हिंदुओं की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसका सारा फोकस साध्य (हिंदू राष्ट्र, सनातन चेतना का विस्तार, सनातन राज्य व कानून व्यवस्था की वापसी आदि) पर नहीं, केवल साधन (राजनीति पार्टियां) पर है। इसलिए साधन भटकता है तो वह निराश होता है, या फिर अपनी मूढ़ता में साधन के भटकन को जस्टिफाई करते हुए अपनी आत्महीनता को प्रदर्शित करता रहता है! उसकी चेतनाहीनता ही उसका काल है।
सत्, चित् और आनंद- यानी सच्चिदानंद के विराट स्वरुप में चेतना महत्वपूर्ण है। चेतनाविहीन हिंदू सिर्फ कटने वाली ‘मुर्गियां’ हैं, जो आज नहीं तो कल, इस नहीं तो उसके द्वारा कटनी ही हैं! चेतनहीन मनुष्य पर तो परमात्मा की कृपा भी नहीं होती।