डॉ विनीता अवस्थी। सावन के पवित्र महीने में महादेव अपने भक्तों को, आशीर्वाद, स्नेह व प्रेम से ओतप्रोत तो करते ही हैं अपितु आप वर्ष में किसी भी समय चले जाएं उनके दर्शन आपको सभी संतापो से मुक्त करके सुखी करते हैं। इसी पवित्र महा श्री मनकामेश्वर मंदिर ,(लखनऊ )की यात्रा का स्मरण हो आया। समय की जिस भी आवृत्ति का मरण हो गया हो उसे हम अपनी चेतना से पुनः दोहराएं अपितु उस अनुभव को पुनः जिए तो वह ‘मरण’ भी ‘स्मरण’ हो जाता है।
लखनऊ की भीड़ भाड़ वाली सड़कों पर मैं हमेशा टैक्सी करना ही पसंद करती हूं स्वयं गाड़ी चलाना आपके लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जिस ओला टैक्सी में हम लोग मंदिर की ओर जा रहे थे उसने बातों बातों में ही बताया कि उसका पहला दिन था और हम उसके प्रथम यात्री थे उसकी नई नौकरी की पहली सवारी वह भी महादेव के मंदिर की थी।
शीघ्र ही हम श्री मनकामेश्वर मंदिर के सामने थे कई बार मैं यह अनुभव कर चुकी थी प्राचीन मंदिर कुछ गलियों आदि पुराने परिसर में ही होते हैं। मंदिर में उस समय संभवत जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा था। हमारे समक्ष महादेव का परम पुनीत शिवलिंग चांदी से मड़े हुए आवरण में सुसज्जित विराजित था। मंदिर में शिवलिंग के सीधे समीप जाना वर्जित था दाईं तरफ वाले द्वार पर जल चढ़ाने की व्यवस्था थी भक्तजन वहीं से सीधे जल चढ़ाते थे जो एक ऊपर से खुले पाइप नुमा पात्र में बहते हुए सीधे शिवलिंग पर गिरता था।
अंदर केवल वही लोग जा सकते थे जो पूजा के लिए वर्णित उचित परिधान में हो ,यह एक अत्यंत आशा जनित बात थी क्योंकि हम दक्षिण भारत के मंदिर देख चुके थे वहां मंदिर परिसर में गर्भग्रह की स्वच्छता के लिए नियम बहुत कड़ाई से माना जाता है। उसी तरह उत्तर भारत में भी अगर यह जागरूकता आए तो हमारी परंपरा अधिक सृदृढ़ होगी। गर्भग्रह में एक दंपति अभिषेक करवा रहे थे महिला साड़ी में व पुरुष धोती कुर्ता में थे।
यह काफी शुभ संकेत था, मंदिर संचालकों से बातचीत करने पर पता लगा की जूना अखाड़े के संत ही इसी मंदिर की देखभाल कर रहे हैं यह नियम भी श्री देव्या गिरी महाराज जूना अखाड़े के वर्तमान संत की देखरेख में हुआ है। बाएं ओर ही विशाल पीपल का वृक्ष था क्योंकि मंदिर में मरम्मत आदि का कार्य चल रहा था तो हमें हर स्थान पर जाने की अनुमति नहीं थी इसी ओर उन संतों तथा महात्माओं की समाधिया बनी थी जो आजीवन इस मंदिर में महादेव की सेवा में रहे थे। परिसर में जहां एक और श्री राम परिवार, श्री हनुमान जी तथा श्री दत्तात्रेय भगवान की मूर्तियां विराजित थी वही ऊपर की ओर श्री संतोषी माता की मूर्ति भी विराजित थी।
कई लोग विवाह के उपरांत अथवा विवाह समारोह से पहले ईश्वर का आशीर्वाद देने यहां आते हैं। बायी ओर जिन संत की समाधि थी उसी के ऊपर आचार्य परंपरा की वंशावली लिखी थी परंतु देखकर लगता था कि लोग या मंदिर संचालक इससे उदासीन थे। आखिर यही तो हमारा इतिहास है आने वाले भक्तजनों को अपनी श्रेष्ठ परंपरा का ज्ञान और कहां से होगा?
पर महादेव की महा महिमा से सब संभव है। यहां सावन में व प्रत्येक सोमवार को महा आरती होती है श्रद्धालु जनों की भीड़ दर्शनीय होती है। मंदिर समिति ने आग्रह किया कि हम उस दिन अवश्य आएं, ऐसे समारोह अगर रुचिकर व ज्ञानवर्धक बनाएं तो नई पीढ़ी आकर्षित होगी। मंदिर के ऊपर दृष्टि पड़ी तो वहां लिखा था’ सब नश्वर है’ और उसके नीचे मंदिर के भीतर महादेव जो अनश्वर ,अनित्य, अनादि रूप में थे और सदा हम सभी के साथ रहने वाले हैं। सावन की वर्षा के अनुरूप ही महादेव की अनुकंपा सभी पर बरसे। शुभकामनाओं सहित
हर हर महादेव
।। ईति।।