नमो अरिहंताणं।
नमो सिद्धाण।
नमो आयरियाण।
नमो उवज्झायाण।
नमो लोए सब्बसाहूणं।एसो पंच नमुक्कारो, सब्बपावप्पणासणो।
मंगलाण च सब्बेसिं, पडमं हवइ मंगलं।।
अरिहंतों (अर्हतों) को नमस्कार
सिद्धों को नमस्कार।
आचार्योंको नमस्कार
उपाध्यायों को नमस्कार।
लोक संसार में सर्व साधुओं को नमस्कार।
ये पांच नमस्कार सर्व पापों के नाशक हैं और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल रूप हैं।
नमोकार नमन का सूत्र है
यह पांच चरणों में समस्त जगत में जिन्होंने भी कुछ पाया है, जिन्होंने भी कुछ जाना है, जिन्होंने भी कुछ जीया है, जो जीवन के अंतर्तम गढ़ रहस्य से परिचित हुए हैं, जिन्होंने मृत्यु पर विजय पायी है, जिन्होंने शरीर के पार कुछ पहचाना है उन सबके प्रति — समय और क्षेत्र दोनों में लोक दो अर्थ रखता है।
लोक का अर्थ : विस्तार में जो हैं वे, स्पेस में, आकाश में जो आज हैं वे — लेकिन जो कल थे वे भी और जो कल होंगे वे भी।
लोक — सब्ब लोए. सर्व लोक में, सब्बसाहूणं : समस्त साधुओं को।
समय के अंतराल में पीछे कभी जो हुए हों वे, भविष्य में जो होंगे वे, आज जो हैं वे, समय या क्षेत्र में कहीं भी जब भी कहीं कोई ज्योति ज्ञान की जली हो, उस सबके लिए नमस्कार
महावीर वाणी-ओशो