अमरीकी राष्ट्रपति डांनल्ड ट्र्म्प की भारत यात्रा के कुछ दिन पहले से ही वामपंथी मीडिया कुछ इस प्रकार का मौहाल तैयार करने में जुटा था कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों के दौरान जो हिंसा की घटनायें हो रही हैं, उसे लेकर ट्र्म्प भारत को कटघरे में खड़ा करेंगे.और भारत पर मुस्लिम नागरिकों के खिलाफ भेदभाव करने का आरोप भी लगायेंगे. लेकिन अपने पूरे दौरे में ट्र्म्प ने सिर्फ रक्षा के क्षेत्र में सांझेदारी और व्यापारिक सांझेदारी पर ज़ोर देकर वामपंथी मीडिया के सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया.
यही नही, जब एक प्रेस कांफ्रेंस में उनसे नागरिकता संशोधन कानून के विषय में सवाल पूछे गये तो उन्होने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि यह भारत का आंतरिक मामला है और इसे भारत स्वयं ही सुलझा लेगा. उन्होने यह भी स्पष्ट किया कि इस विषय पर उनकी प्रधानमंत्री मोदी से भी कोई बातचीत नहीं हुई. ट्र्म्प ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता के विषय पर उनकी प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत अवश्य हुई. और इस वार्ता के बाद वो पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि भारत जिस प्रकार से अपने नागरिकों को धार्मिक स्व्तंत्रता देता आया है, उसी पथ पर वह आगे भी अग्रसर रहेगा. टृम्प ने जब भारत में रह रहे मुसलमानों और ईसाइयों की धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाया तो प्रधानमंत्री मोदी ने तथ्यों से परिपूर्ण जवाब देते हुए कहा कि भारत में 200 मिलियन से भी अधिक मुसलमान रहते हैं जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इस धर्म के लोगों के साथ किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं बरता जाता.
कश्मीर मामले पर डांनल्ड ट्र्म्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच अमरीका की मध्यस्ता का प्रस्ताव फिर रखा. लेकिन ये एक प्रकार की औपचारिकता ही थी. वास्तविकता में अमरीका भी भली भांति जानता है कि भारत इस प्रकार के किसी भी प्रस्ताव को कभी नहीं स्वीकारेगा. भारत ने भी अमरीका की इस बात को लेकर अबकी बार बहुत कड़े रूख का प्रदर्शन नहीं किया क्योंकि भारत भी जानता है कि पाकिस्तान में इस्लामिक आतंकवाद की जो गहरी जड़ें हैं, उनके समापन के लिये अमरीका हे एक ऐसा देश है को कि पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है. और अमरीका इस क्षेत्र में प्रयास भी कर रहा है.
भारत में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में चल रही प्रदर्शनों को लेकर धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाना बिल्कुल अतार्किक और मूर्खतापूर्ण है. लगभग ये सभी प्रदर्शन धार्मिक , राजनीतिक संगठनों या फिर गैर सरकारी संगठ्नों द्वारा संचालित हैं. ऐसे में इन्हे भारतीय नागरिकतों द्वारा संचालित आंदोलन मानना मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद ही होगा. यह बात अमरीका भी अब भली भांति समझ गया है. इसीलिये नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अमरीकी राष्ट्रपति ने किसी प्रकार की कोई टिप्पणी नहीं की.