अजीत भारती। दो-दो टके के यूट्यूबर्स ने 2020 के आँकड़ों के अनुसार भारत की जीडीपी में साल भर में ₹6,800 का योगदान किया। यूट्यूब से जुड़े कार्यों (ग्राफिक्स, एडिटिंग, कंटेंट क्रिएशन, कैमरा, रिसर्च आदि) के लिए 6.83 लाख से अधिक व्यक्तियों को काम मिला है। इसकी वृद्धि दर अभी 45% है, जिसमें आने वाले समय में तीव्रता की संभावना है। एक लाख रुपए से अधिक कमाने वाले चैनलों में 60% की वृद्धि हुई है। एक लाख से अधिक सब्सक्राइबर वाले चैनलों की संख्या 40,000 है, और यह बढ़ती जा रही है।
ये तो हो गई आँकड़ों की बात, परंतु हर व्यक्ति यूट्यूब से अच्छी कमाई कर ही ले, यह भी सत्य नहीं। लगभग सात लाख लोगों में से मात्र 40,000 के ही लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं, यानी मात्र 6% के आस-पास ही लोग कुछ ढंग का कमा पा रहे हैं। यूँ तो, सात लाख लोग प्रत्यक्ष रूप से रोजगार पा रहे हैं, तो प्रति चैनल औसतन तीन लोग भी रख लें तो दो लाख से अधिक चैनल हुए।
फिर भी, सत्य यह है कि लोगों को पीछे की आवश्यकताओं का बिलकुल भी भान नहीं होता और प्रोडक्शन पर परिश्रम करने की जगह ‘कुछ नहीं तो यह भी कर के देखते हैं’ का एटीट्यूड उन्हें औसत बना कर फेंक देता है। अपने अनुभव से बता रहा हूँ कि मैं जो चार साल पहले फेसबुक पर लाइव कर के बोला करता था, तीन साल पहले किसी दूसरी संस्था के यूट्यूब पर बोला करता था, और आज अपने चैनल पर बोलता हूँ, उसमें सिवाय समसामयिकता के और कोई आधारभूत अंतर नहीं।
सामग्री वही है, अनुभव समय के साथ बढ़ा है तो थोड़ा इम्प्रूवमेंट वहाँ भी हुआ होगा, लेकिन चार लाख सब्सक्राइबर के साथ भी व्यूज़ और रेवेन्यू में पिछले चैनल से डू पॉलिटिक्स में जमीन-आसमान का अंतर है। जो यह समझते हैं कि यह कार्य तो कोई भी कर लेगा, और चैनल बना कर, कुछ भी बोलेंगे तो लोग देख लेंगे, उन्हें यह जान कर हैरानी होगी कि आपके ही फ्रेंड लिस्ट के लोगों का पाँच प्रतिशत भी आपके वीडियो नहीं देखते।
क्यों? क्योंकि आपका कंटेंट बेकार और उबाऊ है, आपमें कैमरे के सामने सहजता नहीं है और आप सोचते हैं कि बिना प्रोडक्शन क्वालिटी को अच्छा किए, वीडियो डाल कर आप दर्शकों पर अहसान कर रहे हैं। आपको यह लगता है कि मेरे तो पोस्ट पर इतने लाइक आते हैं, तो यूट्यूब भी चल जाएगा। आप यह आधारभूत बात भूल रहे हैं कि लोग बिना पढ़े लाइक करते हैं, और आप साल भर में दस पोस्ट भी तीन सौ से अधिक शब्दों का नहीं लिख पाते। एक जगह पाँच सेकेंड लगता है पढ़ने और लाइक करने में, एक जगह दस मिनट का वीडियो है।
40,000 चैनल अगर एक लाख सब्सक्राइबर वाले हैं, तो इनसे 1,20,000 लोग जुड़े होंगे। एक लाख सब्सक्राइबर से अगर प्रति महीने ₹50,000 भी आ रहा हो, तो तीन लोगों में बाँट दीजिए। किसी भी कार्यक्षेत्र में टॉप के पाँच प्रतिशत लोग ही सफल हो पाते हैं। आप अपने स्कूल से कॉलेज, और कार्यालय तक में इस प्रतिशत को फलित होते देखेंगे। चालीस की कक्षा में एक से दो विद्यार्थी ही कुशाग्र बुद्धि वाला होता है।
IIT, IIM आदि से भी निकलने वाले कुल व्यक्तियों में पाँच प्रतिशत ही कुछ ढंग का कर पाते हैं। ये नियम किसी ने बनाया नहीं, ये प्राकृतिक है, बना हुआ है। यूट्यूब से पैसे कमाना खेल नहीं है। फूड ब्लॉगर से ले कर ट्रैवल ब्लॉगर, टेक रीव्यूअर और पत्रकार तक, वही सफल हैं जो समय देते हैं, क्वालिटी का ध्यान रखते हैं। अस्सी प्रतिशत कार्य तो निस्संदेह आपका कंटेंट है, लेकिन बीस प्रतिशत प्रोडक्शन का योगदान है, जो वीडियो को औसत से ऊपर ले जाता है।
कोई तो कारण होगा कि हमने पाँच-पाँच लाख के तीन कैमरे और लेंस खरीदे? कोई तो कारण होगा कि 20-20 हजार के तीन माइक होने के बाद, अब SHURE कम्पनी के तीन और (50-50,000 के) माइक में इन्वेस्ट करने जा रहा हूँ? कोई तो कारण होगा कि तीन हजार की लाइटों की जगह 30,000 की लाइटें लगा रखी हैं? कोई तो कारण होगा कि एडिटिंग के लिए तीन वीडियो एडिटर रखे?
हर चैनल का अपने एक ध्येय होता है। फूड ब्लॉगर या ट्रैवल वाले चैनल को किसी विशेष टायमिंग की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन उनका प्रोडक्शन और नैरेशन बेहतर होना चाहिए। टेक ब्लॉगर के लिए, पत्रकार के लिए टायमिंग पर ध्यान देना अधिक आवश्यक है क्योंकि वही प्रोडक्ट किसी और चैनल पर रीव्यू में आ जाएगा, या परसों की खबर पर आपका विश्लेषण आज कम लोग देखेंगे।
वीडियो में एक कहानी होती है, आपका प्रस्तुतीकरण सहज और अनोखा होना चाहिए। आप जो बोलते हैं, अगर आपने छिछली राह पकड़ी है, तो आपके दर्शक भी सतही ही होंगे। आपकी ग्रोथ आरंभ में अधिक हो सकती है लेकिन उनकी इंगेजमेंट उन्हें फेसबुक पेजों की तरह डेढ़ करोड़ फॉलोवर के बाद भी तीस लाइक वाली हो जाएगी जो 2014 में मोदी-राहुल के मीम बना कर चल रहे थे।
परिवर्तन आवश्यक है। एक निश्चित समय के बाद आपको नया कंटेंट देना होगा। नए दर्शकों को जोड़ना होगा क्योंकि सब्सक्राइबर बढ़ते रहने का मतलब यह भी होता है कि लगभग बीस प्रतिशत सब्सक्राइबर निष्क्रिय भी होते रहते हैं। फिर उन तक आपका कंटेंट नहीं पहुँचता। कोई भी कार्य जिसमें सफलता है, धन है, बिना परिश्रम के संभव नहीं है।
अगर मैं 40 मिनट में कोई वीडियो कैमरे के सामने रिकॉर्ड कर के 35 मिनट का कंटेंट दे देता हूँ तो उसके पीछे 35 साल का अनुभव है, 35 साल का परिश्रम है और वीडियो बनाने से पहले, उस विषय ये जुड़ी सामग्री पर सतत दृष्टि बनाए रखने का स्वभाव है। लोगों को लगता है कि ये क्या बात हुई कि बेड से उठा, मुँह धोया और वीडियो बना कर डाल दिया, ये तो मैं भी कर सकता हूँ।
तो कर लीजिए, किसने रोका है? अंतिम सत्य यही है कि आपके शब्दों की गुणवत्ता और आपकी तकनीकी दक्षता, आपके वीडियो की प्रोडक्शन क्वालिटी ही एक बेहतर चैनल बना सकती है। यूट्यूब, टाइमपास नहीं है कि आपको दाँत में माचिस की तीली चबाते समय एक विचार आया और आप फोन ले कर बैठ गए। वो कंटेंट क्यों बनाया जाए, उसे कौन देखेगा, उसमें देखने वाला क्या-क्या देखना चाहेगा आदि बड़े प्रश्न हैं जिसके उत्तर में आपको पूर्ण स्पष्टता होनी चाहिए।
‘आप तो ब्रांड हैं, इसलिए तुरंत लोग जुड़ जाते हैं’ कहने वाले यह भूल जाते हैं कि मैं किसी सुपर मार्केट के शेल्फ से नहीं लाया गया था। ब्रांड तो याहू भी था, गायब हो गया मार्केट से। जब गूगल क्रोम आया था तो उससे पहले इंटरनेट एक्सप्लोरर था, अब नहीं है। आपको ब्रांड बनने में भी परिश्रम करनी होती है और वहाँ बने रहने में भी। सिक्स पैक ऐब बना लो, और फिर जिम जाना बंद कर दो, अंतर एक सप्ताह में दिखने लगेगा।
अति उत्तम, ये लेख भावी युट्यूबर्स के लिए सीख है और गंदे और भद्दे कंटेंट बनाने वालों के मुंह पर कराया तमाचा।
धन्यवाद
Uttam.