
मैं, मेरा बचपन और शास्त्रीजी!
शास्त्री जयंती पर विशेष। मैं, मेरा बचपन और लालबहदुर शास्त्रीजी!
मैं तब आठवीं में था। सरकारी छात्रवृत्ति के कारण पटना से निकल कर उदयपुर के विद्याभवन स्कूल में पढ़ने पहुंचा था। मेरे जीवन में साहित्य लेखन की शुरुआत यहीं से हुई। कहानी लेखन प्रतियोगिता में मैं तीसरे स्थान पर रहा था। स्कूल की पत्रिका ‘पूर्वा’ में मेरे नाम से वह कहानी छपी भी थी। आज लेखक हूं, पर मन सालता रहता है, अपनी उस पहली कहानी को पाने के लिए। मेरे पास ‘पूर्वा’ की एक भी कॉपी नहीं है, न ही वह कहानी मुझे ठीक से याद है और न ही उसका शीर्षक! मैं उसे दोबारा लिखूं तो कैसे लिखूं?
उसी साल-१९८९ के दो अक्टूबर की बात है। स्कूल में ‘गांधी जयंती’ नाम से भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। मैंने इसमें भी हिस्सा लिया। सबने गांधीजी पर बोला, लेकिन पूरे स्कूल में मैं अकेला था जिसने शास्त्री जी पर बोला था। ऐसा नहीं कि मुझे गांधी अच्छे नहीं लगते, बल्कि #कहानीकम्युनिस्टोंकी खंड-१ में तो मैंने गांधीवाद को स्थापित किया है। आजादी से पूर्व भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक मात्र गांधी थे, जिन्होंने कम्युनिज्म के खतरे को पहचाना था और उससे देश को बचाने के लिए प्रयास किया था। वह अपने पत्र में भी कम्युनिस्टों के प्रति सदाशयता प्रकट करते नहीं दिखते! लेकिन गांधी की ढेर सारी कमजोरियां भी थी।
इतिहासकारों से लेकर आम लोगों तक की दिक्कत यह है कि वह हमेशा अच्छे और बुरे में बांटकर ही चीजों को समझते हैं! वह भूल जाते हैं कि चीजों को तटस्थ भाव से भी समझा जा सकता है। कृष्ण ने इसे ही स्थितप्रज्ञ मनोदशा कहा है, बुद्ध ने होश, ओशो ने साक्षीभाव और जीवन (Life) ने ग्रे-शेड।
जीवन में ब्लैक एंड व्हाइट कुछ नहीं होता, होता है तो सब ग्रे! मैं हमेशा जीवन के ग्रे-शेड को पकड़ कर चला हू़ं, इसलिए मुझे सिक्के का दोनों पहलू नजर आ जाता है। मेरे विषय समाजशास्त्र ने और मेरे गुरू ओशो की शिक्षाओं व ध्यान विधियों ने मुझे होश साधना सिखाया। होश में मुझे कभी किसी के अंदर पूरा काला या पूरा सफेद नजर नहीं आता। कोई बहुत काला है तो थोड़ा सफेद भी है, और कोई बहुत सफेद है तो थोड़ा काला भी। यही ग्रे-शेड है।
तो जो लोग अकसर मुझसे कहते हैं कि ‘संदीप जी आज आप यह कह रहे हैं, लेकिन पहले तो आपने यह कहा था?’ द्वंद्व महसूस करते ऐसे मित्रों को कहना चाहता हूं कि “यदि केवल दिन देखोगे तो रात की नीरवता से चूक जाओगे, और केवल रात देखोगे तो दिन के उजियारे से वंचित रहोगे। जन्म पर खुश होगे तो मृत्यु दुख देगा, मृत्यु से दुखी होगे तो जन्म का उल्लास खो जाएगा। जीवन की धारा दो विरुद्धों के बीच ही है। साक्षी-भाव में जीते ही यह द्वंद समाप्त हो जाता है, और तब जाकर कहीं मोक्ष का मार्ग प्रकट होता है!
विषयांतर हो रहा है! हां तो, तब मेरे बालमन में केवल यह चल रहा था कि स्कूल सहित सब गांधीजी पर बोलने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन आज हमारे दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्रीजी की भी तो जयंती है? सबने उन्हें भुला क्यों दिया है? मैंने बस शास्त्रीजी की याद दिलाने की कोशिश भर की थी। मेरी सराहना हुई थी कि मैंने शास्त्रीजी की याद सबको दिलाई।
शास्त्री जी मुझे बहुत भले और सीधे-साधे इनसान लगते थे। इसकी वजह केवल मेरी नानी थी। नानी बचपन में मुझे अपने हाथ से खाना खिलाते हुए कहानियां सुनाया करती थी। रामामण, महाभारत, पुराण, उपनिषद, स्वतंत्रता-संग्राम आदि का बीज कहानियों के माध्यम से मेरे अंदर उन्होंने ही बोया है। नानी ने शास्त्री जी से जुड़ी अनेक कहानियां मुझे सुनाई थी। उन सभी कहानियों का प्रभाव आज तक मेरे मानस पर है।
समाजशास्त्री कहते हैं कि सात साल की उम्र तक किसी बच्चे का जो समाजीकरण होता है, वही उसका मूल व्यक्तित्व बनाता है। यह तो मैंने बाद में पढ़ा, लेकिन मेरी नानी ने तो बिना इसे पढ़े ही मुझे गढ़ दिया!
यही कारण है कि मैं आप सभी को अपने बच्चों के बचपन पर समय निवेश करने को कहता हूं। लेकिन आज के तथाकथित आधुनिक मां-बाप ने तो बच्चे के जन्म को ‘इश्यू’ बना लिया है, इसलिए संतति के समाजीकरण की समझ उनके अंदर से विलुप्त हो चुकी है। बस ‘काम’ से ‘बांझपन’ के अभिशाप और उत्तराधिकार-विहीन मृत्यु के भय से मुक्ति मिल रही है, दांपत्य से प्रेम और उस प्रेम से पृथ्वी के ऋण से मुक्ति का आधार सूखता चला जा रहा है!
आजादी से पहले जैसे गांधीजी ने कम्युनिज्म के खतरे को पहचाना था, आजादी के बाद एक मात्र शास्त्रीजी ही इसके खतरे को पहचान पाए थे। ताशकंद से लौटकर वह एक बड़ा परिवर्तन करने वाले थे जो कम्युनिस्टों के तब के फादर लैंड सोवियत संघ के खिलाफ था, शायद इसीलिए उन्हें मार डाला गया। #कहानीकम्युनिस्टोंकी खंड-२ में मैं इस पर से पर्दा उठाने की कोशिश करूंगा
यह थी मेरे अंदर पनपे शास्त्रीजी की कहानी, जिसे अपनी अगली पुस्तक में मैं एक ढांचागत रूप देने के प्रयास में हूं। आप सब अपने बचपन में झांकिए, अनेकों नायक, महानायक, खलनायक वहां बिखरे पड़े हैं। उन्हें तटस्थ भाव से देखिए, सूत्र पकड़िए और भविष्य की पीढ़ी को उसे सुपुर्द कर दीजिए। भारतीय उपनिषदों का सार यही है- ‘श्वेतकेतु तत्वमसी’!
URL: a tribute to lal bahadur shastri from sandeep deo on his birthday 2nd october
Keywords: Lal Bahdur Shastri, Mahatma Gandhi, 2 october, gandhi jaynti, shastri jyanti, Sandeep Deo Blog, Kahani Communiston Ki, लाल बहादुर शास्त्री, महात्मा गांधी, 2 अक्टूबर, गांधी जयंती, शास्त्री जयंती, संदीप देव ब्लॉग, कहानी कम्युनिस्टों की,
ज्ञान अनमोल हैं, परंतु उसे आप तक पहुंचाने में लगने वाले समय, शोध, संसाधन और श्रम (S4) का मू्ल्य है। आप मात्र 100₹/माह Subscription Fee देकर इस ज्ञान-यज्ञ में भागीदार बन सकते हैं! धन्यवाद!
Select Subscription Plan
OR
Make One-time Subscription Payment
Bank Details:
KAPOT MEDIA NETWORK LLP
HDFC Current A/C- 07082000002469 & IFSC: HDFC0000708
Branch: GR.FL, DCM Building 16, Barakhamba Road, New Delhi- 110001
SWIFT CODE (BIC) : HDFCINBB
Paytm/UPI/Google Pay/ पे / Pay Zap/AmazonPay के लिए - 9312665127
WhatsApp के लिए मोबाइल नं- 9540911078