पहले एनडीटीवी और अब एबीपी न्यूज में ‘नटुआगिरी’ करते ‘पेटिकोट पत्रकार’ अभिसार शर्मा की बीबी सुमना सेन एक आयकर अधिकारी हैं। उन पर आरोप है कि उसने एनडीटीवी से रिश्वत लेकर सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया, जिसके एवज में एनडीटीका ने उसके पति अभिसार शर्मा की सैलरी को 7 हजार से बढ़ाकर 70 हजार कर दिया। यही नहीं, दोनों के यूरोप टूर का इंतजाम भी एनडीटीवी के खाते से ही होता था। आयकर को दोनों पति-पत्नी के पास करीब 11 करोड़ की बेनामी संपत्ति होने का पता चला है। इसके बावजूद आयकर विभाग यदि सुमना सेन पर कार्रवाई नहीं कर पाया है तो इसके पीछे वो लॉबी है, जो एनडीटीवी और उसके मालिक प्रणय जेम्स राय को बचाने में जुटा है। कांग्रेस की मनमोहन सरकार में तो पी. चिदंबरम सुमना सेन को बचा रहे थे, लेकिन मोदी सरकार आने के बाद भी सीबीआई और आयकर विभाग में उसे बचाया गया है तो सवाल उठता है कि वह कौन लोग हैं, जो ईमानदार मोदी सरकार की छवि को खराब करने के लिए भ्रष्ट अधिकारियों और कारपोरेट मीडिया को बचाने की कोशिश में जुटे हैं। इसी की पड़ताल करती यथावत से साभार जितेंद्र चतुर्वेदी की रिपोर्ट…
पहले एनडीटीवी और अब एबीपी न्यूज में पत्रकार अभिसार शर्मा की बीबी सुमना सेन एक आयकर अधिकारी हैं। सुमना सेन देहरादून में तैनात है। उन पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया और एनडीटीवी को फायदा। इसके एवज में एनडीटीवी से रिश्वत ली। सेन के मकान से लेकर विदेश यात्रा तक का खर्च एनडीटीवी ने उठाया। इसकी जांच भी शुरू हुई थी। इन पर आय से अधिक संपत्ति का मामला बना था।
सीबीआई ने सितंबर 2015 में सुमना सेन से पूछताछ भी की। लेकिन इसके बाद ही सीबीआई के पुलिस अधीक्षक का स्थानान्तरण हो गया। यह सुमना सेन से पूछताछ के तुरंत बाद क्यों हुआ? इसे लेकर आयकर विभाग में कई तरह की चर्चाएं है।
जो भी हो सीबीआई ने सुमना सेन की जांच के लिए आयकर विभाग से उनका रिकार्ड मांगा। विभाग के अधिकार पीके.गुप्ता ने सीबीआई को बताया कि उनका रिकार्ड मौजूद नहीं है। पूर्व आयकर अधिकारी डीपी.कर कहते है कि पीके.गुप्ता ने ऐसा जानबूझ कर किया। वे नहीं चाहते थे कि सीबीआई उनके खिलाफ केस दर्ज करे। इसलिए सीबीआई को गुमराह किया गया।
इस मामले में एनडीटीवी ने भी सीबीआई से झूठ बोला। पूर्व आयकर अधिकारी डीपी.कर कहते है कि आयकर विभाग और एनडीटीवी की वजह से सुमना सेन सीबीआई के चंगुल से बच गए। उनका दावा है कि सुमना सेन ने जांच बंद करवाने के लिए तत्कालीन सीबीआई निदेशक से मुलाकात भी की थी।
सूत्रों की माने तो सीबीआई में शीर्ष पर बैठे कई अधिकारी सुमना सेन पर आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए तैयार भी है। उनके पास इस बात के पक्के सबूत है कि सुमना सेन ने सरकारी धन का गबन किया है। बावजूद इसके सीबीआई हाथ पर हाथ धरे बैठी है। वह कुछ कर नहीं पा रही है। आयकर विभाग के पूर्व अधिकारी डीपी.कर कहते है कि शीर्ष पर बैठे कुछ लोग सुमना सेन की जांच कराने के पक्ष में नहीं है। उनमें अरविंद मोदी भी है। उन्हें सुमना सेन की हेराफेरी के बारे सारी जानकारी है। फिर भी वे सुमना सेन की न सिर्फ ढाल बने हुए है बल्कि उन्हें ऐसी जगहों पर तैनात कर रहे हैं जो मंत्रालय के नियमों के खिलाफ है।
केंद्रीय कर राजस्व बोर्ड (सीबीडीटी) घूसखोरों की आरामगाह बन गया है, अभी तक यह आरोप तो नहीं लगा है। लेकिन जिस तरह का दावा केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और पूर्व आयकर अधिकारी कर रहे हैं, वह बहुत गंभीर है। उनकी माने तो बोर्ड के सदस्य अरविंद मोदी न केवल रिश्वतखोर है बल्कि इस तरह के अधिकारियों को संरक्षण भी देते हैं।
उनकी हेराफेरी को लेकर कृषि राज्य मंत्री ने बोर्ड में शिकायत की है। उसमें अरविंद मोदी समेत कई अधिकारी का नाम है। इस बाबत गजेंद्र सिंह शेखावत से संपर्क किया गया। पर उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिली। कहानी कुछ यूं है कि 2015 में पेसिफिक मेडिकल यूनिवर्सिटी (उदयपुर) पर आयकर विभाग ने छापा मारा। उसमें पता चला कि यूनिवर्सिटी ने कर चोरी की है। लिहाजा कार्रवाई होनी था। संस्थान का दावा है कि विभाग ने कार्रवाई करने के बजाए रिश्वत मांगी।
कहा गया कि 75 लाख रुपया दीजिए, मामला रफादफा कर दिया जाएगा। संस्थान ने कर बचाने के लिए जांच अधिकारी को 75 लाख रुपए दे दिए। कायदे से मामला यही खत्म हो जाना चाहिए। पर ऐसा हुआ नहीं। अचानक संस्थान के मालिक बीआर। अग्रवाल की अंतार्त्मा जग गई। उन्होंने कागजी हेराफेरी के बजाए सरकार को कर देना मुनासिब समझा।
चूंकि वे कर का भुगतान करना चाहते थे लिहाजा रिश्वत का पैसा मांगने आयकर अधिकारी के पास पहुंचे। उसने कहा कि मैं अब पैसा वापस नहीं कर सकता। उसने जो वजह बताई, वह आयकर विभाग में शीर्ष नेतृत्व तक फैले भ्रष्टाचार की पोल खोलता है। अधिकारी ने कहा कि रिश्वत का सारा पैसा बंट गया है। उसका एक हिस्सा बोर्ड के सदस्य अरविन्द मोदी को भी दिया गया।
अरविंद मोदी वही है जिन्हें सरकार ने 50 साल पुराने आयकर कानून को दुबारा लिखने का जिम्मा सौंपा हैं। इन्हें पी. चिदंबरम का करीबी माना जाता है। कहा जाता है कि एक दौर में जब वित्त मंत्रालय प्रणव मुखर्जी के पास था तो अरविंद मोदी को मलाईदार पद दिलाने के लिए तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। विभाग के अधिकारी बताते हैं कि अरविंद मोदी के लिए चिदंबरम ने प्रणव मुखर्जी से सिफारिश की थी। अलग बात है कि उन्होंने चिदंबरम की सिफारिश पर ध्यान नहीं दिया।
हालांकि जब चिदंबरम की वित्त मंत्रालय में वापसी हुई तब अरविंद मोदी के दिन फिर गए। सूत्र बताते हैं कि तब से उनके जो अच्छे दिन शुरू हुए वह अभी तक जारी है।उनकी शान का आलम यह है कि उनके सामने पूरा मंत्रालय एक टांग पर खड़ा रहता है। इसीलिए रिश्वतखोरी के आरोप में फंसने का उन्हें ईनाम भी मिला। तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार करते हुए, अरविंद मोदी को बोर्ड का सदस्य बना दिया गया।
यहां जिम्मेदारी वह सौंपी गई, जिसका पालन करना, वे जानते नहीं। कहने का मतलब यह है कि बोर्ड में उन्हें कानून का जिम्मा सौंपा गया और इनकी खासियत ही कानून न मानने की है। चौंकिए मत, आयकर विभाग के पूर्व अधिकारी डीपी.कर ने उन पर यही आरोप लगाया है। इस बाबत उन्होंने 28 दिसंबर 2017 को एक पत्र लिखा जो राजस्व विभाग को भेजा गया था।
उसमें लिखा है कि अरविंद मोदी ने आरोपी अधिकारी को संवेदनशील पद पर तैनात किया है। वह भी तब जबकि मंत्रालय में आरोपी अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर नियम स्पष्ट है। उस नियम की अनदेखी करते हुए, आरोपी अधिकारी को संवेदनशील पद दिया गया है। कानूनी भाषा में कहा जाए तो वित्त मंत्रालय में आरोपी अधिकारियों को ‘एग्रीड सूची’ में रखा जाता है।
इस सूची में शामिल अधिकारी को संवेदशील पदों पर तैनात नहीं किया जाता। अरविंद मोदी ने इसका ख्याल नहीं रखा। यही वजह है कि डीपी. कर के आरोप का संज्ञान लिया गया लेते और जांच समिति गठित की गई। समिति गठित करने का आदेश 13 मार्च 2018 को दिया गया। उस समिति की जांच रिपोर्ट में क्या निकला? यह जानने के लिए सीबीडीटी के अध्यक्ष सुशील चन्द्रा से संपर्क किया गया। पर उन्होंने रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं दिया था।
जब अरविंद मोदी से उन पर लगे आरोपों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने चौका दिया। मोदी ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि मेरे खिलाफ किसी केंद्रीय मंत्री या फिर किसी अन्य ने कोई शिकायत की है, इस बात की मुझे जानकारी नहीं है। शायद वे उस अधिकारी के भ्रष्टाचार से भी अनभिज्ञ है जिसके संरक्षक बने है। उनका नाम सुमना सेन है जो देहरादून में तैनात है।
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साभार: यथावत
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