श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरितपर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
अब गोस्वामीजी की कुटी पर दर्शनार्थीयों की भीड होने लगी। पर ये सब गोस्वामीजी को कभी भी पसंद नही था। उन्होंने ‘लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु’ मानकर जहाँ पर वे रहते थे उस गुफा से बाहर निकलना ही बंद कर दिया।
परिणामतः लोग कुछ देर तक दर्शन की प्रतिक्षा करके निराश होकर लौटने लगे। एक दिन प्रसिद्धि सुनकर बहुत दूर देश से स्वामी दरियानन्दजी इनके दर्शनार्थ आये। परंतु और लोगों की तरह ये दर्शन न मिलनेपर लौट जाने के बजाए वही आसन जमाकर बैठ गये। इन्होंने निश्चय कर लिया था की जाऊँगा तो दर्शन करके ही।
इनके दृढ संकल्प की विजय हुई, श्रीतुलसीदासजी लघुशंका के लिए बाहर निकले। जब हाथ-पाँव शुद्ध कर गुहा में प्रवेश करने लगे तो दरियानन्दजी हाथ जोडकर सामने खडे हुए और बोले ‘महाराज! मेरी धृष्टता क्षमा किजियेगा। मैं छोटे मुँह बडी बात कहता हूँ। आप देख रहे है कि आपके दर्शन के लिए बड़े-बड़े जोगी-यती, जपी-तपी आशा लगाये बैठे हैं। आप अपने कार्यवशात तो बाहर आते है परंतु प्रेमियों का आगमन सुनकर गुहा में छिप जाते है। यह बडी अनीति है। अतः आप से मेरा निवेदन है कि मैं आपके लिए एक सुंदर मचान बनवाये देता हूँ , आप सुखपुर्वक उसपर विराजमान होकर सबको अपने दर्शन से कृतार्थ करें।

गोस्वामीजी ने दरियानंदजी के प्रेमपुर्ण आग्रह को स्वीकार कर लिया। अब तो साधक, सिद्ध, सुजान जी भर के दर्शन करके अपने जीवन-जन्म को सफल करते। वहाँ नित्यप्रति कथा-कीर्तन का अलौकिक आनंद उमडता रहता।
श्रीहनुमानजी की कृपा से गोस्वामीजी को भगवान रघुपती के नित्यलीलाविहार का दर्शन होता रहता। एकदिन रात्री के समय श्रीकामदगिरि की परिक्रमा करने जा रहे थे और मन में सोचते जा रहे थे कि प्रभु के विविध लीला विलासों का तो दर्शन हुआ परंतु अभी मैंने श्रीराजाराम का दर्शन नहीं किया।
हे प्रभो ! वह दिन कब आयेगा, जब मैं आपको श्रीजानकीजी के सहित रत्नसिंहासन पर विराजमान देखूँगा। श्रीभरतलाल छत्र लिये होंगे, श्रीलक्ष्मणलालजी के हाथ में चँवर होगा और श्रीशत्रुघ्नलालजी व्यजन ढुँराते होंगे। श्रीहनुमानजी श्रीचरण कमल की सेवा में संलग्न होंगे। सुग्रीव, विभीषण अंगद आदि परिकर विविधायुधों से सुसज्जित होकर अगल बगल खडे होंगे। प्रजाजन निरंतर जयजयकार की ध्वनी कर रहे होंगे और मैं आपकी आरती उतार रहा होउँ। इसी भाव में डूबे हुए परिक्रमा कर रहे थे की अचानक उन्हें रामलीला का वहीं राजतिलक का दृश्य दिखाई पडा। जो जो भाव उठे थे वही परिदृश्य सामने उपस्थित था।
प्रारब्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर तुलसी चिंता क्यों करे भज ले श्री रघुवीर
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷