अब तो तेरे नाम को सुनकर , उबकाई आने लगती है ;
धोखे से फोटो दिख जाये , तो घिन होने लगती है ।
जो भी जैसे काम करेगा , वैसा ही हो जाता है ;
नाटक चाहे जितना कर ले , मगर फ्लॉप हो जाता है ।
तेरा नाटक फ्लॉप हो चुका , बंद थियेटर जल्दी होगा ;
किया धरा जितना भी तेरा , हिन्दू जनता के सामने होगा ।
चेहरे पर कितने चेहरे हैं ? एक-एक कर उतर रहे हैं ;
अब्बासी-हिंदू तू कितना है ? देश के हिंदू जान रहे हैं ।
तेरे जितने लगुवे – भगुवे , कुछ भी न कर पायेंगे ;
इतनी दुर्गति होने वाली , कूच – देवता कर जायेंगे ।
कैसे अब तक भेद खुला न ? बहुत बड़ा ये भेद है ;
अंतर्राष्ट्रीय – साजिश लगती , अब्राहमिक ये खेल है ।
महामूर्ख – हिंदू कितना है ? कितना भोला- भाला है ?
अपने दुश्मन को सत्ता देकर , समझा कि रखवाला है ।
इसी से कितने मंदिर टूटे ? अन्यायपूर्ण सरकारी – कब्जा ;
अरबों – खरबों रुपये लूटकर , और बढ़ाते जाते कब्जा ।
सभी दलों में अब्बासी – हिंदू , राष्ट्र तोड़ने वाले हैं ;
जातिवाद को बढ़ा – बढ़ाकर , धर्म तोड़ने वाले हैं ।
धर्म – सनातन छोड़ चुके हैं , अब्राहमिक एजेंडा है ;
डॉलर – दीनार में फंसे हुये हैं , पड़ता चांदी का डंडा हैं ।
आधा – राष्ट्र तो तोड़ चुके हैं ; अब आधे की बारी है ;
हिंदू – धर्म से इनको नफरत , इनकी गुंडों से यारी है ।
लगता धर्म तोड़ने की ही , इनको मिली सुपारी है ;
नोबेल – प्राइज का भी चक्कर , पूरी – पूरी मक्कारी है ।
हिंदू ! अब तो आंखें खोलो , तंद्रा पूरी तरह भगाओ ;
गोलबंद सारे हो जाओ , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
अभी नहीं तो कभी नहीं , हर हाल में हिंदू करें एकता ;
वोट-बैंक हिंदू का बनाकर , हिंदू-वाद को दे दो सत्ता ।
केवल वोट उन्हीं को देना , कट्टर – हिंदूवादी हों ;
किसी भी दल का या निर्दल हो, बस केवल कट्टर-हिंदू हो ।
यदि कहीं नहीं ऐसा प्रत्याशी, तब हर-हिंदू “नोटा” करना ;
वामी ,कामी ,जिम्मी ,सेक्युलर , जेहादी न जीतने देना ।
इतने भर से भी मिले सफलता, जितने भी जीतें हिंदू-वादी ;
मिली- जुली सरकार बनेगी , विश्व की पहली हिंदू-वादी ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”