विपुल रेगे। सम्राट पृथ्वीराज की असफलता के तुरंत बाद अक्षय कुमार की एक और नई फिल्म ‘रक्षाबंधन’ का प्रोमो रिलीज कर दिया गया है। लगातार फ्लॉप झेल रहे अक्षय और उनके प्रशंसकों को आशा बंधी है कि रक्षाबंधन से पुनः अच्छे दिनों की वापसी हो जाएगी। अक्षय कुमार का सितारा तेज़ी के साथ डूब रहा है। इस खेल में देखा जा रहा है कि बॉलीवुड के टीनएजर दर्शकों का साथ अक्षय जैसे अभिनेता को नहीं मिल रहा है।
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। भारत के सिनेमाघरों में फ़िल्में देखने वाले अधिकांश युवा दर्शक ही होते हैं। एक सर्वे के अनुसार भारत के थियेटर्स में 15 से 25 आयुवर्ग के दर्शक सबसे अधिक फ़िल्में देखते हैं। इस आयुवर्ग का समर्थन जिस सितारे को मिल जाता है, वह बॉक्स ऑफिस का किंग बन जाता है। पिछले दिनों इस आयुवर्ग के दर्शकों ने विक्रम और भूलभुलैया : 2 को जबरदस्त समर्थन दिया है। विशेष रुप से बॉलीवुड के टीनएजर्स दर्शकों ने कार्तिक आर्यन को अक्षय कुमार से अधिक समर्थन दिया।
बॉलीवुड का स्टार सिस्टम बनाने वाले दिग्गजों को अब मान लेना होगा कि वर्तमान स्टार सिस्टम दरक रहा है। वे कैसे भी कर इसमें जान नहीं फूंक सकते हैं। सलमान-आमिर-शाहरुख-सैफ-अक्षय की आयु पचास पार पर चुकी है। अब इन लोगों के बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाने के चांस घटते जा रहे हैं। किशोर वय के दर्शक जिस सितारे का साथ छोड़ देते हैं, उसे सिंहासन से उतरना ही पड़ता है। रक्षाबंधन का प्रोमो दर्शकों में कुछ ख़ास उत्सुकता नहीं जगा पा रहा है।
उत्सुकता इसलिए नहीं बन पा रही क्योंकि अक्षय कुमार ओवर एक्सपोज्ड हो चुके हैं। वे फिल्मों में फ्लॉप होने के बाद विज्ञापनों का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं। ऐसे में अक्षय 24 घंटे दर्शक के मोबाइल फोन पर आते-जाते रहते हैं। उनको शाहरुख़ ख़ान से सीखना चाहिए। हाल ही में शाहरुख़ की आगामी फिल्म जवान का प्रोमो प्रदर्शित हुआ। इस प्रोमो को बहुत पसंद किया गया। शाहरुख़ लगातार फ्लॉप होने के बाद कुछ समय के लिए फिल्मों से दूर हो गए। अब लोग उनको देखना चाहते हैं।
जब आपकी फ़िल्में फ्लॉप होने लगे तो गायब हो जाना एक अच्छा उपचार होता है। रक्षाबंधन में अक्षय कुमार तीन बहनों के मजबूर भाई का किरदार निभा रहे हैं। रक्षाबंधन एक भावुकता भरा विषय है। जब आनंद एल राय जैसा निर्देशक इस विषय पर फिल्म बनाएगा तो वैसे नहीं बनेगी, जैसे दर्शक अपेक्षा करता है। अक्षय तीनों बहनों की शादी कराना चाहते हैं लेकिन दहेज़ देने के लिए उनके पास पैसे नहीं है। भारत में दहेज़ प्रथा एक विकराल समस्या बन खड़ी हुई थी।
अस्सी के दशक में ये चरम पर रही किन्तु देश में शिक्षा का प्रतिशत बढ़ने के साथ दहेज़ के मामलों में मामूली कमी आने लगी। आज भारत के परिवार अपने घर की बेटियों के दहेज़ की बाद में सोचते हैं, पहले उसे शिक्षित कर अपने पैरों पर खड़ा करना प्रथम कर्तव्य समझते हैं। अक्षय कुमार की इस फिल्म को देखकर लगता है कि निर्देशक अचानक से अस्सी के दशक में जाकर भारत को देख रहा हो। वर्तमान में तो हिन्दू परिवारों में एक या दो बच्चे ही देखने को मिलते हैं।
रक्षाबंधन में अक्षय कुमार की तीन बहने दिखाई गई हैं। ऐसा भरापूरा परिवार तो हम अस्सी के दशक में देखा करते थे। संवाद भी ऐसे हैं जो स्वीकार नहीं किये जा सकते। एक दृश्य में अक्षय कह रहे हैं ‘ भाई साहब इस देश के हर घर में एक बेटी है, जिसका दहेज़ कम पड़ रहा है।’ क्या ऐसे संवाद कुरीतियों की बेड़ियां तोड़ रहे भारतीय परिवारों पर ठीक बैठती है ? अब तो देश के बहुत से युवा बिना दहेज़ विवाह कर देश के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आनंद राय अपनी फिल्मों में कभी भारतीय संस्कारों और परंपराओं पर प्रहार करने का अवसर नहीं छोड़ते। क्या रक्षाबंधन ने उन्हें फिर ऐसा अवसर उपलब्ध करा दिया है।