अमरीकी राष्ट्रपति डांनल्ड ट्र्म्प की भारत यात्रा को लेकर अनेकों प्रकार के कयास लगाये जा रहे थे. इस बात को भी रेखांकित किया जा रहा था कि राष्ट्रपति ट्र्म्प भारत में धार्मिक अल्पसंखकों के अधिकारों का मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी के साथ उठायेंगे. या फिर स्पष्ट तौर पर कहा जाये तो नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में चल रहे प्रदर्शनों को केंद्र में रखते हुए भारत पर एक तरह से अल्पसंखकों के अधिकारों को नज़रंदाज़ करने का आरोप लगायेंगे. हलांकि अभी तो दौरे की शुरुआत मात्र ही है और औपचारिक वार्ता अभी आरंभ नही हुई है, लेकिन अहमदाबाद में अमरीकी राष्ट्र्पति ने जिस प्रकार नमस्ते ट्र्म्प कार्यक्रम में भारत की संस्कृति, सभ्यता और यहां की धार्मिक सहिष्णुता का गुणगान किया, उसे देखकर लगता तो नहीं है कि वे औपचारिक वार्ताओं में भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर भारत को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करेंगे.
राष्ट्रपति ट्र्म्प ने अपने लगभग सत्ताइस मिनट के वक्तव्य में इस बात पर अनेकों बार ज़ोर दिया कि भारत विविधताओं वाला, बहुआयामी राष्ट्र है जहां पर सर्वधर्म संभाव की भावना हमेशा से सर्वोपरि रही है. उन्होने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि अनेकों धर्मों को मानने वाले लोगों को पूरी स्वतंत्रता से अपने धर्म को मानने और उसके अनुसार जीवन व्यतीत करने का अधिकार है. राष्ट्रपति डांनल्ड ट्र्म्प ने वेदों का भी उल्लेख किया, भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के महत्व को भी रेखांकित किया.
अपने वक्तव्य में भारत की सांफ्ट पांवर का लोहा मानते हुए अमरीकी राष्ट्रपति ने क्रिकेट और बांलीवुड का भी ज़िक्र किया कि किस प्रकार से ये दोनों विश्व भर में भारत की सांफ्ट पावर का डंका बजाते हैं. उन्होने भारत की सांस्कृतिक विविधताओं का सीधा तार अमेरिका में बस रही भारतीय डाइस्पोरा से भी जोड़ा कि किस प्रकार अमेरिका में बसे भारतीय वहां की आबोहवा में उसी सांस्कृतिक विविधता, उसी प्राचीन सभ्यता का रस घोलते हैं, जो भारत की आत्मा में रची बसी है.
दोनों देशों के बीच चल रही औपचारिक वार्ताओं के संदर्भ में ये दौरा आगे क्या रुख लेगा, ये तो अगले कुछ दिनों में ही पता चलेगा. लेकिन जिस प्रकार से अमेरिकी राष्ट्रपति डांनल्ड ट्रम्प ने अपने ‘नमस्ते टृम्प’ कार्यक्रम के वक्तव्य का केंद्र भारत की ‘विविधता’ और ‘अनेकता में एकता’ के विषय को रखा, उससे एक बात तो साफ है. भू राजनीतिक तौर पर भारत की बढ़्ती वर्चस्वता का लोहा अब अमेरिका जैसा राष्ट्र भी मान रहा है. और इसीलिये उसके लिये भी अब आवश्यक है कि वह भारत की सांस्कृतिक क्ष्रेष्ठता, यहां की ‘सांफ्ट पांवर’ को स्वीकारे.