पहली बार मेरे “क्योर” बोलने पर प्रतिबंध तब लगाया गया जब मैं ‘केयर वर्ल्ड टी वी’ में ज़ायरोपैथी के लिये सीरियल की शूटिंग करने मुम्बई पहुँचा। उसके पहले मैं धड़ल्ले से बेधड़क, बेहिचक ‘क्योर’ का प्रयोग कर लोगों को क्योर कर रहा था। उसके बाद फ़ेसबुक, गूगल और अन्य मीडिया तथा पब्लिसिटी से जुड़े हर काम में ‘क्योर’ पर बैन लगता रहा।मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्या है इस शब्द में कि सभी प्रतिबंध लगा रहे हैं। मुझे सबसे बड़ा झटका तब लगा जब मैंने टी वी पर यह सुना कि बाबा जी की दवा को आयुष मंत्रालय ने ‘क्योर’ शब्द हटाकर बेचने व प्रचार करने की अनुमति दे दी है। मुझे यह नहीं समझ आ रहा कि यदि हम किसी भी बीमारी को ‘क्योर’ नहीं कर रहे तो क्या कर रहे हैं? क्या हम लोगों को गुमराह कर रहे हैं?
रात भर मुझे नींद नहीं आई और मैं इसी सोच में डूबा रहा कि पूरा मेडिसिन वर्ल्ड इस शब्द से क्यों ख़ौफ़ खा रहा है। सुबह होते-होते असलियत सामने आ गई और यह स्पष्ट हो गया कि क्यों क्योर कहने पर प्रतिबंध लगाया जाता है। आज की मॉडर्न मेडिसिन जिसने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ़्त में ले रखा है वह सिर्फ़ लक्षण कंट्रोल करती है और किसी भी बीमारी का इलाज नहीं करती। वास्तविकता तो यह है कि बीमारी का इलाज करना तो बहुत दूर कि बात है, मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम लक्षण कंट्रोल करने के साथ साइड इफ़ेक्ट के रूप में एक नई बीमारी और पैदा कर देती है। यही कारण है कि ‘क्योर’ शब्द को इलाज की दुनिया में बैन किया जाता है।
ज़ायरोपैथी जिसे मॉडर्न आयुर्विज्ञान भी कहा जाता है, बीमारियों को जड़ से समाप्त करने पर काम करती है। इस स्वास्थ्य प्रणाली में लक्षणों के विवरण एवं जाँचों के आधार पर बीमारी की जड़ का पता लगाया जाता है। उसके बाद फ़ूड सप्लीमेंट एवं ज़ायरो नेचुरल्स के कॉम्बिनेशन से बीमारी के कारण का निदान किया जाता है, बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के। अत: ज़ायरोपैथी बीमारी को क्योर करती है, फिर भी क्योर शब्द के प्रयोग पर प्रतिबंध है क्योंकि मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम कुछ भी क्योर नहीं करता?
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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