Vishvapradhan Commercials Pvt Ltd (VCPL) ने एनडीटीवी के 52 प्रतिशत शेयरों का अधिग्रहण किया है। और आश्चर्य की बात यह है कि इस कंपनी VPCL के पास केवल 60 हजार रुपये की ही पूंजी है! हुआ न आश्चर्य कि 60 हजार की पूंजी वाली कोई कंपनी प्रणय राय-राधिका राय की एनडीटीवी का 52 फीसदी शेयर कैसे खरीद सकती है?
तो फिर इसकी खोज-खबर कीजिए! थोड़ी तह में जाएंगे तो पाएंगे कि यह कंपनी असल में अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज की ही एक सब्सिडरी कंपनी है! तो चलिए अब तो फिर यह खरीद सकती है न एनडीटीवी को? असल में The Securities and Exchange Board of India (Sebi) ने इस फर्जीवाड़े को पकड़ लिया है! सेबी ने VCPL को एनडीटीवी से खरीदे गए शेयर की कीमत सार्वजनिक करने को कहा है!
आखिर इसके पीछे माजरा क्या है? क्या ये लोग इसी प्रकार सरकारी एजेंसियों से ऋण लेकर बचते रहेंगे? जब सरकार इनके खिलाफ सख्ती दिखाती है तो इमरजेंसी और लोकतंत्र खतरे में है का राग अलापने लगते हैं? इनके कुछ स्वामिभक्त बकैत पांडे सरीखे पत्रकार टीवी स्क्रीन काला कर मीडिया पर हमले का राग अलापते हैं! अब सोचिए, क्या किसी बकैत पांडे ने आपको बताया कि उसके घर का नमक-दाल प्रणय राय-राधिका राय के ऐसे ही फर्जीवाड़े से चलता है? नहीं बताएगा! उसे रेलवे, बैंकिंग, देश में नौकरी की चिंता तो है, लेकिन अपनी एनडीटीवी से हटाए जा रहे कैमरामैन और पत्रकारों की नौकरी और बेरोजगारी की चिंता नहीं है, क्योंकि उसे तो 8 लाख रुपये प्रति महीने इसी तरह के फर्जीवाड़े वाली कंपनी से लगातार मिल रहे हैं? आइए जाने आखिर अपने फर्जीवाड़े को ‘अभिव्यक्ति की आजादी’, ‘पत्रकारिता पर हमला’ जैसे शब्दों से नवाजने वाले प्रणय राय ने किस तरह पर्दे के पीछे अंबानी की रिलायंस के साथ मिलकर काले-सफेद का खेल किया है?
आइए पहले प्रणय जेम्स राय और उनकी पत्नी राधिका राय के धंधे का स्वरूप समझते हैं!
अभी तक प्रणय और राधिका राय एक बैंक से कर्ज लेकर दूसरे को चुकाते रहे हैं। एक जगह से कर्ज लेना, दूसरे को चुकाना और फिर तीसरे से कर्ज लेना और पहले को चुकाना-इसी धंधे पर एनडीटीवी की वामपंथी पत्रकारिता की दुकान अभी तक चल रही है। मनमोहन सरकार में बीच-बीच में कभी चिद्दू का हवाला मनी तो कभी ‘सेव टाइगर प्रोजेक्ट’ के जरिए सरकारी धन एनडीटीवी को पोसने में लगता रहा है।
NDTV’s promoter group made an open offer in 2008, for which they borrowed Rs 5.40 billion from Indiabulls Financial Services to finance this open offer. The promoters then took another loan of Rs 3.75 billion from ICICI Bank to repay Indiabulls and the ICICI Bank loan was repaid in 2009 with a Rs 3.50 billion loan from VCPL.
सवाल ये उठता है कि जब इन्हें अपने बल पर ऋण चुकाने की औकात नहीं है तो फिर बैंक उसे ऋण किस आधार पर देते हैं? दरअसल दिखाने की आड़ में इनलोगों का असली खेल बाहर ही नहीं आता है। तभी तो सेबी ने विश्वप्रधान कॉमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (वीसीपीएल) कंपनी को एनडीटीवी से खरीदे गए शेयर की कीमत 45 दिन में सार्वजनिक करने को कहा है।
The SEBI order noted that VCPL had acquired indirect control through a loan agreement in 2009, which would have necessitated an open offer at the time. The regulator has now asked for this open offer to be made with interest. “The noticee shall, along with the offer price, pay interest at the rate of 10 per cent per annum from the date when they incurred the liability to make the public announcement till the date of payment of consideration,” said the order.
60 हजार की कंपनी को 400 करोड़ का लोन!
इस कंपनी वीसीपीएल के साथ और कमाल का किस्सा जुड़ा हुआ है। वीसीपीएल महज 60 हजार रुपये की कंपनी है! यानि उसने अपनी पूरी पूंजी 2017 में इतनी ही घोषित कर रखी है, जबकि इसने एनडीटीवी की 52 प्रतिशत शेयर खरीद रखे है। सवाल उठता है कि क्या कोई कंपनी जिसकी पूंजी सिर्फ 60 हजार हो वह एनडीटीवी जैसी मीडिया कंपनी का 52 प्रतिशत हिस्सा खरीद सकती है?
खास बात है कि VCPL कंपनी पर 400 करोड़ रुपये का लॉन्ग टर्म लोन है। किसी 60 हजार वाली कंपनी को 400 करोड़ रुपये का लोन मिल सकता है? लेकिन यह खेल होता था और हो भी रहा है। लेकिन जैसे ही सरकार इन लोगों पर कोई एक्शन लेती है ये लोग मीडिया पर आपातकाल लागू होने की घोषणा कर देते हैं। अपनी चैनल का स्क्रीन ब्लैक कर देते हैं। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जमा हो कर सरकार को कोसना शुरू कर देते हैं और एक बार फिर काले-सफेद का खेल शुरु हो जाता है। फिर से किसी बैंक को लूटने का धंधा चल पड़ता है और फिर से किसी व्यवसायी के पर्दे के पीछे का पैसा और किसी राजनेता के हवाला का पैसा इनमें निवेश हो जाता है!
The Sebi order did not go into details of Vishvapradhan’s ownership. However, the regulator observed that the firm had a revenue of only Rs 60,000 in financial year 2017 and Rs 400 crore of long-term loans and advances. It also stated that Vishvapradhan had in a March 25, 2016 letter said that the “source for the loan was the borrowing from Reliance Strategic Investment Ltd, a wholly owned subsidiary of Reliance Industries Ltd.”
एनडीटीवी मीडिया के चेहरे के पीछे काले कारोबार का जबरदस्त उदाहरण है। इसे ही समाजशास्त्र की भाषा में सफेदपोश अपराध यानी व्हाइट कॉलर क्राइम कहा गया है! अभी बकैत पांडे चिल्लाएगा! देखिए एक वेब पोर्टल ने हमें व्वाहट कॉलर क्रिमिनल कहा है! हम अपना मुंह… नहीं, नहीं हम अपने चैनल का मुंह (स्क्रीन) काला करते हैं!
URL: A 60 thousand capital company VCPL, bought 52 percent of NDTV shares how?
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