आशीष कुमार अंशु। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण के सौ सालों के बाद भारत में प्रो जीएन देवी ने इस सर्वेक्षण की जिम्मेवारी ली। जब भाषा सर्वेक्षण का काम पूरा हुआ, जीएन देवी ने अपने भाषण में कहा- ”हर एक व्यक्ति को जीवन एक ऐसा काम करना चाहिए। जिस काम को लेकर वह कह सके कि यह मेरा काम है। मुझे आप सबसे साझा करते हुए अच्छा लग रहा है कि अब मैं कह सकता हूं कि मेरे हिस्से का वह काम पूरा हुआ।
” जब रामबहादुर राय की किताब ‘भारतीय संविधान, अनकही कहानी‘ हाथ में आई तो लगा कि राय साहब के हिस्से का भी वह काम आज पूरा हुआ। दिल्ली में चार ऐसे ठीकाने हैं, जहां बैठने के बाद घड़ी की तरफ नहीं देखना होता। ऐसा उस ‘स्थान’ का अनुशासन है। चार में एक ठीकाना राय साहब का है। शेष तीन में एक राजेन्द्र यादव थे, एक अनुपम मिश्र थे। दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं। तीसरे अरविन्द गौर।
मुझे दिल्ली में और कोई ऐसा ठीकाना नहीं पता, जहां आप बेतकल्लुफी के साथ घंटों बैठ सकते हैं। दिल्ली में किसी अराजनीतिक कार्यक्रम में सभी विचारधाराओं के प्रतिनिधियों का ऐसा जमावड़ा दुर्लभ है। जैसा आज अम्बेडकर सेन्टर में था। प्रारंभ से लेकर अंतिम वक्ता तक हॉल भरा रहा। जितने लोग अंदर थे, उतने ही लोग बाहर चक्कर काटते रहे। सबसे महत्वपूर्ण बात कि कार्यक्रम समाप्त हो जाने के बाद जहां दिल्ली में लोगों को घर जाने की जल्दी होती है।
वहीं राय साहब के इंतजार में दो-ढाई सौ लोग बाहर डेढ़ दो घंटे तक प्रतीक्षा करते रहे कि राय साहब बाहर निकले तो उन्हें विदा करके घर को जाएं। इंतजार करने वालों में सभी आयु वर्ग के लोग थे। इतने सारे लोग किसी संस्था के अध्यक्ष के नहीं बल्कि राय साहब के सम्मान में खड़े रहे।शाम से ही किताब पर हस्ताक्षर का सिलसिला चल रहा था। कार्यक्रम खत्म होने के बावजूद लोग किताब लेकर आ रहे थे।
हस्ताक्षर कराने वालों की कतार में दीबांग, ब्रजेश कुमार सिंह भी थे। जीतेन्द्रजी तिवारी ने कह दिया कि अब बस। उसके बाद भी राय साहब ने चलते-चलते तीन चार लोगों की किताब पर हस्ताक्षर किए। वे थक गए थे। वहां दलित दस्तक के संपादक मित्र अशोकजी दास भी मिले। वे भी हस्ताक्षर कराने वालों की कतार में थे। इतनी विविधता राय साहब के प्रशंसकों की ही हो सकती है।
जहां विविध विधाओं और विचारधाराओं के लोग एक मंच पर खड़े मिले। जितेन्द्रजी तिवारी ने मंच संचालन करते हुए इस बात का उल्लेख भी किया कि राय साहब युवा हों या बुजूर्ग। सबको सम्मान देते हैं। कई बार युवाओं को राय साहब इतना महत्व दे देते हैं कि हमें कोफ्त होने लगती है। लेकिन यही बात राय साहब को राय साहब बनाती है।
‘भारतीय संविधान अनकही कहानी’ का यह लोकार्पण लंबे समय तक याद रखा जाएगा। जो लोग इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाए, वे पूरी चर्चा सोशल मीडिया पर सुन सकते हैं। जिन्हें किताब पढ़नी है, वे प्रभात प्रकाशन से मंगा सकते हैं।
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