वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हेमंत शर्मा जी द्वारा पत्रकार साथी अजीत अंजुम के ड्राइवर की इश्कबाजी और उनकी परेशानियां पर लिखे इस व्यंग्य को जरूर पढ़ें। हंस के लोट-पोट तो होंगे ही, साथ ही महाभारत के अर्जुन और देवमंडल के प्रधान देवता सूर्य से लेकर पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम तक के सारथियों के दिलचस्प किस्सों से भी आपका सामना होगा। साहेबान! आपके-हमारे जीवन में ड्राइवरों और देवताओं के जीवन में सारथी की भूमिका का लीजिए कीजिए रसास्वादन….
हेमंत शर्मा। अजीत अंजुम अपनी परेशानियां खुद बुनते हैं। और फिर उससे दो दो हाथ करते है। यह उनका शग़ल है। उनकी परेशानियों के अंतरिक्ष का ताज़ा उपग्रह उनका ड्राईवर है। आजकल वे उससे परेशान हैं। अजीत अपने ड्राईवर से मुक्ति चाहते है। पर मुक्त नही हो पा रहे हैं। वे रोज़ उसे झिड़कते हैं। समझाते हैं और अंतत: उसके नहीं सुधरने की गुंजाइश देखते हुए उसे दूसरी नौकरी खोजने को कह देते है। वह दूसरे रोज़ फिर आ जाता है ।समस्या यह है कि पहले वह देर से आता था। फिर वह बहाने बनाकर अजीत को गच्चा देने लगा और बीच -बीच में गैरहाजिरी मार किसी और मालदार की ड्यूटी करने लगा। अब ताज़ा मामला सबसे संगीन है। बल्कि यो कहें कि रंगीन है।अब उस ड्राईवर की दिलफेंकी के क़िस्से सामने आ गए हैं।उनकी सोसाइटी की चतुर्थ श्रेणी कार्यकर्ताओं पर उसकी नज़र रहती है। गाड़ी चलाते वक़्त भी अक्सर उसके पास प्रणय निवेदन करते हुए फ़ोन आते है।
पिछले दिनों मामला उस वक्त विस्फोटक विन्दु पर पहुँच गया जब एक रोज़ ड्राईवर का फ़ोन गाड़ी में ही छूट गया और अजीत उसे लेकर दफ़्तर आ गए। उस फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी।अजीत जब भी फ़ोन उठाते तो दूसरी तरफ़ से नाना प्रकार की स्त्री आवाज़ों में किसी सी ग्रेड की फ़िल्मों के डॉयलाग सुनाई पड़ते- “बहुत दिन से तड़प रही हूँ। तुम कहां हो। रोज़ नौकरी ही करोगे क्या ? ‘तेरी दो टकियो की नौकरी पे मेरा लाखों का सावन जाए…’ टाइप।
अजीत के भीतर का कौतुक तत्व उस मोबाईल से हट नही रहा था।और उस मोबाईल से विरह की वेदनाएँ लगातार प्रकट हो रही थी। अजीत फ़ोन को सामने रख उसे उसी अंदाज में निहार रहे थे जैसे बम निरोधक दस्ता किसी विस्फोटक को सामने से एकटक देखता है। उनका कौतुक देखते ही बनता था। कौतुक यानी जिसे देख, सुनकर चित्त चमत्कृत हो। कौतुक नौ रसों में एक रस है। कुछ लोगों में यह रस ज्यादा होता है, इसलिए वह हर वस्तु को शक की नज़र से देखने लगते है। कुछ परम बुद्धत्व को प्राप्त लोग होते हैं जिन पर कौतुक का असर नही पड़ता है।
जैसे जैसे मोबाईल में कॉल आते। अजीत का पारा चढ़ता जाता। देखिए किस काम में लगा है! किसी दिन फँसा देगा! गाड़ी चलाते वक़्त भी इसका ध्यान इसीलिए मोबाइल पर रहता है। किसी रोज़ दुर्घटना करा देगा! यह सब कहते हुए वे मोबाइल से आने वाली आवाज़ों का रसास्वादन भी करते जा रहे थे। मुझे समझ नही पड़ रहा था कि अजीत ग़ुस्से में हैं या आनंद में। उनका चित्त रौद्र और आनंद के बीच झूल रहा था। मैंने कहा अपना दिमाग ख़राब करने से अच्छा है कि ऐसे अशिष्ट, अनुशासनहीन और उद्दण्ड चालक से मुक्ति पाइए। कहने लगे कई बार हटाया पर बार बार आ जाता है। हर दूसरे -चौथे दिन फोन बंद करके आउट ऑफ रीच हो जाता है , फिर देर से आकर कुछ कहानी सुना देता है . मैंने पूछा, फिर क्यो रखते हैं आप? उन्होंने कहा दया आ जाती है इसलिए हटा नहीं पाता लेकिन मुझे तो लगता है कि उसका बार बार रखा जाना भी एक रहस्य है। ये रहस्य समझने के लिए मुझे खासी मशक्कत करनी पड़ी।
हमारे यहॉं गुरू का महत्व भगवान से भी ज्यादा है। जानते हैं क्यों? क्योंकि भगवान तक जाने का रास्ता वही दिखाता है। यानी वह मार्गदर्शक है। आज कल नए ज़माने का मार्गदर्शक ड्राइवर है। वह भी न जाने कौन कौन से रास्ते दिखाता है। इसलिए मेरा मत है कि उसे नाराज़ और असंतुष्ट रख अपने पास नही रखना चाहिए। वह आपको सन्मार्ग पर भी ले जा सकता है और कुमार्ग पर भी। उसकी मानवीय दुर्बलता नज़रअंदाज़ हो सकती हैं पर उसकी अनुशासन हीनता और उद्दडंता का क्या होगा?
पौराणिक कहानियों में देवताओं के चारित्रिक पतन के अनेक क़िस्से पढ़ने को मिलते हैं। पर भारतीय समाज ने उसे कभी देवताओं का अपमान नही माना। बल्कि यह भारतीय या हिन्दू समाज की विशिष्टता है कि वह देवताओं की इस कथित लीला और मानवीय दुर्बलताओं को भी स्वीकार करता है। कारण साफ़ है कि यह समाज की चेतावनी है कि जब देवताओं का भी पतन हो सकता है तो मनुष्य की औक़ात क्या। पतन की इन कहानियों में नैतिकता का संदेश छिपा है।
अस्तु, हे मित्र! इस ड्राइवर के मजनू चरित्र को भले माफ़ करें पर इससे मुक्ति पाएं। इसी में भलाई है। क्योंकि जिसके हाथ आपके जीवन की स्टेयरिंग हो, वो कितना भी समझाने पर अपनी हरकतों से बजा नहीं आ रहा हो उसे रोज़ रोज़ डपटना ठीक नही है। कभी भी क्रोध के क्षणांश में रत्ती भर भी स्टेयरिंग का हिलना इहलोक और परलोक के बीच की दूरी को ख़त्म कर देगा। एक बात और। अजीत उस ड्राइवर को उसकी गलती या गलतबयानी पर कितना भी हड़काएं , वह हँसता ही रहता है। बीच बीच में कालिदास की तरह कुछ इशारे भी कर देता है। दोनों का संवाद कालिदास विद्योत्तमा संवाद की तरह दिखता है। पर कालिदास मूर्ख नही थे, बाद में उनके विद्वान होने का प्रमाण भी मिलता है।
कालिदास में राम और काम का द्वन्द नही था। वे विद्योत्तमा को ‘काम’ देने गए थे। पर विद्योत्तमा अपनी विद्या के अहंकार में थी। उसे विद्या के अलावा कुछ दिखता नही था। कालिदास को उसने एक उँगली दिखाई। यह उसका काम विरोध था। काम के लिए दो उठाना ज़रूरी है। बुद्धिमान कालिदास ने ठीक ही उत्तर दिया, एक नही दो। काम सुख एक नही दो में है। राम और काम की उपासना में यही तो अंतर है। राम अकेले है। राम का उपासक राम बनकर अकेला हो जाता है। राम को न योग है, न वियोग। पर काम की प्रवृत्ति तो ठीक उलटी है। उसे दो चाहिए। वह दो को जोड़ता है। एक केवल स्वाँग है। अनुभूति और व्यवहार दोनों मे दो की ज़रूरत है। मुक्ति में एक लेकिन भुक्ति और भक्ति में दो की ज़रूरत है। भगवान और भोग दोनों का मूल स्त्रोत एक है। जिस दिन भगवान अकेला था। उससे काम उत्पन्न हुआ। एक से अनेक होने को भगवान ने काम का सहारा लिया। उस ड्राइवर को भी काम की ही तलाश है।
मै भी भटक जाता हूँ। बात ड्राइवर की हो रही थी। उससे होता हुआ कालिदास, फिर ‘काम ‘ पर चला गया। अजीत तमाम बुराइयों के बावजूद शायद इसलिए अपने ड्राइवर को नही हटा पा रहे है कि शायद उसमें उन्हे कोई कालिदास दिखता है। कृष्ण भी तो अर्जुन के अस्थायी ड्राइवर थे। हो सकता है यह ड्राइवर भी जीवन के इस रण में उन्हे गीता जैसा कोई ज्ञान दे जाय। उन्हे शायद यही उम्मीद होगी। वरना कोई और वजह नही दिखती, उसे न हटाने की। हमारे यहॉं सारथी और ड्राइवरों की बड़ी समृध्द परम्परा रही है। बाद में वे सब ड्राईवर देश के कर्णधार बने।
प्राचीन काल में जो सारथी थे वही आज ड्राइवर हैं। सारथी कौन है ? सारथी यानी आधुनिक युग में ड्राइवर या चालक… समय बदला लेकिन सारथी की परिभाषा वहीं है… पहले रथ दौड़ाता था….अब गाड़िया दौड़ा रहा है…। प्रसंग स्पष्ट करने के लिए महाभारत को बीच में ला रहा हूँ। महाभारत का युद्ध चल रहा था। एक और अर्जुन थे, जिनके सारथी थे ‘श्री कृष्ण’। तो दूसरी ओर कर्ण थे और उनके सारथी ‘शल्य’ थे। शल्य पांडवों के मामा थे। वे माद्री के भाई थे। लड़ रहे थे कौरवों की तरफ़ से पर दिल से पाण्डवों के साथ थे। कृष्ण ने सारथी की भूमिका खुद चुनी थी। वे सारथी तो थे पर अर्जुन उन्ही के मार्गदर्शन में युद्ध का संचालन करते थे।
महाभारत का युद्ध खत्म हो गया था। कृष्ण अर्जुन से बोले, “पार्थ! आज तुम रथ से पहले उतर जाओ। तुम उतर जाओगे तब मैं उतरता हूं।” यह सुनकर अर्जुन को कुछ अटपटा-सा लगा। कान्हा तो बड़े आदर से अर्जुन को रथ से उतारने के बाद उतरते थे,लेकिन यह क्या हुआ? भगवान कृष्ण, अर्जुन के रथ से उतरने के बाद कुछ देर मौन रहे, फिर वह रथ से उतरे और अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें रथ से दूर ले गए। तभी जो घटा वह कृष्ण के लिए तो आसन्न था, पर अर्जुन के लिए विस्मयकारी, अकल्पनीय एवं आश्चर्यजनक। रथ से अाग की लपटें निकलने लगीं और फिर एक भयानक विस्फोट में रथ जल कर खाक हो गया। अंचम्भित अर्जुन ने पूछा “हे कान्हा! यह रथ अकाल मृत्यु को कैसे प्राप्त हुआ?” कृष्ण बोले, “यह सत्य है कि इस दिव्य रथ की आयु पहले ही समाप्त हो चुकी थी, पर यह रथ मेरे संकल्प से चल रहा था। इसकी आयु की समाप्ति के बाद भी इसकी जरूरत थी, इसलिए यह चला। धर्म की स्थापना में इसका महत्ती योगदान था, इसलिए मैंने संकल्प बल से इसे इतने समय तक खींच लिया।”
यानि सारथी के संकल्प से वाहन की उम्र बढ़ती है।
वैदिक और पौराणिक साहित्य में देव मण्डल का प्रधान देवता सूर्य है। सूर्य के अथर्ववेद में सात और महाभारत मे बारह नाम गिनाए गए है। ऋग्वेद ने सूर्य को विश्व की आत्मा और पिता माना है। स्वास्थ्य से सूर्य का सीधा सम्बन्ध है। यह रोगों को दूर भगाता है। सूर्य का रथ घोड़े खींचते है। पुराणों के मुताबिक़ सूर्य के सारथी अरुण है। उनके बारे में कहा जाता है कि अरुण का सूर्य पर इतना प्रभाव है कि वे रथ की कमान संभालते वक्त सूर्य देव की ओर मुंह कर के ही बैठते हैं। बावजूद इसके रथ अपनी दिशा में निरंतर सही मार्ग पर चलता रहता है।एक ऋषि प्रजापति कश्यप थे। उनकी पत्नी विनता थी। उनके दो बेटे थे। नाम था ‘गरुड़’ और ‘अरुण’। गरुण भगवान विष्णु के वाहन थे तो अरुण सूर्य के रथ के सारथी। मान्यता है कि सूर्योदय के समय जो बैंगनी रंग की रोशनी आती है, वह अरुण की होती है।
इन्द्र देवताओं के राजा थे। सुरा सुन्दरी से लैस। वे ऐय्याश क़िस्म के देवता थे। मातलि उनके सारथी थे। मातलि का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में आता है। राम -रावण युद्ध के दौरान जब रावण रथी था और रघुवीर विरथ थे। तो उस वक़्त इंद्र ने अपना ही रथ राम की सहायता के लिए भेजा था। उस समय भी मातलि ने ही रथ का संचालन किया था। दारुक श्रीकृष्ण के सारथी थे। वे बड़े स्वामी भक्त थे। जिस समय अर्जुन सुभद्रा को हरण कर ले जा रहे थे, उस समय दारुक ने अर्जुन से कहा- ‘मैं यादवों के विरुद्ध रथ नहीं हाँक सकता, अत: आप मुझे बाँध दें और फिर जहाँ चाहे रथ ले जाएँ।’
मान्यता के अनुसार यादव युद्ध में चार प्रमुख व्यक्तियों ने भाग नहीं लिया था, जिससे वे बच गये, वे थे- कृष्ण, बलराम, दारुक सारथी और वभ्रु। बलराम दु:खी होकर समुद्र की ओर चले गये। कृष्ण बड़े मर्माहत हुए। वे द्वारका गये और दारुक को अर्जुन के पास भेजा कि वह आकर स्त्री-बच्चों को हस्तिनापुर लिवा ले जायें। अर्जुन आये और शेष स्त्री-बच्चों को लिवा कर चले।
पर मुझे लगता है अजीत पर सबसे ज्यादा असर राजकुमार सिद्धार्थ के सारथी का है। क्योकि,
सिद्धार्थ को गौतम बुध्द बनाने वाला उनका ड्राइवर सारथी छन्न ही था। छन्न राजकुमार गौतम को रोज़ घुमाने ले जाता था। इसी घुमाने में ही एक रोज़ एक बूढ़े, दूसरे रोज़ एक रोगी, तीसरे रोज़ एक शव और चौथे रोज़ एक सन्यासी को देख सिद्धार्थ का मन बदला। वे इनके बारे मे सवाल पूछते और ड्राइवर छन्न उन्हे जीवन और जगत के गूढ़ रहस्य समझाता। और इस तरह अपने ड्राईवर से प्रबुद्ध होते होते राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध हो गए।
सारथी अगर नाराज़ हो तो आपको मार्गदर्शक मण्डल में भी डम्प कर सकता है। नरेन्द्र मोदी लाल कृष्ण आडवाणी के सारथी ही तो थे। आडवाणी जी 1990 में एक ट्रक को रथ की शक्ल देकर सोमनाथ से अयोध्या तक की यात्रा पर निकले थे । उस वक़्त उनके रथ के जो सारथी रहे, वो आज देश के प्रधानमंत्री हैं। नरेंद्र मोदी कभी लालकृष्ण आडवाणी के भरोसेमंद हुआ करते थे। पर नाराज़ हुए तो काफी नुक़सान कर गए। अजीत को भी शायद सारथी की नाराज़गी का डर है।
कभी सेना में एपीजे अब्दुल कलाम के ड्राइवर रहे वी कथीरेसन अब कॉलेज में इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। कथीरेसन और कलाम का लंबा साथ रहा और उनका मानना है कि इस साथ ने ही उनकी जिंदगी बदली।कथीरेसन 1979 में दसवीं में फेल होने के बाद सिपाही के तौर पर सेना में शामिल हुए। जब उन्होंने अपनी ड्राइवर की ट्रेनिंग पूरी की तो उनकी पहली ही पोस्टिंग रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान (डीआरएलबी) हैदराबाद में मिली। वहां वे संस्थान के डायरेक्टर कलाम के ड्राइवर नियुक्त हुए। कथीरेसन बताते हैं कि वे दोनों एक ही जिले अविभाजित रामनाद से आते हैं। कथीरेसन को कलाम पसंद करने लगे थे। उन्होंने कथीरेसन को पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया था। और उन्होंने ही पढ़ाई से संबंधित सारी व्यवस्था भी की। कथीरेसन याद करते हैं कि एक बार डॉ. कलाम ने उनसे कहा था ‘कि यदि मेरे पास ये डिग्रियां होती तो मैं टीचर होता और ये भी कि अब मुझे डॉक्टरेट कर लेना चाहिए, ताकि मैं कॉलेज में लेक्चरर हो पाऊं।’
उन्होंने तब तक कलाम के साथ 10 साल काम किया था। जब डॉ. कलाम 1992 में प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार होकर दिल्ली आ गए, तब साथ छूटा। लेकिन डॉ. कलाम ने जो लगन उनमें पैदा की, उसने अपना असर दिखाया। उन्होंने 1998 में सेना से एच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उसी साल उन्होंने पीएचडी में रजिस्ट्रेशन करवाया और ‘तिरूनेल्वेली जिले में जमींदारी व्यवस्था’ विषय पर पीएच डी. की। बाद में 2008 में उनकी नियुक्ति गवर्नमेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज अथूर में इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर हुई।
अजीत बिहार के ज़मींदार है। उनमें सामंती ठसक** भी है। विरासत में मिली पिताजी की लाइसेंसशुदा गोली बन्दूक़- पिस्तौल भी है। पर लोक ,समाज और धारणा से डरते बहुत हैं। उन्हे डर है कि ड्राइवर पर की गयी कोई कार्रवाई, कहीं उन्हे रामलीला मैदान न पंहुचा दे। मनमोहन सिंह की सरकार को रामलीला मैदान तक घसीटने वाला सेना का एक पूर्व ड्राईवर किशन बाबूराव हज़ारे ही था। जिसे दुनिया अन्ना हज़ारे के नाम से जानती है। अन्ना को भारत सरकार पद्म विभूषण के सम्मान से नवाज चुकी है।
ड्राइवरों की क़िस्मत तेज़ी से पलटती है। इन्हें कभी हल्के में नहीं लेना चाहिए। चीन में अरबपति बने एक पूर्व टैक्सी ड्राइवर लियू यिकिअन ने 2015 में एक नीलामी में दुनिया की दूसरी सबसे महंगी पेंटिंग खरीदी जिसकी कीमत 1100 करोड़ थी। यिकिअन आज चीन के 163 नबंर के अरबपति हैं लेकिन उनकी जिंदगी की कहानी दिलचस्प है। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत चीन के एक बंदरगाह पर ट्रैक्सी चालक के तौर पर की थी।
सारथी की गुरूता और महत्त्व को समझने के लिए हमें कठोपनिषद में यम और नचिकेता संवाद को समझना पड़ेगा। कठोपनिषद कृष्ण यजुर्वेद का उपनिषद है। इसमें नचिकेता और यमराज का ब्रह्मज्ञानी संवाद है। जो नचिकेता के ज्ञान से प्रसन्न हो यमराज ने उसे दिए थे।
यमराज नचिकेता से कहते है:-
आत्मानँ रथितं विद्धि शरीरँ रथमेव तु ।
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ॥
(तू आत्मा को रथी जान, शरीर को रथ समझ, बुद्धि को सारथी जान और मन को लगाम समझ।) यानि शरीर का ड्राइवर बुद्धि है। शायद अजीत इस रहस्य को जान चुके है। यही वजह है कि लाख अनिच्छा के बावजूद वे अपने ड्राइवर का साथ निभाते जा रहे हैं। मगर अजित कलम के मास्टर आदमी हैं। वे स्टोरी खड़ा करना भी जानते हैं और ‘किल’ करना भी। इसलिए इत्मिनान रखिये, इस ड्राइवर की स्टोरी कितना ही फैलती जा रही हो, स्टोरी ‘किल’ करना अजीत के बाएं हाथ का खेल है।
**जब ग़ुस्से में होते है तभी सामन्ती ठसक आती है।
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