18 करोड़ जनता ने बड़ी उम्मीद से वोट दिया है, इसे नूराकुश्ती में बर्बाद न करें, विनती है! इस देश में नौकरशाही से टकराना बेहद मुश्किल है! ब्रिटिशर्स द्वारा बनाया यह ऐसा कवच है, जो सरकारों के बदलने के बाद भी न केवल टिकी रहती है, बल्कि अपने हित में वो सारे पैतरे आजमाती है, जो उसे आजमाना चाहिए! डा. सुब्रमण्यम स्वामी की गलती यह है कि उन्होंने वित्त विभाग के ऐसे ताकतवर नौकरशाही की लाबी से टकराने की कोशिश की है, जो कांग्रेस के हितों को संरक्षित करता आ रहा है। कांग्रेस की सरकार जब भी सत्ता से गई, नौकरशाही की मजबूत लाबी असहज हो जाती है और यही वजह है कि दूसरी सरकारों को या तो ठीक से चलने नहीं देती या सरकार को पुरानी पॉलासी अपनाने को बाध्य कर देती है!
मैं बिना पूर्वग्रह के सभी पढ़ने वालों से यह आग्रह करता हूं कि नेहरू, इंदिरा, राजीव, नरसिंह राव या आज के जमाने के जितने नौकरशाहों ने पुस्तकें लिखी हैं, उन्हें पढ़ने की कोशिश करें। आप समझ पाएंगे इनकी मानसिकता! मोरारजी देसाई की कमजोर कड़ियों को इंदिरा गांधी तक पहुंचाने वाले एक नौकरशाह ही थे, जिस कारण न केवल सरकार, बल्कि खुद का चुनाव हारने वाली इंदिरा केवल तीन साल में सत्ता में लौट आई थी! मोदी सरकार पर रघुराम राजन को लेकर जो लोग हमलावर हैं, उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि पूर्व की यूपीए ने 5 की जगह केवल दो साल का कार्यकाल उन्हें क्यों दिया था? राजन इतने ही योग्य थे तो यूपीए ने उन्हें पूरे 5 साल के लिए नियुक्त क्यों नहीं किया था? अरविंद सुब्रमण्यम पर स्वामी ने हमला किया। आप तब के इकोनोमी टाइम्स व यू ट्यूब पर उनके भाषण को देखें, वह अमेरिका को सलाह दे रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को दबोचने की जरूरत है। वह नरेन्द्र मोदी की खुलकर बुराई कर रहे हैं और आज वो ही प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक सलाहकार हैं! लोग कैसे भूल जाएं?
वित्त मंत्रालय के एक और नौकरशाह शशिकांत, जिन पर स्वामी ने हमला किया, उनपर हेराल्ड केस की फाइल दबाने और चिदंबरम के बेटे की हिस्सेदारी वाली एयरसेल-मैक्सिस जांच को प्रभावित करने का आरोप है! यह बात सुप्रीम कोर्ट तक के संज्ञान में लाया जा चुका है! ऐसे कांग्रेस हितैषी अधिकारी क्यों चाहेंगे कि मोदी सरकार सफल हो? प्रधानमंत्री पद की अपनी जिम्मेदारी और अपनी मजबूरी होती है। स्वामी की सार्वजनिक बयानबाजी को नियंत्रित करना उनकी जिम्मेदारी है। घर के मुखिया के नाते वह घर की लड़ाई घर के अंदर रखें, यह जरूरी भी है और एक अच्छे मुखिया का गुण भी! स्वामी के कई पत्रों पर उन्होंने कार्रवाई की, जैसे शशिकांत का विभाग भी बदला है! अच्छा तो यही है कि स्वामी सारी बात ट्विटर पर रखने की जगह कार्यकारिणी में रखें और प्रधानमंत्री उनके उठाए मुद्दों पर गौर फरमाएं। इस सरकार में कई कांग्रेसी भरे पड़े हैं,
जनता ने यदि कांग्रेस मुक्त भारत के नारों में भरोसा जताया है तो प्रधानमंत्री जी का यह कर्तव्य है कि वह सरकार से लेकर नौकरशाही तक में घुसे कांग्रेसियों को बाहर का रास्ता दिखाएं! 18 करोड़ लोगों ने बड़ी उम्मीद और बड़े बदलाव के लिए वोट दिया है! इसे आपस में लड़कर जाया न करें!