मैं आज अपने जन्मदिन विशेष पर दो कविताएं लिखकर भेज रहा हूं । संदीप देव की निर्भीक पत्रकारिता मुझे ऐसी कविताएं लिखने की प्रेरणा देती है । शुभकामनाओं सहित
ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”
सरकारें कर्तव्य को भूली , लीपा-पोती करती हैं ;
कानून की रक्षा कर न पाती , जनता बेचारी मरती है ।
पहला कर्तव्य राज्य का होता , शांति- व्यवस्था लाने का ;
दूजा कर्तव्य राज्य का होता , देश की रक्षा करने का ।
तीजा कर्तव्य राज्य का होता , कुशल प्रशासन देने का ;
पर नेता अयोग्य हैं इतने , बस लफ्फाजी करने का ।
ठोस काम कुछ कर न पाते , राष्ट्र को केवल छलते हैं ;
वोट- बैंक पक्का करने को , अल्पसंख्यकवाद को लाते हैं ।
तुष्टीकरण है इनका मजहब , धर्म को हरदम तोड़ रहे ;
गुंडों से इतना घबराते , हाथ – पांव सब जोड़ रहे ।
भरे पड़े हैं राजनीति में , धिम्मी , वामी , कामी सारे ;
चौहत्तर -वर्ष की ऐसी लानत , भले लोग किस्मत के मारे।
भले लोग सब बिखर गये हैं , उनका नहीं है पुरसा हाल ;
भ्रष्टाचार इस कदर है हावी ,राष्ट्र का पूरा हाल -बेहाल ।
हिंदू बना नागरिक – दोयम , राज्य उसे ही लूट रहा ;
मंदिर पर सरकारी कब्जा , धर्म – सनातन टूट रहा ।
ऐसा ही गर हाल रहा तो , हिंदू – धर्म मिट जायेगा ;
जिसे मिटा न सका विदेशी , अपना ही खा जायेगा ।
कोई सबका साथ चाहता , कोई डीएनए मिलवाता ;
शाहीन बाग सिंड्रोम से पीड़ित , तरह – तरह जजिया देता ।
अंधेरी – नगरी बना है भारत और यहां का चौपट राजा ;
ठुकराई जाती है योग्यता , टके सेर भाजी टके सेर खाजा ।
सत्ता लिप्सा इस कदर है हावी ,राष्ट्र की जड़ को खोद रहे ;
रक्षक ही बन गये हैं भक्षक , राष्ट्र को ही ये बेच रहे ।
महामूर्ख है हिंदू इतना , अब तक भी अनजान है ;
मृत्यु की आहट सुन न पाता , लगता है बेजान है ।
मृत्यु की ऐसी निद्रा त्यागो , अपने सारे डर को त्यागो ;
धर्म – सनातन अपनी संस्कृति , इसे बचाने को अब जागो ।
शस्त्र की शिक्षा घर-घर में हो ,हर हालत में भय को त्यागो ;
भय तुमको कमजोर बनाता, जहर यही है फौरन त्यागो ।
झूठे इतिहास ने तुम्हें बनाया,कायर ,धिम्मी ,सेक्यूलरिस्ट ;
अब सच्चा इतिहास जानकर , बन जाओ तुम नेशनलिस्ट ।
सारे एक साथ आ जाओ , सारा अत्याचार मिटाओ ;
धर्म – सनातन तभी बचेगा देश को हिंदू- राष्ट्र बनाओ ।
“वंदेमातरम- जयहिंद” रचयिता: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”