विपुल रेगे। एक भारतीय सैनिक रेडियो पर इंटरव्यू देते हुए कह देता है कि वह अनाथ है। कुछ दिन बाद देशभर से लोग उसे पत्र भेजना शुरु कर देते हैं। इनमे एक पत्र अनोखा है। पत्र लिखने वाली सीता महालक्ष्मी है। सीता स्वयं को सैनिक राम का पति बताती हैं। राम की उत्सुकता बढ़ती है और वह सीता को खोजने के लिए निकल जाता है। ‘सीता रामम’ एक हृदयस्पर्शी प्रेम कथा है। इसका एक सिरा भारत में तो दूसरा सिरा पाकिस्तान की जेल में मिलता है। विगत एक दशक में ऐसी मार्मिक प्रेम कथा सिनेमा के परदे पर नहीं देखी गई थी।
हानू राघवपुडी द्वारा निर्देशित ‘सीता रामम’ अगस्त माह में ही तेलुगु में प्रदर्शित कर दी गई थी। संतुलित बजट में बनाई गई इस फिल्म ने दक्षिण भारत में खूब प्रशंसा पाई और कलेक्शन भी अच्छा किया। अब हिन्दी पट्टी के दर्शकों को ‘सीता रामम’ बहुत पसंद आ रही है। ये वह समय है, जब सिनेमा उद्योग को एक सशक्त प्रेम कथा की आवश्यकता थी। उस वेक्यूम को ‘सीता रामम’ लबालब भर देती है।
बहुत समय से बॉक्स ऑफिस एक्शन फिल्मों से भरा हुआ था और एक परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। प्रभास की ‘राधे श्याम’ प्रेम कथाओं के ट्रेंड को वापस ले आती लेकिन वह फ्लॉप हो गई। अब ऐसा लग रहा है कि ‘सीता रामम’ रोमांटिक कथाओं का एक नया ट्रेंड चला सकती है। फिल्म की यूएसपी इसकी अनूठी कथा और स्क्रीनप्ले है। इसके कंटेंट में वह ताकत है कि दर्शक के मुंह से स्वतः प्रशंसा निकलवा सकता है। एक सैनिक राम द्वारा सीता महालक्ष्मी के नाम पर एक पत्र लिखा गया है।
ये पत्र बीस वर्ष पकिस्तान में पड़ा रहता है। इसके बाद एक लड़की वहां से भारत आकर सीता महालक्ष्मी को खोज रही है लेकिन उसकी खोज पूरी नहीं हो रही। बीस वर्ष के बाद राम और सीता की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। इस रोचक स्टोरी लाइन पर निर्देशक ने प्रशंसनीय कार्य किया है। निर्देशक ने राम और सीता के नाम का मान रखा है। एक शाही मुस्लिम खानदान की राजकुमारी अपना नाम सीता महालक्ष्मी रख लेती है।
उसके ऐसा करने का कारण कश्मीर में हुई वह घटना है, जिसमे नायक ने राम की भांति उसकी रक्षा की थी। नायिका ‘सीता’ नाम को चरितार्थ करती है। निर्देशक ने बहुत ध्यान रखा है कि उसकी छवि अशोभनीय न बनने पाए। राम नाम का सैनिक भी ऐसा ही है। मानव मात्र के लिए उसके मन में करुणा है और सीता के लिए अगाध प्रेम है। इस सीता रामम का रामायण से सीधा कोई संबंध नहीं है लेकिन राम और सीता प्रतीक बन पूरी फिल्म में परिलक्षित होते हैं।
दुलेकार सलमान अत्यंत प्रतिभाशाली अभिनेता हैं। उन्होंने राम के चरित्र को निष्ठापूर्वक निभाया है। मृणाल ठाकुर अब एक सितारा बन चुकी हैं। उन्हें वह फिल्म मिल गई, जिसकी उन्हें प्रतीक्षा थी। मृणाल ठाकुर ने दिखाया है कि उनका अभिनय अब परिपक़्व और सहज हो चला है। संपूर्ण फिल्म इन दोनों कलाकारों के प्रेम रसायन में आकंठ डूबी रहती है। चूँकि फिल्म में नायिका मुस्लिम और नायक हिन्दू है, इसलिए हिन्दी समीक्षकों ने इस पर बड़ी ठंडी प्रतिक्रिया दी है।
हालाँकि पब्लिक रिस्पॉन्स से हिन्दी पट्टी में कलेक्शन बढ़ते जा रहे हैं। सीता रामम अपनी आभा से एक दशक से चले आ रहे एक्शन-थ्रिलर ट्रेंड को फीका कर देती है। इसमें सर्वत्र प्रेम बिखरा पड़ा है। फिल्म का अंत दर्शकों की पलकों को नम कर देता है। ये अश्रुओं से भरा एक निर्मल आनंद है। ये इतना निर्दोष है कि आज के ट्रेंड को देखते हुए इसकी सफलता पर संदेह होने लगता है। जब चारों ओर एकता कपूर टाइप मनोरंजन की भरमार हो तो एक निर्मल प्रेम कथा में किसे आनंद आएगा।
हालांकि लगातार बढ़ते कलेक्शन को देख लग रहा है कि फिल्म हिन्दी पट्टी में भी बहुत प्यार पाएगी। यदि आप प्रेम कथाएं पसंद करते हैं तो इस सप्ताहांत ‘सीता रामम’ देखी जा सकती है। इसमें कोई अश्लीलता नहीं है और न अधिक हिंसा। इसे आप परिवार के साथ देख सकते हैं।