गुंडों से इतना डरते हो , आखिर क्या मजबूरी है?
क्या तुम ब्लैकमेल होते हो , आखिर क्या कमजोरी है ?
जिसने तुम पर किया भरोसा, उसने क्यों धोखा खाया ?
इतना डर कर काम करोगे ,राजनीति को छोड़ दे भाया।
नाना जी ने आदर्श बनाया ,साठ साल में पद को छोड़ा ;
तू तो सत्तर साल के ऊपर, तूने पद को क्यों नहीं छोड़ा ?
गर्म खून है आज जरूरत , ठंडे का अब काम नहीं ;
फौरन अपने पद को छोड़ो , वरना राष्ट्र की क्षेम नहीं ।
आये दिन निर्दोष मर रहे , गुंडागर्दी बढ़ती जाती ;
अपराधों की बाढ़ यहां है , तुझे न चौकीदारी आती ।
जाने कैसी चौकीदारी ? गद्दारों का देश में तांडव ;
अब तो ऐसा लगने लगा है , बनवासी हैं सारे पांडव ।
तू तो ऐसा कभी नहीं था , क्यों बन बैठा है धृतराष्ट्र ?
चारों ओर आतंकी घूमें , खतरे में देखो है राष्ट्र ।
जाने कैसे पार्टी वाले ? पता नहीं क्या करते हैं ?
क्या सारे धृतराष्ट्र हो गये ? कुछ भी नहीं देखते हैं ।
तीन साल बस बचे हैं बाकी , पता नहीं अब क्या होगा ?
अगर रहा धृतराष्ट्र का शासन , दल सत्ता से बाहर होगा ।
अब तो केवल एक रास्ता ,तुम सबको भारत का वास्ता ;
राष्ट्र बचाने की खातिर तुम , अब तो ढूंढो नया रास्ता ।
हर दल में जो राष्ट्र भक्त हैं , सब दलदल से बाहर आयें ;
धर्म ध्वजा के नीचे आकर , एक नया दल तुरत बनायें ।
सारे मिलकर लड़ें इलेक्शन , देश की सत्ता में वे आयें ;
हिंदू राष्ट्र बने अब भारत , ये ही मुद्दा लेकर आयें ।
सब अंधियारा छंट जायेगा , उजियारा आ जायेगा ;
गुंडागर्दी खत्म हो सारी और सुशासन आयेगा ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचयिता: बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”