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India Speak Daily > Blog > पाॅप कल्चर > मूवी रिव्यू > एक टाइमपास फिल्म, जो अच्छा सन्देश देती है फिल्म रिव्यू: उजड़ा चमन
मूवी रिव्यू

एक टाइमपास फिल्म, जो अच्छा सन्देश देती है फिल्म रिव्यू: उजड़ा चमन

Vipul Rege
Last updated: 2019/11/02 at 3:02 PM
By Vipul Rege 121 Views 5 Min Read
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गंजापन और मोटापा ऐसी बीमारियां हैं, जो जवानी में हो जाए तो बड़ी परेशानियां खड़ी हो जाती हैं। इनको फिल्म का विषय बनाना निश्चय ही साहसिक काम है। बॉक्स ऑफिस हर सप्ताह निर्ममता से बड़े-छोटे बजट की फिल्मों को कुचलकर रख देता है और ऐसे में ‘उजड़ा चमन’ जैसी ऑफबीट कॉमेडी बनाना बॉक्स ऑफिस का जोखिम ही कहा जाएगा। सुपरहिट कन्नड़ फिल्म ‘ओंडू मोटेया काथे’ की इस हिंदी रीमेक को मिलीजुली प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। मिक्स रिस्पॉन्स के बावजूद ये फिल्म लागत वसूल करने में सफल रहेगी।

चमन एक कॉलेज में हिन्दी का प्रोफेसर है। गंजेपन के कारण उसे लड़कियां रिजेक्ट करती रहती है। कॉलेज में स्टूडेंट उसका मज़ाक बनाते हैं। एक दिन ज्योतिषी कहता है कि 31 साल होने से पहले शादी करना जरुरी है। यदि नहीं हुई तो लड़का कुंवारा रह जाएगा। अब चमन की तलाश तेज़ हो जाती है। कॉलेज, शादी, मार्केट, हर जगह चमन लड़की खोजता फिरता है। एक दिन वह टिंडर पर अप्सरा से मिलता है। अप्सरा की समस्या ये है कि वह बहुत मोटी है। परिस्थितियां दोनों को करीब लाती हैं लेकिन मुश्किल एक ही है कि चमन का दिल अब तक नहीं माना है।

ये कहने में गुरेज नहीं है कि इस फिल्म को और बेहतर बनाया जा सकता था। फिल्म के कुछ ‘की-सीक्वेंस’ और प्रभावी बनाए जा सकते थे। निर्देशक की कोशिश अच्छी रही है लेकिन इसे शानदार नहीं कहा जा सकता। इसकी सबसे बड़ी कमी है कि कॉमेडी फिल्म होते हुए भी एक फुल टाइम कॉमेडियन नहीं रखा गया है। इस वजह से पहले हॉफ में जब कहानी आकार लेती है तो सपाट स्क्रीनप्ले के चलते दर्शक बोरियत महसूस करता है। चमन के पिता का किरदार अतुल कुमार के बजाय किसी और को दिया जाना चाहिए था। फिल्म के उबाऊपन का सबसे बड़ा कारण ‘मिस्कास्टिंग’ रहा है। सनी सिंह और मानवी गग्रु को छोड़कर पूरी फिल्म ही मिस्कास्टिंग का शिकार हो गई।

फिल्म के दूसरे हॉफ में जरूर कुछ अच्छे दृश्य आए हैं। ख़ास तौर से मानवी की एंट्री के बाद फिल्म में ताजगी आती है। भारतीय समाज के लिए अच्छा संकेत है कि अब नए विषयों पर फ़िल्में बनाई जा रही हैं और ऐसी बी-टाउन फिल्मों में पारिवारिक परिवेश दिखाया जाना आशाजनक संकेत है।

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‘बधाई हो’ की धमाकेदार सफलता ने ये निश्चित किया था कि बॉलीवुड में फिल्मों का ट्रेंड अब एक्शन से बदलकर इमोशन और कॉमेडी हो जाएगा। पिछले सप्ताह हमने ऐसी ही प्रभावी फिल्म ‘सांड की आँख’ देखी थी। यदि मैं उजड़ा चमन की गलतियों को एक ओर रख दूँ तो यही कहूंगा कि ये फिल्म युवाओं को सार्थक सन्देश देने में सफल रहती है।

निर्देशक ने अप्सरा का चरित्र खूबसूरती से गढ़ा है। प्रेमी ने उसे छोड़ दिया है क्योंकि उसके परिवार को वह ओवरवेट लगती है। वह चमन को सिखाती है कि जिंदगी जैसी है, स्वीकार करना सीखो। मानवी ने अपने किरदार को गंभीरता से निभाया है। वे ग्लैमरस नहीं लगती लेकिन उनका अभिनय प्रभावकारी है। सोनू के टीटू की स्वीटी के बाद सनी सिंह से बहुत अपेक्षा थी। वे अपने किरदार को अच्छी तरह निभा ले गए हैं। जैसे कि ये किरदार मांग करता है, वे ऐसे ही नज़र आए हैं।

फिल्म की लागत कम है और निर्देशक ने भी ठीकठाक काम किया है। सनी सिंह की फॉलोइंग भी सोनू के टीटू की स्वीटी के बाद बढ़ी है। ये एक टाइमपास फिल्म है, जो समाज में एक अच्छा सन्देश देती है। फिल्म का दूसरा हॉफ गतिशील और मनोरंजक है। सो इस लिहाज से बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म सुरक्षित रहेगी। चाहे तो देख सकते हैं क्योंकि इसमें कोई अश्लीलता भी नहीं है और परिवार के साथ देख सकते हैं।

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TAGGED: film review, hindi film, movie review, Ujda Chaman, Ujda Chaman movie review
Vipul Rege November 2, 2019
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Vipul Rege
Posted by Vipul Rege
पत्रकार/ लेखक/ फिल्म समीक्षक पिछले पंद्रह साल से पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय। दैनिक भास्कर, नईदुनिया, पत्रिका, स्वदेश में बतौर पत्रकार सेवाएं दी। सामाजिक सरोकार के अभियानों को अंजाम दिया। पर्यावरण और पानी के लिए रचनात्मक कार्य किए। सन 2007 से फिल्म समीक्षक के रूप में भी सेवाएं दी है। वर्तमान में पुस्तक लेखन, फिल्म समीक्षक और सोशल मीडिया लेखक के रूप में सक्रिय हैं।
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