कामायनी नरेश। इलाज और रखरखाव दोंनों अलग-अलग चीज़ें हैं। परन्तु, जब मैंने ज़ायरोपैथी की शुरुआत की तो मुझे यह समझ नहीं थी। जबकी फ़ूड सप्लीमेंट बनाने वाली विश्व की अग्रणी कम्पनी हमें बार-बार यह कह रही थी कि, फ़ूड सप्लीमेंट सिर्फ़ रख-रखाव के लिये बनाये जाते हैं ना कि इलाज के लिये। हमनें उनकी एक ना मानी, क्योंकि हमारे पास परिणाम थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि, वे ऐसा क्यों कह रहे हैं।
हम पेशेन्ट को फ़ूड सप्लीमेंट का कॉम्बिनेशन बताते हैं, जो लोग नियमित रूप से ईमानदारी से खाते, वो ठीक हो रहे थे। कुछ नहीं भी ठीक हो रहे थे, तो उनके सप्लीमेंट बंद करवा देते थे। परन्तु हम लगातार इस बात पर विचार करते रहे कि – एक ही बीमारी के दो व्यक्तियों को एक समान सप्लीमेंट देने के बावजूद एक ठीक हो जाता है और दूसरा नहीं, इसका क्या कारण होगा?
कई वर्षों के अथक प्रयास और गहन चिंतन से हमें एक विचार मिला। हम सभी जानते हैं कि, शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिये दो प्रकार के तत्वों की ज़रूरत पड़ती है –
1- एसेन्शियल (आवश्यक)-जिसे हम बाहर से सप्लाई करते हैं।
2- नॉन-एसेन्शियल (अनावश्यक)-जिसे शरीर स्वत: आवश्यकतानुसार एसेन्शियल का प्रयोग कर बनाता है। यहाँ हम यह स्पष्ट करना चाहेंगे कि एसेन्शियल और नॉन-एसेन्शियल का यह मतलब नहीं है कि एसेन्शियल ही आवश्यक है और नॉन-एसेन्शियल नहीं। शरीर को सुचारू रूप से चलाने एवं चिरायु स्वस्थ बने रहने के लिये, एसेन्शियल तथा नॉन-एसेन्शियल दोनों ही बराबरी से आवश्यक हैं।
परन्तु यह निश्चित है कि यदि हम आवश्यकतानुसार एसेन्शियल नहीं देंगे तो नॉन-एसेन्शियल निश्चित ही नहीं बनेगा। थोड़े समय तक तो शरीर काम चला लेता है, परन्तु यदि लम्बे समय तक एसेन्शियल की कमी बनी रहती है, तो नॉन-एसेन्शियल बनाने वाला सिस्टम पूरी तरह समाप्त हो जाता है। परिणामस्वरूप बाद में यदि एसेन्शियल की सप्लाई शुरू भी हो जाती है, तो नॉन-एसेन्शियल नहीं बन पाता। जिसके कारण बीमारी में सुधार नहीं मिलता। फ़ूड सप्लीमेंट एसेन्शियल की कमी को पूरा कर देते हैं, परन्तु नॉन-एसेन्शियल के ख़राब हुये सिस्टम को पुन: रेजुविनेट नहीं कर पाते। अत: हम फ़ूड सप्लीमेंट के अतिरिक्त सोचने पर बाध्य हो गये।
परन्तु यह निश्चित है कि यदि हम आवश्यकतानुसार एसेन्शियल नहीं देंगे तो नॉन-एसेन्शियल निश्चित ही नहीं बनेगा। थोड़े समय तक तो शरीर काम चला लेता है, परन्तु यदि लम्बे समय तक एसेन्शियल की कमी बनी रहती है, तो नॉन-एसेन्शियल बनाने वाला सिस्टम पूरी तरह समाप्त हो जाता है। परिणामस्वरूप बाद में यदि एसेन्शियल की सप्लाई शुरू भी हो जाती है, तो नॉन-एसेन्शियल नहीं बन पाता। जिसके कारण बीमारी में सुधार नहीं मिलता। फ़ूड सप्लीमेंट एसेन्शियल की कमी को पूरा कर देते हैं, परन्तु नॉन-एसेन्शियल के ख़राब हुये सिस्टम को पुन: रेजुविनेट नहीं कर पाते। अत: हम फ़ूड सप्लीमेंट के अतिरिक्त सोचने पर बाध्य हो गये।
फ़ूड सप्लीमेंट के अलावा हमारे पास दो विकल्प थे- पहला एलोपैथिक दवायें और दूसरा प्राकृतिक हर्बल एक्सट्रैक्ट। एलोपैथिक दवाओं के बारे में सभी जानते हैं कि-
* सभी दवाओं का साइड इफ़ेक्ट है, एक बीमारी का इलाज करवाने पर दूसरी बीमारी गिफ़्ट में मिलती है
* दवाओं से सिर्फ़ लक्षण ठीक होता है, बीमारी में कोई लाभ नहीं मिलता
* चूँकि कुछ जेनेरिक दवायें सस्ती मिलती हैं, तो लोगों को लगता है कि यह सस्ता इलाज है, परन्तु यह सिर्फ़ भ्रम मात्र है, क्योंकि इनसे सिर्फ़ लक्षण दबते हैं, बीमारी तो बढ़ती रहती है।
इन कारणों के मद्देनज़र हमनें प्राकृतिक हर्बल प्रोडक्ट का चुनाव किया, क्योंकि
* इनके कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं हैं
* इनसें बीमारियाँ जड़ से ठीक होती हैं
* इनकी क़ीमत थोड़ी अधिक लगती है, परन्तु लाभ कहीं अधिक और स्थाई है।
यही कारण है कि आजकल हम लोगों को सप्लीमेंट के साथ कुछ प्राकृतिक हर्बल एक्सट्रैक्ट से बने प्रोडक्ट भी दे रहें हैं। जिन लोगों ने फ़ूड सप्लीमेंट के साथ-साथ ज़ायरो हेल्थ केयर के भी प्रोडक्ट का सेवन किया है, वहाँ बहुत अच्छे परिणाम आ रहे हैं। लोग बहुत ख़ुश हैं और हमें इस कार्य को इसी प्रकार मानव हित में आगे बढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं।
हमारे इस कल्याणकारी प्रयास की सभी सराहना कर रहे हैं, जिससे हम अत्यंत उत्साहित हैं और मानव कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
Sir I am Dr.Agrawal a Medical Spe..Whether you have some thing to relieve my buttock pain which occurred after fisc prolapse surgery of L4-5.And this developed after 12urs after operation so I can’t rain standing for more than 5 MTs.