भारतीय जनता पार्टी के नेता व वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग वाली याचिका को वापस ले लिया है. अब इस याचिका का संपूर्ण रेप्रेसेंटेशन कल शनिवार को प्रधानमंत्री कार्यालय, ग़ृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को दिया जायेगा.
भारत में रह रहे आर्थिक रूप से कमज़ोर समुदाय के लोगों का, विशेषकर अनुसूचित जाति और जन जाति के लोगों का जो जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है, उस पर नियंत्रण लगाने के लिये कानून की मांग करते हुए अश्विनी उपाध्याय ने शुक्रवार को ये याचिका दिल्ली हई कोर्ट में दायर की थी. भारत में आर्थिक रूप से गैर सक्षम लोगों के धर्म परिवर्तन का मुद्दा, विशेषकर कि जिस प्रकार से उनकी मजबूरी का लाभ उठा ,उनकी आर्थिक सहायता कर, उन्हे रुपये पैसे का प्रलोभन दे उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है, एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है. और इस मुद्दे पर अक्सर लोग विचार विमर्श करने से झिझकते हैं क्योंकि ऐसा करने से उन पर फिर ये आरोप लगने का भय बन जाता है कि इस प्रकार के वाद विवाद खड़े कर वे भारत के सेक्यूलर या धर्म निरपेक्ष ढांचे के विरुद्ध जा रहे हैं. लेकिन आप खुद ही सोचिये कि किसी की आर्थिक मजबूरी का फयदा उठाकर उसका जबरन धर्म परिवर्तन कराना कहां की धर्म निरपेक्षता है ?
भारत के गांवों और शहरों में कितने की गरीब ,असहाय और मजबूर लोगों का ईसाई धर्म में धर्म परिवर्तन किया जाता है. सिर्फ यही नहीं, उन्हे बड़े ही कट्टरपंथी तरीके से हे हिदायत दी जाती है कि वे अपने पूर्व धर्म के सभी चिन्हों को पूरी तरह से त्याग देंगे. वे मंदिर नहीं जा सकते, टीका तक नहीं लगवा सकते, इस प्रकार का भय उनके अंदर भरा जाता है. यही नहीं, भारत में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहां काले जादू के माध्यम से या चमत्कारों का उपयोग करके धार्मिक रूपांतरण किये जाते हैं. और यह बात यचिककर्ता अश्विनी उपाध्याय ने भी स्पष्ट तौर पर कही कि धार्मिक रूपांतरणों का चलन न केवल किसी के अपने धर्म के प्रचार और अभ्यास करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है बल्कि यह संविधान की अनुछेद 51 ए के तहत निर्दिष्ट कर्तव्यों के विरुद्ध भी है.
याचिका में यह बात भी उठाई गई कि किस प्रकार से अंतराष्ट्रीय एन जी ओ यानि गैर सरकारी संगठन , जिने धार्मिक संगठनों से बाकायदा फंडिग मिलती है, भारत में चल रहे धर्म परिवर्तनों के मामले में सबसे अधिक अहम भूमिका निभाते है. गरीबों और मजबूरों की मदद करने की आड़ में यह जमकार अपने धर्म परिवर्तन का एजेंडा चलाते है, यहां तक कि इन्हे धर्म परिवर्तन के लिये प्रति माह के टार्गेट भी दिये जाते हैं!
याचिका में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है की यदि धर्म परिवर्तन के विरुद्ध सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया तो इस देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो जायेंगे.
भारत में धर्म परिवर्तन का मुद्दा एक अत्यंत की अहम मुद्दा है. हालांकि याचिका को वापस ले लिया गया है लेकिन सरकार के सामने को रिप्रेसेंटेशन होगा, आशा है सरकार मुद्दे की गंभीरता को समझेगी. और शीघ्र ही जबरन किये गये धर्म परिवर्तन रोकने के लिये कोई सख्त कानून बनायेगी.