संदीप देव –
Kurukshetra Gurukulam Foundation-KGF की ओर से आदि शंकराचार्य और उनके अद्वैत दर्शन के आधार पर ‘सनातन का पुनर्जागरण: शंकराचार्य का मार्ग’ यह कोर्स चल रहा है। शुक्रवार, शनिवार और रविवार शाम चलने वाली इस कक्षा में करीब 70 विद्यार्थी ऑन लाइन शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कक्षा हिंदी के साथ अंग्रजी में भी होती है। इसमें सभी आयु वर्ग के स्त्री-पुरुष शामिल हैं। कुल नौ अध्याय के इस कोर्स में चौथा अध्याय चल रहा है। चौथा अध्याय शास्त्रार्थ का है।
कोर्स लिंक: – https://kgfbharat.org/
आदि शंकर ने 72 संप्रदायों से शास्त्रार्थ कर सनातन वैदिक धर्म की पुनः स्थापना की थी। इसमें हम 13 बड़े शास्त्रार्थ को पढ़ा रहे हैं। इसमें केवल मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती के साथ शास्त्रार्थ में शंकर को पीछे हटना पड़ा था। उभय भारती ने शंकर से कामशास्त्र संबंधित प्रश्न पूछ लिए। बालपन से संन्यासी शंकर को काम का कोई ज्ञान नहीं था, इसलिए उन्हें एक महीने का समय भारती से मांगना पड़ा। फिर उन्होंने परकाया प्रवेश के जरिए काम का ज्ञान लिया और फिर वहां से लौटकर भारती के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया।
शंकर-भारती शास्त्रार्थ में काम के विषय को उद्धृत करने से अधिकांश जीवनीकार बचकर निकल गये हैं। इसका उत्तर महर्षि वात्स्यायनकृत ‘कामसूत्रम्’ में उपलब्ध तो है, परंतु अब ओरिजनल कामसूत्रम् कहीं उपलब्ध नहीं है। वात्स्यायन कृत कामसूत्र के नाम से जो भी पुस्तक या साहित्य उपलब्ध है, वह अधकचरा और इरोटिक है, जिसका उद्देश्य शास्त्रीय विधि से काम को समझाना नहीं, बल्कि समाज में कामुकता पैदा करना है।
मैंने ओरिजनल कामसूत्रम् को ढूंढ़ना आरंभ किया। पता चला कि चौखंबा प्रकाशन ने बिट्ठलदास संस्कृत श्रृंखला और सुरभारती ग्रंथमाला के तहत बहुत पहले कामसूत्रम् का प्रकाशन किया था। कामसूत्रम् पर सबसे उचित टीका जयमंगला संस्कृत टीका मानी गई है, लेकिन वह अब उपलब्ध नहीं है। किसी समय चौखंबा से संस्कृत के विद्वान टीकाकार डाॅ. पारसनाथ द्विवेदी और डाॅ. रामानंद शर्मा की अलग-अलग पुस्तक उपलब्ध थी, लेकिन वह नहीं मिलती है।
हमारी टीम ने चौखंबा से बातचीत की और इसे पुनः मुद्रित करने का अनुरोध किया। पहले तो वह टाल-मटोल करते रहे कि यह मोटी ग्रंथ है। कोई नहीं पढ़ता आज के जमाने में। लेकिन Kapot Prakashan & e-commerce से उनकी काफी पुस्तकें निकलती हैं, इसलिए वह अंत में हमारे अनुरोध को मान गये। पिछले सप्ताह ही उन्होंने महर्षि वात्स्यायन कृत कामसूत्रम् की डाॅ. पारसनाथ द्विवेदी द्वारा जयमंगला संस्कृत टीमा एवं मनोरमा हिन्दी व्याख्या को छापकर मुझे भेजा है। डाॅ. पारसनाथ द्विवेदी काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व डीन रह चुके हैं।
इस ग्रंथ को पढ़कर पता चला कि जगत्स्रष्टा ब्रह्मा ने मानव जीवन को नियमित बनाने के उद्देश्य से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चार पुरुषाथा के साधनभूत एक लाख अध्यायों का एक संविधान तैयार किया था। इसी संविधान से महाराज मनु ने धर्मविषयक अंश को लेकर एक स्वतंत्र मानवधर्मशास्त्र की रचना की, जो कालांतर में ‘मनु स्मृति’ कहलाई। इस संविधान से अर्थविषयक अंश को लेकर आचार्य बृहस्पति ने अलग से ‘बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र’ की रचना की, जो अब पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं है। इसके बाद महादेव के अनुचर आचार्य नंदी (संभवतः गण नंदी) ने कामविषयक अंश को लेकर एक हजार अध्यायों में कामशास्त्र का संपादन किया। इसके बाद उपनिषद काल में आरुणि उद्दालक के प्रसिद्ध पुत्र श्वेतकेतु ने आचार्य नंदी के ग्रंथ को पांच सौ अध्यायों में संक्षिप्त किया। उसके पश्चात पांचाल देश के आचार्य बाभ्रव्य ने श्वेतकेतु द्वारा संपादिक संस्करण को संक्षिप्त कर डेढ़ सौ अध्याय का एक ग्रंथ रचा।
बाद में पाटलिपुत्र की गणिकाओं के अनुरोध पर आचार्य दत्तक, आचार्य चारायण, आचार्य घोटकमुख, आचार्य गोनर्दीय, आचार्य गोणिकापुत्र और आचार्य कुचुमार ने आचार्य बाभ्रव्य के संपादित अंश का अलग-अलग खंड कर एक-एक खंड पर अलग-अलग ग्रंथ की रचना कर दी। बाद में आचार्य वात्स्यायन ने कामशास्त्र के इतने सारे अलग-अलग ग्रंथों को देखकर एक सर्वांगीन ग्रंथ के निर्माण का कार्य अपने हाथ में लिया। आचार्य वात्स्यायन ने आचार्य बाभ्रव्य के संपादिक ग्रंथ का संक्षिप्तीकरण कर फिर एक जिल्द में संपूर्ण ‘कामसूत्रम्’ की रचना की। इस तरह यह प्रजापति ब्रह्मा रचित प्रथम मानव संविधान का हिस्सा है।
जैसे आज मूल ‘मनुस्मृति’ या तो गायब है या उसमें मिलावट कर दी गई है, वैसे ही आज वात्स्यायन कृत ‘कामसूत्रम्’ या तो विलुप्तप्राय है, या फिर मिलावट कर उसका विकृतिकरण कर दिया गया है। मुझे प्रसन्नता है कि शंकराचार्य-भारती शास्त्रार्थ की गुत्थी को सुझलाने के लिए मेरे अनुरोध पर चौखंबा ने इसे पुनः प्रकाशित किया है।
‘कामसूत्रम्’ को आधार बनाकर 7वीं-8वीं शताब्दी में आचार्य कोक्कोक ने ‘रहिरहस्यम्’ की रचना की, जो ‘कामसूत्रम्’ के बाद इस विषय पर प्रचलित एक अन्य ग्रंथ है, परंतु वह भी आज लुप्तप्राय है। इसके अलावा जो भी ग्रंथ काम को विषय बनाकर कालांतर में लिखे गये, वो न तो प्रचलित हुए, न लोक जीवन की यादों में ही उनका कहीं नामोनिशान बचा है। ‘रतिरहस्य’ को भी कभी चौखंबा ने कृष्णदास संस्कृत श्रृंखला के तहत डाॅ. रामानंद शर्मा की व्याख्या और अनुवाद के साथ छापा था।
मैं किसी को यह ग्रंथ पढ़ने के लिए नहीं कह रहा हूं, क्योंकि इसे समझने के लिए जो मन:स्थिति चाहिए, वो #Netflix और गूगल गुरु के दौर में कहां मिलेगा? परंतु जो शोधार्थी हैं और इस विषय में शोध कर रहे हैं, उनके लिए चौखंबा का यह ग्रंथ संग्रहणीय है। आगे क्या पता वह छापे या नहीं। आप कपोत से यह प्राप्त कर सकते हैं।
धन्यवाद! #SandeepDeo
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