विपुल रेगे। डिज्नी+हॉटस्टार पर एक ‘आर या पार’ नामक वेब सीरीज रिलीज हुई है। जंगल और शहर की लड़ाई दिखाती इस कहानी की दर्शकों ने तो प्रशंसा की है लेकिन अधिकांश क्रिटिक्स ने इसकी आलोचना की है। कुछ क्रिटिक्स इसे ‘अवतार’ की कॉपी बता रहे हैं। हालांकि वे ये भूल जाते हैं कि अवतार की प्रेरणा तो भारत के पौराणिक ग्रन्थ ही थे। 30 दिसंबर को रिलीज हुई आर या पार एक्शन थ्रिलर ज़ॉनर में भारतीय सिनेमा के बढ़ते क़दमों को दिखाती है। जंगल और शहर की लड़ाई को निर्दशक जोड़ी ने रोचक ढंग से पेश किया है।
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‘आर या पार’ की कथा देघोहाट के जंगलों से शुरु होती है। यहाँ का आदिवासी समूह सरकार द्वारा सरंक्षण प्राप्त है। एक बहुत बड़े उद्योगपति रुबिन भट्टा की निगाह इस जंगल पर पड़ चुकी है। ये भी पता चलता है कि जंगल में अरबों डॉलर का यूरेनियम दबा पड़ा है। इसे पाने के लिए भी बहुत से शक्तिशाली व्यक्ति प्रयास कर रहे हैं। कहानी का मुख्य पात्र है सरजू। सरजू तीरंदाज़ी में एक्सपर्ट है।
कहानी में एक डॉक्टर है, जिसका नाम संघमित्रा दास है। संघमित्रा आदिवासियों की भलाई के लिए कार्य करती आ रही है। रुबिन संघमित्रा को चारा बनाकर आदिवासियों की ज़मीन हड़पना चाहता है। कहानी में एक दलाल है। इस दलाल का नाम पुलप्पा है। पुलप्पा अंडरवर्ल्ड को जंगल से अच्छे तीरंदाज उपलब्ध करवाता है, ताकि वे कॉन्ट्रेक्ट किलिंग में काम आ सके।
रुबिन एक दिन जंगल से गुज़रने वाली नदी में ज़हर मिलवा देता है और गांव के लोग मरने लगते हैं। कहानी आगे बढ़ती है। रुबिन के आदमी जंगल में लगातार घुसपैठ कर रहे हैं। एक दिन जंगल में बहुत से आदिवासियों की हत्या कर दी जाती है। अब सरजू रुबिन को मारना चाहता है। उधर पुलप्पा रुबिन को कॉन्ट्रेक्ट किलिंग के लिए इस्तेमाल कर रहा है। जंगल पर ख़तरा बढ़ता जा रहा है।
इस स्क्रीनप्ले में ऐसी ग्रिप है कि दर्शक पूरे आठ एपिसोड देखे बिना नहीं रह सकता। सीरीज का निर्देशन चार निर्देशकों ने मिलकर किया है। ग्लेन बारेटो, सिद्धार्थ सेनगुप्ता, अंकुश मोहला और नील गुहा ने स्तरीय निर्देशन किया है। सभी एपिसोड्स इंटरेस्ट जगाते हैं। आप इस सीरीज को बीच में नहीं छोड़ सकते। फिल्म के एक्शन पर गौर करने की आवश्यकता है।
इसका एक्शन बीरेंद्र नामक स्टंट डाइरेक्टर ने तैयार किया है, लेकिन बहुत से एक्शन सीक्वेंस में ये आपको हॉलीवुड का टच देता है। कम संसाधनों और कम खर्च में अच्छा दर्शनीय एक्शन तैयार किया गया है। सिनेमेटोग्राफी और आर्ट डाइरेक्टशन बड़ा प्रभावी है। आर्ट डायरेक्शन की प्रशंसा इसलिए करनी होगी क्योंकि आदिवासियों की वेशभूषा और उनकी संस्कृति को रियलिस्टिक टच दिया गया है।
अब बार अवतार की नकल की करते हैं। पहली बात तो ये फिल्म अवतार की नक़ल बिलकुल नहीं है। ये विशुद्ध भारतीय कथा है। जंगल और सरकारों की लड़ाई क्या भारत में नहीं चल रही? क्या आदिवासी अपने जंगल समाप्त होते जाने से आक्रोशित नहीं है ? कथा के केंद्र में यूरेनियम नामक धातु को रखा गया है, इससे कथा में आकर्षण बढ़ जाता है।
यदि कम संसाधनों में फिल्म मेकर्स ने एक अच्छी एक्शन-थ्रिलर बनाने की कोशिश की है, तो क्या बुरा कर दिया ? कुछ फिल्म समीक्षक इसे भिन्न ढंग से क्रिटिसाइज कर रहे हैं लेकिन ये नहीं जान रहे कि दर्शक इस वेब सीरीज को लेकर क्या सोच रहा है। एक्टिंग की बात की जाए तो सभी बेमिसाल दिखाई देते हैं। आशीष विद्यार्थी का किरदार बड़ा ही वज़नदार है। फिल्म की केंद्रीय भूमिका आदित्य रावल ने निभाई है।
वे आने वाले समय में बड़े स्टार बन सकते हैं। आदित्य का अभिनय बड़ा ही स्वाभाविक है। पुलप्पा के किरदार में दिब्येंदु भट्टाचार्य बाज़ी मार ले गए हैं। एक लंगड़े आदमी की भूमिका उन्होंने बहुत ही वास्तविक ढंग से पेश की है। संघमित्रा की भूमिका पत्रलेखा पॉल ने निभाई है। एक मॉडल के रुप में कॅरियर शुरु करने वाली संघमित्रा में अभिनय के तेवर दिखाई देते हैं।
किसी निर्देशक की सफलता इस बात में होती है कि वह अपने सब्जेक्ट को कितना ज़ूम करके देख रहा है। ‘आर या पार’ में हमें गहराई देखने को मिलती है। एक आदिवासी का कैरेक्टर प्रभावी ढंग से गढ़ा गया है। एक काल्पनिक ट्राइब के गेटअप, उनके हथियार, उनके निवास कैसे दिखने चाहिए, इस पर आर्ट डाइरेक्टर ने अच्छा शोध किया है। चूँकि ये फिल्म कुछ गुमनाम लोगों द्वारा बनाई गई है।
उनकी मीडिया टीम है ही नहीं और न उनके पास उनके पक्ष में लिखने वाले क्रिटिक्स हैं। यही कारण है कि एक अच्छी और स्तरीय वेबसीरीज ख़बरों में स्थान नहीं पा रही है। मुझे फिल्म की सबसे अच्छी बात ये लगी कि जंगल का विषय होते हुए भी इसे ‘नक्सली’ विषय से दूर रखा गया है। फिल्म में कोई आपत्तिजनक दृश्य नहीं है। ये रोचक वेबसीरीज 16 वर्ष से ऊपर के दर्शक देख सकते हैं।
फिल्म में कुछ जगह पर गालियों का प्रयोग है, जो अखरता है। बाकी तो ये वेब सीरीज मनोरंजक है। और हम मनोरंजन के लिए ही तो फ़िल्में देखते हैं।