधिक एक चश्मदीद पत्रकार मौजूद है। हेमंत की किताब मूल रूप से अयोध्या आंदोलन पर आधारित है, इसलिए वह किताब की शुरुआत भी मीनाक्षी या कुणाल की तरह ऐतिहासिक अयोध्या से नहीं, बल्कि बाबरी ध्वंस से करते हैं। हेमंत की किताब में अयोध्या आंदोलन के साथ उस आंदोलन के पक्ष-विपक्ष में चली वह राजनीतिक साजिश भी प्रकट होती है, जो केवल एक इनसाइडर ही लिख सकता है, कोई एकेडमिशियन नहीं।
सुनील और संध्या जैन को बता दूं कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने दोनों पक्षों में बातचीत के लिए कई सारी कमेटियां बनाई थीं, उनमें से एक कमेटी में प्रभाष जोशी और रामबहादुर राय जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी थे। हेमंत प्रभाष जोशी के कारण उन कमेटियों की बैठकों के इनसाइडर गवाह रहे हैं, इसलिए बिना शक, अयोध्या आंदोलन इनकी किताब में बहुत ही गहरे तरीके से उभर आया है। अयोध्या के राजनीतिक पक्ष को हेमंत की किताब से बेहतर समझा जा सकता है। सुनील जैन को ठीक से अपन बहन की किताब पढ़नी चाहिए। उनकी बहन की किताब में ऐतिहासिक अयोध्या है, जबकि हेमंत की किताब में राजनीतिक अयोध्या ज्यादा है।
संध्या और सुनील जैन इतिहास के घटनाक्रम पर किसी का कॉपी राइट नहीं होता
संध्या जैन ने ट्वीट कर यह आरोप लगाया है कि हेमंत ने मीनाक्षी जैन की किताब से ऐतिहासिक घटनाक्रम की चोरी की है। यह बेहद हास्यास्पद बात है। मीनाक्षी जैन ने खुद ही वह घटनाक्रम इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय से लिया है। इतिहास की घटना पर किसी का कॉपी राइट कैसे हो सकता है, यह तो संध्या और सुनील जैन ही बता सकते हैं? मेरे ख्याल से मीनाक्षी जैन भी इन दोनों के इस कुतर्क से सहमत नहीं होंगी।
संध्या जैन ने जिस तरह ऐतिहासिक बिब्लोग्राफी यानी घटनाक्रम पर मीनाक्षी जैन के कॉपी राइट का दावा कर दिया है, और यह आरोप लगाया है कि हेमंत शर्मा ने मीनाक्षी की किताब से घटनाक्रम को यथावत उठा लिया है तो बता दूं कि मीनाक्षी की किताब से कहीं अधिक विस्तृत घटनाक्रम की व्याख्या किशोर कुणाल की किताब में है। इसलिए जो ऐतिहासिक घटनाक्रम या साक्ष्य इलाहाबाद अदालत के निर्णय में आ चुका है, उस पर किसी का कॉपी राइट नहीं हो सकता। ऐतिहासिक तिथि की अपनी-अपनी व्याख्या है। मीनाक्षी और हेमंत की व्याख्या कहीं से भी नहीं मिलती है। विषय वस्तु के बाद घटनाक्रम की चोरी का भी सुनील, संध्या और मीनाक्षी जैन के समर्थकों का दावा पूरी तरह से खारिज होता है।
इंडिया स्पीक्स डेली युद्ध में अयोध्या पुस्तक के आधार पर इसी नाम से अयोध्या पर श्रृंखलाबद्ध तथ्य-परक खबरों का प्रकाशन कर रहा है। अन्य खबरों को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक ओपन करें-
युद्ध में अयोध्याः जब राम मंदिर की सच्चाई उजागर करने वाली किताब को मुसलमानों ने छुपाया!
हेमंत शर्मा जी की अयोध्या पर दो पुस्तकें एक साथ आयी है। ‘युद्ध में अयोध्या’ और ‘अयोध्या का चश्मदीद’। दोनों पुस्तक कुरियर/डाक से मंगवाने के लिए मोबाइल नंबर- 7827007777 पर फोन, एसएमएस, व्हाट्सअप या मिस कॉल दें।
पुस्तक सभी ऑफलाइन/ऑनलाइन पुस्तक स्टोर पर उपलब्ध है। ऑनलाइन लिंक-
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