Jitendra Chaturvedi. कांग्रेस सरकार में कोई रक्षा सौदा बिना दलाली के नहीं हुआ। कभी चाचा ने किया तो कभी मामा। जब नही मिला तो सौदा ही नही हुआ। उनके 55साल का इतिहास इस बात का गवाह है। इसलिए उन्हें लगता है कि रक्षा सौदा हुआ है तो दलाली दी गई होगी। लेकिन यह सरकार दलाल और दलाली में यकीन नहीं रखती। प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी ने सदन के पटल पर जो कहा उसका सार यही है। मौका राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यबाद प्रस्ताव का था। उसी पर प्रधानमंत्री बोल रहे थे। वे काफी दिनो चुप थे। इसे कांग्रेस उनकी कमजोरी समझने की भूल कर बैठी। उसका नुकसान भी उसे उठाना पड़ा।
प्रधानमंत्री ने भरे सदन में कांग्रेस को आइना दिखा दिया। दो टूक शब्दीं में कहा भ्रष्टचार हभारे शब्दकोश में है ही नहीं। इतना कह कर प्रधानमंत्री चुप नहीं हुए, उन्होंने हर मंच से कांग्रेसी दलाली के किस्से को उजागर किया। कहे कि चौकीदार से वही डरते हैं जो चोरी करते हैं। यह सही भी है। चौकीदार से चोर ही डरता है। जो ईमानदार है उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं है। आम आदमी कहां डरा है। वह तो मोदी-मोदी कर रहा है। हालात बिल्कुल 2014 वाले बन गए है।
हर जगह से मोदी का नाम ही सुनाई दे रहा है। किसी और पर किसी को भरोसा ही नहीं है। सबको पता है कि मोदी है तो मुमकिन है। यही वजह है कि जनता राफेल को लेकर आश्वस्त है। वह जान रही है कि राफेल में भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। पर कांग्रेस को दिख रहा है। वह सीधा आरोप लगा रही है। सदन में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने उसका जवाब दिया। तब राफेल के मसले पर, वह सदन में बोल रही थी। उन्होंने दावा किया कि राफेल सौदा कांग्रेस की वजह से रूका हुआ था। यह सौदा पहले भी हो सकता था। लेकिन कांग्रेस ने होने नहीं दिया। कारण,उसे दलाली नहीं मिली थी। इस वजह से कांग्रेस सरकार सौदे को टाल रही थी। उन्होंने आगे कहा, कांग्रेस सरकार में रक्षा सौदे दलाली के लिए किए जाते हैं। इसमें कितनी सच्चाई है, वह जांच का विषय है। मगर इतना तो तय है कि रक्षा सौदों में बिचौलियों की भूमिका रही है।
दलाली का खेल वही करते हैं। इसमें कांग्रेस की भूमिका संदिग्ध रही है। राफेल सौदे में तो सीधे सोनिया गांधी पर आरोप लगा था। लगाया सुब्रामण्यम स्वामी ने था। यह बात तब की है जब सत्ता में कांग्रेस थी और राफेल सौदे को लेकर चर्चा चल रही थी। उसी दौर में स्वामी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री एके. एंटनी को पत्र लिखा था। उसमें आरोप सोनिया गांधी पर था। दावा किया गया था कि वे राफेल सौदे में दलाली कर रही है। कुछ इसी तरह का संदेह अगस्ता वेस्टलैंड को लेकर भी जाहिर किया जा रहा है। इसमें भी बिचौलिए सक्रिय थे।
उन लोगों ने रिश्वत भी दी और दलाली भी खाई। खाने वाले में कई कांग्रेसी दिग्गजों की चर्चा है। इटालियन अखबार ने चॉपर घोटाले में सोनिया गांधी और अहमद पटेल पर दलाली लेने का आरोप लगाया। नाम तो उसमें मनमोहन सिंह का भी घसीटा गया है। सप्रंग सरकार के दौरान इस तरह के आरोप और प्रत्यारोप लगते रहे हैं। वह दौर ही ऐसा था। कारण रक्षा सौदा करने का तरीका था। उस दौर में या उससे पहले भी हिन्दुस्तान में रक्षा सौदा एक तय प्रक्रिया के तहत होता था। वह था, निविदा प्रक्रिया।सरकार सीधे सरकार से खरीददारी नहीं करती थी। निविदा निकलती थी।
कंपनियां आवेदन करती थी। चूंकि यह सौदा बहुत बड़ा होता है। इस वजह से कंपनिया दलाल लगाती थी। वे सौदा संबंधित कंपनी के पक्ष में कराने के लिए अभियान चलाते थे। रिश्वतखोरी का दौर चलता था। जेबें गर्म की जाती थी। इसमें पार्टी, राजनेता नौकरशाह सब शामिल होते थे। सबका हिस्सा होता था। उनकी भूमिका भी तय होती थी। वे उस हिसाब से काम करते थे। भुगतान का भी हिसाब काम के मुताबिक होता था। लेकिन मोदी सरकार में वह खेल बंद हो गया है। इसलिए रक्षा दलाल बिलबिला गए है और सरकार के खिलाफ षडयंत्र रच रहे हैं।
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